07 - परिशिष्टम्
14---samAsaH/07---parishiShTam
अष्टाध्यायां समासान्ताधिकारः ५.३.६८ इत्यस्मात् सूत्रात् आरभ्य ५.३.१६० इत्यन्तपर्यन्तम् अस्ति । अस्मिन् अधिकारे समासान्तप्रत्ययाः विधीयन्ते । एतानि सूत्राणि तद्धितस्याधिकारे सन्ति इत्यतः समासान्तप्रत्यया: तद्धितप्रत्ययाः सन्ति । एते समासान्तप्रत्ययाः समासस्य अवयवाः भवन्ति अपि च तद्धितसंज्ञकाः भवन्ति । समासान्तप्रत्ययानां योजनानन्तरं तद्धितप्रक्रिया आश्रयणीया भवति । अनेन कारणेन एव एते समासन्तप्रत्ययाः तद्धिताधिकारे सन्ति ।
सूत्रक्रमाङ्कः | सूत्रं | समासान्तप्रत्ययः | समासप्रकारः |
५.४.६८ | समासान्ताः | समासान्त अधिकारसूत्रम् | |
५.४.६९ | न पूजनात् |
अधिकारनिषेधः |
|
५.४.७० | किमः क्षेपे | अधिकारनिषेधः | |
५.४.७१ | नञस्तत्पुरुषात् | अधिकारनिषेधः | |
५.४.७२ | पथो विभाषा | अधिकारस्य वैकल्पिकः निषेधः | |
५.४.७३ | बहुव्रीहौ संख्येये डजबहुगणात् | डच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.७४ | ऋक्पूरप्धूःपथामानक्षे | अ | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.७५ | अच् प्रत्यन्ववपूर्वात् सामलोम्नः | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.७६ | अक्ष्णोऽदर्शनात् | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.७७ |
अचतुरविचतुरसुचतुरस्त्रीपुंसधेन्वन डुहर्क्सामवाङ्मनसाक्षिभ्रुवदारगवोर्वष्ठी वपदष्ठीवनक्तंदिवरात्रिंदिवाहर्दिवसर जसनिःश्रेयसपुरुषायुषद्व्यायुषत्र्यायुष र्ग्यजुषजातोक्षमहोक्षवृद्धोक्षोपशुनगोष्ठश्वाः |
अच्-प्रत्ययान्त-निपातनम् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.७८ | ब्रह्महस्तिभ्याम् वर्च्चसः | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.७९ | अवसमन्धेभ्यस्तमसः | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.८० | श्वसो वसीयःश्रेयसः | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.८१ | अन्ववतप्ताद्रहसः | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.८२ | प्रतेरुरसः सप्तमीस्थात् | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.८३ | अनुगवमायामे | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.८४ | द्विस्तावा त्रिस्तावा वेदिः | अच्-प्रत्ययान्त-निपातनम् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.८५ | उपसर्गादध्वनः | अच् | सर्वसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.८६ | तत्पुरुषस्याङ्गुलेः संख्याव्ययादेः | अच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.८७ | अहस्सर्वैकदेशसंख्यातपुण्याच्च रात्रेः | अच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.८८ | अह्नोऽह्न एतेभ्यः | प्रकृत्यादेशः | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.८९ | न संख्यादेः समाहारे | प्रकृत्यादेशनिषेधः | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.९० | उत्तमैकाभ्यां च | प्रकृत्यादेशनिषेधः | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.९१ | राजाहस्सखिभ्यष्टच् | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.९२ | गोरतद्धितलुकि | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.९३ | अग्राख्यायामुरसः | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.९४ | अनोऽश्मायस्सरसाम् जातिसंज्ञयोः | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.९५ | ग्रामकौटाभ्यां च तक्ष्णः | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.९६ | अतेः शुनः | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.९७ | उपमानादप्राणिषु | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.९८ | उत्तरमृगपूर्वाच्च सक्थ्नः | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.९९ | नावो द्विगोः | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.१०० | अर्धाच्च | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.१०१ | खार्याः प्राचाम् | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.१०२ | द्वित्रिभ्यामञ्जलेः | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.१०३ | अनसन्तान्नपुंसकाच्छन्दसि | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.१०४ | ब्रह्मणो जानपदाख्यायाम् | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.१०५ | कुमहद्भ्यामन्यतरस्याम् | टच् | तत्पुरुषसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.१०६ | द्वन्द्वाच्चुदषहान्तात् समाहारे | टच् | द्वन्दसमासान्तप्रत्ययः |
५.४.१०७ | अव्ययीभावे शरत्प्रभृतिभ्यः | टच् | अव्ययीभावसमासः |
५.४.१०८ | अनश्च | टच् | अव्ययीभावसमासः |
५.४.१०९ | नपुंसकादन्यतरस्याम् | वैकल्पिकः टच् | अव्ययीभावसमासः |
५.४.११० | नदीपौर्णमास्याग्रहायणीभ्यः | वैकल्पिकः टच् | अव्ययीभावसमासः |
५.४.१११ | झयः | वैकल्पिकः टच् | अव्ययीभावसमासः |
५.४.११२ | गिरेश्च सेनकस्य | वैकल्पिकः टच् | अव्ययीभावसमासः |
५.४.११३ | बहुव्रीहौ सक्थ्यक्ष्णोः स्वाङ्गात् षच् | षच् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.११४ | अङ्गुलेर्दारुणि | षच् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.११५ | द्वित्रिभ्यां ष मूर्ध्नः | ष | बहुव्रीहिसमासः |
५.४११६ | अप् पूरणीप्रमाण्योः | अप् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.११७ | अन्तर्बहिर्भ्यां च लोम्नः | अप् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.११८ | अञ्नासिकायाः संज्ञायां नसं चास्थूलात् | अच् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.११९ | उपसर्गाच्च | अच् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१२० | सुप्रातसुश्वसुदिवशारिकुक्षचतुरश्रैणीपदाजपदप्रोष्ठपदाः | अच्-प्रत्ययान्त-निपातनम् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१२१ | नञ्दुःसुभ्यो हलिसक्थ्योरन्यतरस्याम् | वैकल्पिकः अच् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१२२ | नित्यमसिच् प्रजामेधयोः | असिच् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१२३ | बहुप्रजाश्छन्दसि | असिच्-प्रत्ययान्त-निपातनम् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१२४ | धर्मादनिच् केवलात् | अनिच् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१२५ | जम्भा सुहरिततृणसोमेभ्यः | अनिच्-प्रत्ययान्त-निपातनम् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१२६ | दक्षिणेर्मा लुब्धयोगे | अनिच्-प्रत्ययान्त-निपातनम् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१२७ | इच् कर्मव्यतिहारे | इच् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१२८ | द्विदण्ड्यादिभ्यश्च | इच् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१२९ | प्रसम्भ्यां जानुनोर्ज्ञुः | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१३० | ऊर्ध्वाद्विभाषा | समासान्ते वैकल्पिकः आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१३१ | ऊधसोऽनङ् | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१३२ | धनुषश्च | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१३३ | वा संज्ञायाम् | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१३४ | जायाया निङ् | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१३५ | गन्धस्येदुत्पूतिसुसुरभिभ्यः | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१३६ | अल्पाख्यायाम् | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१३७ | उपमानाच्च | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१३८ | पादस्य लोपोऽहस्त्यादिभ्यः | समासान्ते लोपः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१३९ | कुम्भपदीषु च | समासान्ते लोपः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१४० | संख्यासुपूर्वस्य | समासान्ते लोपः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१४१ | वयसि दन्तस्य दतृ | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१४२ | छन्दसि च | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१४३ | स्त्रियां संज्ञायाम् | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१४४ | विभाषा श्यावारोकाभ्याम् | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१४५ | अग्रान्तशुद्धशुभ्रवृषवराहेभ्यश्च | समासान्ते आदेशः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१४६ | ककुदस्यावस्थायां लोपः | समासान्ते लोपः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१४७ | त्रिककुत् पर्वते | निपातनम् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१४८ | उद्विभ्यां काकुदस्य | समासान्ते लोपः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१४९ | पूर्णाद्विभाषा | समासान्ते लोपः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१५० | सुहृद्दुर्हृदौ मित्रामित्रयोः | निपातनम् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१५१ | उरःप्रभृतिभ्यः कप् | कप् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१५२ | इनः स्त्रियाम् | कप् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१५३ | नद्यृतश्च | कप् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१५४ | शेषाद्विभाषा | वैकल्पिकः कप् | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१५५ | न संज्ञायाम् | कप्-प्रत्ययनिषेधः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१५६ | ईयसश्च | कप्-प्रत्ययनिषेधः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१५७ | वन्दिते भ्रातुः | कप्-प्रत्ययनिषेधः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१५८ | ऋतश्छन्दसि | कप्-प्रत्ययनिषेधः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१५९ | नाडीतन्त्र्योः स्वाङ्गे | कप्-प्रत्ययनिषेधः | बहुव्रीहिसमासः |
५.४.१६० | निष्प्रवाणिश्च | कप्-प्रत्ययनिषेधः | बहुव्रीहिसमासः |
Vidhya March 2020