05---sArvadhAtukaprakaraNam-adantam-aGgam/06---bhvAdigaNaH: Difference between revisions

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<big>'''पा'''-'''घ्रा'''-'''ध्मा'''-'''स्था'''-'''म्ना'''-'''दाण्‌'''-'''दृशि'''-'''अर्ति'''-'''सर्ति'''-'''शद'''-'''सदां, पिब'''-'''जिघ्र'''-'''धम'''-'''तिष्ठ'''-'''मन'''-'''यच्छ'''-'''पश्य'''-'''ऋच्छ'''-'''धौ'''-'''शीय'''-'''सीदाः''' (७.३.७८) = पा घ्रा ध्मा इत्यादीनां स्थाने पिब, जिघ्र, धम एते आदेशाः भवन्ति शिति परे | केवलं शिति परे इति धेयम्‌ | अतः पिबति परन्तु पास्यति इति | पाश्च घ्राश्च ध्माश्च ... सद्‌ च तेषामितरेतरद्वन्द्वः पा-घ्रा-ध्मा-स्था-म्ना-दाण्‌-दृशि-अर्ति-सर्ति-शद-सदः, तेषां पा-घ्रा-ध्मा-स्था-स्नाम्ना-दाण्‌-दृशि-अर्ति-सर्ति-शद-सदाम्‌ | पिबश्च जिघ्रश्च धमश्च … सीदश्च तेषामितरेतरद्वन्द्वः पिब-जिघ्र-धम-तिष्ठ-मन-यच्छ-पश्य-ऋच्छ-धौ-शीय-सीदाः | पा-घ्रा-ध्मा-स्था-म्ना-दाण्‌-दृशि-अर्ति-सर्ति-शद-सदाम्‌ षष्ठ्यन्तं, पिब-जिघ्र-धम-तिष्ठ-मन-यच्छ-पश्य-ऋच्छ-धौ-शीय-सीदाः प्रथमान्तं, द्विपदमिदं सूत्रम्‌ | '''ष्ठिवुक्लमुचमां शिति''' (७.३.७५) इत्यस्मात्‌ '''शिति''' इत्यस्य अनुवृत्तिः | '''अङ्गस्य''' (६.४.१) इत्यस्य अधिकारः | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्‌— '''पा'''-'''घ्रा'''-'''ध्मा'''-'''स्था'''-'''म्ना'''-'''दाण्‌'''-'''दृशि'''-'''अर्ति'''-'''सर्ति'''-'''शद'''-'''सदां अङ्गस्य''' '''पिब'''-'''जिघ्र'''-'''धम'''-'''तिष्ठ'''-'''मन'''-'''यच्छ'''-'''पश्य'''-'''ऋच्छ'''-'''धौ'''-'''शीय'''-'''सीदाः शिति''' |</big>
 
 
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