07 - परिशिष्टम्
अष्टाध्यायां समासान्ताधिकारः ५.३.६८ इत्यस्मात् सूत्रात् आरभ्य ५.३.१६० इत्यन्तपर्यन्तम् अस्ति । अस्मिन् अधिकारे समासान्तप्रत्ययाः विधीयन्ते । एतानि सूत्राणि तद्धितस्याधिकारः सन्ति इत्यतः समासान्तप्रत्यया: तद्धितप्रत्ययाः सन्ति। एते समासान्तप्रत्ययाः समासस्य अवयवाः भवन्ति अपि च तद्धितसंज्ञकाः भवन्ति । समासान्तप्रत्ययानां योजनानन्तरं तद्धितप्रक्रिया आश्रयणीया भवति। अनेन कारणेन एव एते समासन्तप्रत्ययाः तद्धिताधिकारे सन्ति।
सूत्रक्रमाङ्कः | सूत्रं | समासान्तप्रत्ययः | समासप्रकारः |
५.४.६८ | समासान्ताः | समासान्त-अधिकारसूत्रम् | |
'५.४.६९' | न पूजनात् | अधिकारनिषेधः | |
'५.४.७०' | किमः क्षेपे | अधिकारनिषेधः | |
'५.४.७१' | नञस्तत्पुरुषात् | अधिकारनिषेधः | |
'५.४.७२' | पथो विभाषा | अधिकारस्य वैकल्पिकः निषेधः | |
'५.४.७३' | बहुव्रीहौ संख्येये डजबहुगणात् | डच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.७४' | ऋक्पूरप्धूःपथामानक्षे | अ | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.७५' | अच् प्रत्यन्ववपूर्वात् सामलोम्नः | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.७६' | अक्ष्णोऽदर्शनात् | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.७७' |
अचतुरविचतुरसुचतुरस्त्रीपुंसधेन्वन डुहर्क्सामवाङ्मनसाक्षिभ्रुवदारगवोर्वष्ठी वपदष्ठीवनक्तंदिवरत्रिंदिवाहर्दिवसर जसनिःश्रेयसपुरुषायुषद्व्यायुषत्र्यायुष र्ग्यजुषजातोक्षमहोक्षवृद्धोक्षोपशुनगोष्ठश्वाः |
अच्-प्रत्ययान्त-निपातनम् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.७८' | ब्रह्महस्तिभ्याम् वर्च्चसः | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.७९' | अवसमन्धेभ्यस्तमसः | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.८०' | श्वसो वसीयःश्रेयसः | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.८१' | अन्ववतप्ताद्रहसः | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.८२' | प्रतेरुरसः सप्तमीस्थात् | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.८३' | अनुगवमायामे | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.८४' | द्विस्तावा त्रिस्तावा वेदिः | अच्-प्रत्ययान्त-निपातनम् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.८५' | उपसर्गादध्वनः | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.८६' | तत्पुरुषस्याङ्गुलेः संख्याऽव्ययादेः | अच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.८७' | अहस्सर्वैकदेशसंख्यातपुण्याच्च रात्रेः | अच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.८८' | अह्नोऽह्न एतेभ्यः | प्रकृत्यादेशः | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.८९' | न संख्याऽऽदेः समाहारे | प्रकृत्यादेशनिषेधः | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.९०' | उत्तमैकाभ्यां च | प्रकृत्यादेशनिषेधः | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.९१' | राजाऽहस्सखिभ्यष्टच् | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.९२' | गोरतद्धितलुकि | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.९३' | अग्राख्यायामुरसः | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.९४' | अनोऽश्मायस्सरसाम् जातिसंज्ञयोः | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.९५' | ग्रामकौटाभ्यां च तक्ष्णः | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.९६' | अतेः शुनः | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.९७' | उपमानादप्राणिषु | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.९८' | उत्तरमृगपूर्वाच्च सक्थ्नः | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.९९' | नावो द्विगोः | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.१००' | अर्धाच्च | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.१०१' | खार्याः प्राचाम् | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.१०२' | द्वित्रिभ्यामञ्जलेः | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.१०३' | अनसन्तान्नपुंसकाच्छन्दसि | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.१०४' | ब्रह्मणो जानपदाख्यायाम् | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.१०५' | कुमहद्भ्यामन्यतरस्याम् | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.१०६' | द्वंद्वाच्चुदषहान्तात् समाहारे | टच् | द्वन्दसमासान्तप्रत्ययः |
'५.४.१०७' | अव्ययीभावे शरत्प्रभृतिभ्यः | टच् | अव्ययीभावसमासः |
'५.४.१०८' | अनश्च | टच् | अव्ययीभावसमासः |
'५.४.१०९' | नपुंसकादन्यतरस्याम् | वैकल्पिकः टच्
|
अव्ययीभावसमासः |
'५.४.११०' | नदीपौर्णमास्याग्रहायणीभ्यः | वैकल्पिकः टच्
|
अव्ययीभावसमासः |
'५.४.१११' | झयः | वैकल्पिकः टच् | अव्ययीभावसमासः |
'५.४.११२' | गिरेश्च सेनकस्य | वैकल्पिकः टच् | अव्ययीभावसमासः |
'५.४.११३' | बहुव्रीहौ सक्थ्यक्ष्णोः स्वाङ्गात् षच् | षच् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.११४' | अङ्गुलेर्दारुणि | षच् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.११५' | द्वित्रिभ्यां ष मूर्ध्नः | ष | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४११६' | अप् पूरणीप्रमाण्योः | अप् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.११७' | अन्तर्बहिर्भ्यां च लोम्नः | अप् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.११८' | अञ्नासिकायाः संज्ञायां नसं चास्थूलात् | अच् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.११९' | उपसर्गाच्च | अच् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१२०' | सुप्रातसुश्वसुदिवशारिकुक्षचतुरश्रैणीपदाजपदप्रोष्ठपदाः | अच्-प्रत्ययान्त-निपातनम् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१२१' | नञ्दुःसुभ्यो हलिसक्थ्योरन्यतरस्याम् | वैकल्पिकः अच् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१२२' | नित्यमसिच् प्रजामेधयोः | असिच् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१२३' | बहुप्रजाश्छन्दसि | असिच्-प्रत्ययान्त-निपातनम् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१२४' | धर्मादनिच् केवलात् | अनिच् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१२५' | जम्भा सुहरिततृणसोमेभ्यः | अनिच्-प्रत्ययान्त-निपातनम् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१२६' | दक्षिणेर्मा लुब्धयोगे | अनिच्-प्रत्ययान्त-निपातनम् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१२७' | इच् कर्मव्यतिहारे | इच् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१२८' | द्विदण्ड्यादिभ्यश्च | इच् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१२९' | प्रसम्भ्यां जानुनोर्ज्ञुः | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१३०' | ऊर्ध्वाद्विभाषा | समासान्ते वैकल्पिकः आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१३१' | ऊधसोऽनङ् | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१३२' | धनुषश्च | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१३३' | वा संज्ञायाम् | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१३४' | जायाया निङ् | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१३५' | गन्धस्येदुत्पूतिसुसुरभिभ्यः | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१३६' | अल्पाख्यायाम् | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१३७' | उपमानाच्च | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१३८' | पादस्य लोपोऽहस्त्यादिभ्यः | समासान्ते लोपः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१३९' | कुम्भपदीषु च | समासान्ते लोपः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१४०' | संख्यासुपूर्वस्य | समासान्ते लोपः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१४१' | वयसि दन्तस्य दतृ | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१४२' | छन्दसि च | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१४३' | स्त्रियां संज्ञायाम् | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१४४' | विभाषा श्यावारोकाभ्याम् | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१४५' | अग्रान्तशुद्धशुभ्रवृषवराहेभ्यश्च | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१४६' | ककुदस्यावस्थायां लोपः | समासान्ते लोपः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१४७' | त्रिककुत् पर्वते | निपातनम् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१४८' | उद्विभ्यां काकुदस्य | समासान्ते लोपः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१४९' | पूर्णाद्विभाषा | समासान्ते लोपः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१५०' | सुहृद्दुर्हृदौ मित्रामित्रयोः | निपातनम् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१५१' | उरःप्रभृतिभ्यः कप् | कप् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१५२' | इनः स्त्रियाम् | कप् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१५३' | नद्यृतश्च | कप् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१५४' | शेषाद्विभाषा | वैकल्पिकः कप् | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१५५' | न संज्ञायाम् | कप्-प्रत्ययनिषेधः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१५६' | ईयसश्च | कप्-प्रत्ययनिषेधः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१५७' | वन्दिते भ्रातुः | कप्-प्रत्ययनिषेधः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१५८' | ऋतश्छन्दसि | कप्-प्रत्ययनिषेधः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१५९' | नाडीतन्त्र्योः स्वाङ्गे | कप्-प्रत्ययनिषेधः | बहुव्रीहिसमासः |
'५.४.१६०' | निष्प्रवाणिश्च | कप्-प्रत्ययनिषेधः | बहुव्रीहिसमासः |
Vidhya March 2020