15 - वेड्-धातवः
येभ्यः वा भवति इडागमः, ते धातवः वेटः— वा इट् वेट् | ३७ धातवः वेटः; तेभ्यः वलादि-आर्धधातुकप्रत्ययस्य विकल्पेन इडागमो भवति | यदा अजन्तसेड्धातवः च हलन्त-अनिड्धातवः च ज्ञाताः, तदा एषां वेड्धातूनां कण्ठस्थीकरणेन सम्पूर्णरीत्या इड्व्यवस्था सिद्धा |
स्वरतिसूतिसूयतिधूञूदितो वा (७.२.४४) इति सूत्रेण 'स्वृ शब्दोपतापयोः', 'षूङ् प्राणिगर्भविमोचने' अदादिगणे, ‘षूङ् प्राणिप्रसवे' दिवादिगणे, ‘धूञ् कम्पने' (स्वादौ क्र्यादौ च), अपि च येषाम् ऊकारस्य इत्संज्ञा, एभ्यः सर्वेभ्यः धातुभ्यः परस्य वलादेरार्धधातुकस्येड् वा स्यात् | (धेयं यत् तुदादिगणस्य धू विधूनने, चुरादिगणस्य च धूञ् कम्पने एतौ द्वौ सेटौ |)
धातुः | तास् (लुट्) | तुमुन् | तव्यत् | स्य (लृट्) | स्य (लृङ्) |
स्वृ | स्वर्ता | स्वर्तुम् | स्वर्तव्यम् | स्वर्ष्यति | अस्वर्ष्यत् |
स्वरिता | स्वरितुम् | स्वरितव्यम् | स्वरिष्यति | अस्वरिष्यत् | |
सू | सोता | सोतुम् | सोतव्यम् | सोष्यते | असोष्यत |
सविता | सवितुम् | सविव्यम् | सविष्यते | असविष्यत | |
सू | सोता | सोतुम् | सोतव्यम् | सोष्यते | असोष्यत |
सविता | सवितुम् | सविव्यम् | सविष्यते | असविष्यत | |
धू | धोता | धोतुम् | धोतव्यम् | धोष्यति / ते | अधोष्यत् / अधोष्यत |
धविता | धवितुम् | धविव्यम् | धविष्यति / ते | अधविष्यत् / अधविष्यत |
धातुपाठे पठिताः ऊदिद्धातवः (२४ धातवः)
तञ्चू | तङ्क्ता | तङ्क्तुम् | तङ्क्तव्यम् | तङ्क्ष्यति | अतङ्क्ष्यत् |
तञ्चिता | तञ्चितुम् | तञ्चितव्यम् | तञ्चिष्यति | अतञ्चिष्यत् | |
ओव्रश्चू | व्रष्टा | व्रष्टुम् | व्रष्टव्यम् | व्रक्ष्यति | अव्रक्ष्यत् |
व्रश्चिता | व्रश्चितुम् | व्रश्चितव्यम् | व्रश्चिष्यति | अव्रश्चिष्यत् | |
अञ्जू | अङ्क्ता | अङ्क्तुम् | अङ्क्तव्यम् | अङ्क्ष्यति | आङ्क्ष्यत् |
अञ्जिता | अञ्जितुम् | अञ्जितव्यम् | अञ्जिष्यति | आञ्जिष्यत् | |
मृजू१ | मार्ष्टा | मार्ष्टुम् | मार्ष्टव्यम् | मार्क्ष्यति | अमार्क्ष्यत् |
मार्जिता | मार्जितुम् | मार्जितव्यम् | मार्जिष्यति | अमार्जिष्यत् | |
क्लिदू | क्लेत्ता | क्लेत्तुम् | क्लेत्तव्यम् | क्लेत्स्यति | अक्लेत्स्यत् |
क्लेदिता | क्लेदितुम् | क्लेदितव्यम् | क्लेदिष्यति | अक्लेदिष्यत् | |
स्यन्दू | स्यन्त्ता | स्यन्त्तुम् | स्यन्त्तव्यम् | स्यन्त्स्यते | अस्यन्त्स्यत |
स्यन्दिता | स्यन्दितुम् | स्यन्दितव्यम् | स्यन्दिष्यते | अस्यन्दिष्यत | |
षिधू | सेद्धा | सेद्धुम् | सेद्धव्यम् | सेत्स्यति | असेत्स्यत् |
सेधिता | सेधितुम् | सेधितव्यम् | सेधिष्यति | असेधिष्यत् | |
गुपू२ | गोप्ता | गोप्तुम् | गोप्तव्यम् | गोप्स्यति | अगोप्स्यत् |
गोपिता | गोपितुम् | गोपितव्यम् | गोपिष्यति | अगोपिष्यत् | |
गोपायिता | गोपायितुम् | गोपायितव्यम् | गोपायिष्यति | अगोपायिष्यत् | |
त्रपूष् | त्रप्ता | त्रप्तुम् | त्रप्तव्यम् | त्रप्स्यते | अत्रप्स्यत |
त्रपिता | त्रपितुम् | त्रपितव्यम् | त्रपिष्यते | अत्रपिष्यत | |
कृपू३ | कल्प्ता | कल्प्तुम् | कल्प्तव्यम् | कल्प्स्यते | अकल्प्स्यत |
कल्पिता | कल्पितुम् | कल्पितव्यम् | कल्पिष्यते | अकल्पिष्यत | |
क्षमू | क्षन्ता | क्षन्तुम् | क्षन्तव्यम् | क्षंस्यति | अक्षंस्यत् |
क्षमिता | क्षमितुम् | क्षमितव्यम् | क्षमिष्यति | अक्षमिष्यत् | |
क्षमूष् | क्षन्ता | क्षन्तुम् | क्षन्तव्यम् | क्षंस्यते | अक्षंस्यत |
क्षमिता | क्षमितुम् | क्षमितव्यम् | क्षमिष्यते | अक्षमिष्यत | |
अशू | अष्टा | अष्टुम् | अष्टव्यम् | अक्ष्यते | आक्ष्यत |
अशिता | अशितुम् | अशितव्यम् | अशिष्यते | आशिष्यत | |
क्लिशू | क्लेष्टा | क्लेष्टुम् | क्लेष्टव्यम् | क्लेक्षयति | अक्लेक्षयत् |
क्लेशिता | क्लेशितुम् | क्लेशितव्यम् | क्लेशिष्यति | अक्लेशिष्यत् | |
अक्षू | अष्टा | अष्टुम् | अष्टव्यम् | अक्ष्यति | आक्ष्यत् |
अक्षिता | अक्षितुम् | अक्षितव्यम् | अक्षिष्यते | आक्षिष्यत | |
तक्षू | तष्टा | तष्टुम् | तष्टव्यम् | तक्ष्यति | अतक्ष्यत् |
तक्षिता | तक्षितुम् | तक्षितव्यम् | तक्षिष्यते | अतक्षिष्यत | |
त्वक्षू | त्वष्टा | त्वष्टुम् | त्वष्टव्यम् | त्वक्ष्यति | अत्वक्ष्यत् |
त्वक्षिता | त्वक्षितुम् | त्वक्षितव्यम् | त्वक्षिष्यते | अत्वक्षिष्यत | |
गाहू | गाढा | गाढुम् | गाढव्यम् | घाक्ष्यते | अघाक्ष्यत |
गाहिता | गाहितुम् | गाहितव्यम् | गाहिष्यते | अगाहिष्यत | |
गुहू४ | गोढा | गोढुम् | गोढव्यम् | घोक्ष्यति/ते | अघोक्ष्यत्/अघोक्ष्यत |
गूहिता | गूहितुम् | गूहितव्यम् | गूहिष्यति/ते | अगूहिष्यत्/अगूहिष्यत | |
गृहू | गर्ढा | गर्ढुम् | गर्ढव्यम् | घर्क्ष्यते | अघर्क्ष्यत |
गर्हिता | गर्हितुम् | गर्हितव्यम् | गर्हिष्यते | अगर्हिष्यत | |
तृन्हू | तृण्ढा | तृण्ढुम् | तृण्ढव्यम् | तृंक्ष्यति | अतृंक्ष्यत् |
तृंहिता | तृंहितुम् | तृंहितव्यम् | तृंहिष्यति | अतृंहिष्यत् | |
तृहू | तर्ढा | तर्ढुम् | तर्ढव्यम् | तर्क्ष्यति | अतर्क्ष्यत् |
तर्हिता | तर्हितुम् | तर्हितव्यम् | तर्हिष्यति | अतर्हिष्यत् | |
स्तृहू | स्तर्ढा | स्तर्ढुम् | स्तर्ढव्यम् | स्तर्क्ष्यति | अस्तर्क्ष्यत् |
स्तर्हिता | स्तर्हितुम् | स्तर्हितव्यम् | स्तर्हिष्यति | अस्तर्हिष्यत् | |
वृहू | वर्ढा | वर्ढुम् | वर्ढव्यम् | वर्क्ष्यति | अवर्क्ष्यत् |
वर्हिता | वर्हितुम् | वर्हितव्यम् | वर्हिष्यति | अवर्हिष्यत् |
१) मृजेर्वृद्धिः (७.२.११४) = मृजेरिको वृद्धिः सार्वधातुकार्धधातुकयोः |
२) गुपू-धातोः आय-प्रत्ययः गुपूधूपविच्छिपणिपनिभ्य आयः (३.१.२८) इति सामान्यसूत्रेण नित्यः, तदा आर्धधातुके आयादय आर्धधातुके वा (३.१.३१) इत्येनन विकल्पेन |
गुपूधूपविच्छिपणिपनिभ्य आयः (३.१.२८) = गुपू, धूप, विच्छ, पण, पन, एतेभ्यः धातुभ्यः आय-प्रत्ययो भवति स्वार्थे |
आयादय आर्धधातुके वा (३.१.३१) = आर्धधातुक-प्रत्ययस्य विवक्षायाम् आय-आदयः प्रत्ययाः विकल्पेन भवन्ति | आयादौ त्रयः प्रत्ययाः अन्तर्भूताः— आय, इयङ्, णिङ् |
३) कृपो रो लः (८.२.१८) = कृप्-धातोः रेफस्य लकारादेशो भवति | र इति श्रुतिसामान्यं बोध्यम् | तेन यः केवलो रेफः, यश्च ऋकारस्थः तयोः द्वयोः अपि ग्रहणम् | लः इत्यपि श्रुतिसामान्यमेव | अतः आहत्य कृप्-धातोः यदा (गुणादेशं कृत्वा) रेफो भवति, तस्य रेफस्य स्थाने लकारादेशः; पुनः कृप्-धातोः ऋकारस्य यः रेफ-सदृश-अंशः, तस्य स्थाने लसदृश-अंशादेशो भवति— नाम ऋ-स्थाने ऌ | सूत्रे कृपो → कृप + उः इति विच्छेदः | कृप लुप्तषष्ठीकं पदम्, उः षष्ठ्यन्तं, रः षष्ठ्यन्तं, लः प्रथमान्तं, अनेकपदमिदं सूत्रम् | कृपः इत्यस्य द्विवारम् आवृत्तिः | सूत्रं स्वयं सम्पूर्णम्— कृपः उः कृपः रः लः |
४) ऊदुपधाया गोहः (६.४.८९) = गुहू (संवरणे) इति गुह्-धातोः उपधा-गुणादेशं प्रबाध्य ऊत्-आदेशो भवति अजादि-प्रत्यये परे | गुह उपधाया ऊत्स्यात् गुणहेतौ अजादौ प्रत्यये | ऊत् प्रथमान्तम्, उपधायाः षष्ठ्यन्तं, गोहः षष्ठ्यन्तं, त्रिपदमिदं सूत्रम् | अचि श्नुधातुभ्रुवां य्वोरियङुवङौ (६.४.७७) इत्यस्मात् अचि इत्यस्य अनुवृत्तिः | अङ्गस्य (६.४.१) इत्यस्य अधिकारः | अनुवृत्ति-सहितसूर्त्रम्— गोहः अङ्गस्य उपधायाः ऊत् अचि |
रधादिभ्यश्च
रधादिभ्यश्च (७.२.४५) = रध्, नश्, तृप्, दृप्, द्रुह्, मुह्, ष्णुह्, ष्णिह् इत्येभ्यः धातुभ्यः वलादेरार्धधातुकस्येड् वा स्यात् |
रध् | रद्धा | रद्धुम् | रद्धव्यम् | रत्स्यति | अरत्स्यत् |
रधिता | रधितुम् | रधितव्यम् | रधिष्यति | अरधिष्यत् | |
नश्१ | नंष्टा | नंष्टुम् | नंष्टव्यम् | नंक्ष्यति | अनंक्ष्यत् |
नशिता | नशितुम् | नशितव्यम् | नशिष्यति | अनशिष्यत् | |
तृप्२ | तर्प्ता | तर्प्तुम् | तर्प्तव्यम् | तर्प्स्यति | अतर्प्स्यत् |
त्रप्ता | त्रप्तुम् | त्रप्तव्यम् | त्रप्स्यति | अत्रप्स्यत् | |
तर्पिता | तर्पितुम् | तर्पितव्यम् | तर्पिष्यति | अतर्पिष्यत् | |
दृप्२ | दर्प्ता | दर्प्तुम् | दर्प्तव्यम् | दर्प्स्यति | अदर्प्स्यत् |
द्रप्ता | द्रप्तुम् | द्रप्तव्यम् | द्रप्स्यति | अद्रप्स्यत् | |
दर्पिता | दर्पितुम् | दर्पितव्यम् | दर्पिष्यति | अदर्पिष्यत् | |
द्रुह्३ | द्रोग्धा | द्रोग्धुम् | द्रोग्धव्यम् | ध्रोक्ष्यति | अध्रोक्ष्य्त् |
द्रोढा | द्रोढुम् | द्रोढव्यम् | ध्रोक्ष्यति | अध्रोक्ष्य्त् | |
द्रोहिता | द्रोहितुम् | द्रोहितव्यम् | द्रोहिष्यति | अद्रोहिष्यत् | |
मुह्३ | मोग्धा | मोग्धुम् | मोग्धव्यम् | मोक्ष्यति | अमोक्ष्य्त् |
मोढा | मोढुम् | मोढव्यम् | मोक्ष्यति | अमोक्ष्य्त् | |
मोहिता | मोहितुम् | मोहितव्यम् | मोहिष्यति | अमोहिष्यत् | |
स्नुह्३ | स्नोग्धा | स्नोग्धुम् | स्नोग्धव्यम् | स्नोक्ष्यति | अस्नोक्ष्य्त् |
स्नोढा | स्नोढुम् | स्नोढव्यम् | स्नोक्ष्यति | अस्नोक्ष्य्त् | |
स्नोहिता | स्नोहितुम् | स्नोहितव्यम् | स्नोहिष्यति | अस्नोहिष्यत् | |
स्निह्३ | स्नेग्धा | स्नेग्धुम् | स्नेग्धव्यम् | स्नेक्ष्यति | अस्नेक्ष्य्त् |
स्नेढा | स्नेढुम् | स्नेढव्यम् | स्नेक्ष्यति | अस्नेक्ष्य्त् | |
स्नेहिता | स्नेहितुम् | स्नेहितव्यम् | स्नेहिष्यति | अस्नेहिष्यत् |
१) मस्जिनशोर्झलि (७.१.६०) = मस्ज्-धातोः च नश्-धातोः च नुम्-आगमो भवति झालादि-प्रत्यये परे | मस्जिश्च नश् च तयोरितरेतरद्वन्द्वः मस्जिनशौ, तयोर्मस्जिनशोः | मस्जिनशोः षष्ठ्यन्तं, झलि सप्तम्यन्तं, द्विपदमिदं सूत्रम् | इदितो नुम् धातोः (७.१.५८) इत्यस्मात् नुम् इत्यस्य अनुवृत्तिः | अङ्गस्य (६.४.१) इत्यस्य अधिकारः, येन 'प्रत्यय'-पदस्यापि सूत्रार्थे आक्षेपः | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्— मस्जिनशोः अङ्गस्य नुम् झलि प्रत्यये |
२) तृप्, दृप् इत्येतौ द्वौ धातू तौ एव यौ अनिट्-हलन्तधातुपाठे उक्तौ— तृपँ प्रीणने दि प० (तृप्यति), दृपँ हर्षमोहनयोः दि प० (दृप्यति) | तर्हि कथम् अत्र वेट्-धातुषु अपि पठितौ ? एतौ द्वौ अनिट् अपि वेट् अपि | अनुदात्तौ अतः स्वभावतः अनिटौ; अयं स्वभावः आवश्यकः आसीत् येन अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् (६.१.५९) इत्यनेन अम्-आगमः विधीयेत | तदा रधादिभ्यश्च (७.२.४५) इति सूत्रेण तयोः इट् 'वा' (विकल्पेन) भवति | अतः अनयोः धात्वोः अनिट्ट्वमपि अस्ति, वेट्ट्वम् अपि अस्ति | (अस्य सर्वस्य दर्शनेन प्रकटमस्ति किमर्थम् अम्-आगमपक्षे इडागमसहितरूपं न भवति— अधस्थसूत्रेण धातुः अनिट् (अनुदात्तः) चेदेव अमागमो भवति; तदर्थम् अनिट्-धातुषु इमौ द्वौ धातू पठितौ | अपि च झलादौ प्रत्यये परे एव अमागमः विधीयते |)
अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् (६.१.५९) = उपदेशे अनुदात्तः यः ऋदुपधः तस्य अम्-आगमः विकल्पेन भवति झलादौ अकिति प्रत्यये परे |
३) वा द्रुहमुहष्णुहष्णिहाम् (८.२.३३) = द्रुह्, मुह्, ष्णुह्, ष्णिह् एषां चतुर्णां धातूनां हकारस्य स्थाने विकल्पेन घकारादेशो भवति झलि पदान्ते च; घ्-अभावे हो ढः (८.२.३१) इत्यनेन ढकारादेशो भवति | द्रुहश्च मुहश्च ष्णुहश्च ष्णिहश्च तेषाम इतरेतर्तद्वान्द्वः, द्रुहमुहष्णुहष्णिहः, तेषां द्रुहमुहष्णुहष्णिहाम् | वा अव्ययपदं, द्रुहमुहष्णुहष्णिहां षष्ठ्यन्तं, द्विपदमिदं सूत्रम् | हो ढः (८.२.३१) इत्यस्मात् हः, दादेर्धातोर्घः (८.२.३२) इत्यस्मात् घः, झलो झलि (८.२.२६) इत्यस्मात् झलि, स्कोः संयोगाद्योरन्ते च (८.२.२९) इत्यस्मात् अन्ते, च इत्येषाम् अनुवृत्तिः | पदस्य (८.१.१६) इत्यस्य अधिकारः | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्— द्रुह-मुह-ष्णुह-ष्णिहाम् वा हः घः झलि पदस्य अन्ते च |
निरः कुषः (७.२.४६) = निरः परात् कुषो वलादेरार्धधातुकस्येड् वा स्यात् |
निर् + कुष् | निष्कोष्टा | निष्कोष्टुम् | निष्कोष्टव्यम् | निष्कोक्ष्यति | निरकोक्ष्यत् |
निष्कोषिता | निष्कोषितुम् | निष्कोषितव्यम् | निष्कोषिष्यति | निरकोषिष्यत् |
एते ३७ धातवः वेटः |
सेड्-धातवः
अनिड्धातून् च वेड्धातून् च विहाय अन्ये सर्वे धातवः सेटः |
सेट्-हलन्तधातूनां रूपाणि एतादृशानि—
उपधायां लघु-इक्-वर्णः अस्ति चेत् तस्य गुणो भवति—
लिख् | लेखिता | लेखितुम् | लेखितव्यम् | लेखिष्यति | अलेखिष्यत् |
कुप् | कोपिता | कोपितुम् | कोपितव्यम् | कोपिष्यते | अकोपिष्यत |
वृष् | वर्षिता | वर्षितुम् | वर्षितव्यम् | वर्षिष्यते | अवर्षिष्यत |
उपधायां लघु-इक्-वर्णः नास्ति चेत् केवलं वर्णमेलनं भवति—
वद् | वदिता | वदितुम् | वदितव्यम् | वदिष्यति | अवदिष्यत् |
मील् | मीलिता | मीलितुम् | मीलितव्यम् | मीलिष्यति | अमीलिष्यत् |
Swarup – July 2019
वेड्-धातवः---समग्रं चिन्तनम्
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