(१) रूपरहितत्वे सति स्पर्शवत्वं वायोः लक्षणम् |
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(११) मङ्गलाचरणस्य अनुमानवाक्ये हेतौ दलसार्थक्यम् |
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(२) तज्जन्यत्वे सति तज्जन्यजनकत्वं व्यापारस्य लक्षणम् |
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(१२) विद्यमानत्वे सति व्यावर्तकत्वं विशेषणस्य लक्षणम् |
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(३) चक्षुर्मात्रग्राह्यो गुणो रूपम् |
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(१३) लक्ष्यतावच्छेदकसमनियतत्वे सति व्यावर्तकत्वं लक्षणस्य लक्षणम् |
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(४) आद्यपतनासमवायिकारणं गुरुत्वम् |
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(१४) संयोगभिन्नत्वे सति संयोगासमवायिकारणं कर्म |
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(५) घ्राणग्राह्यो गुणो गन्धः |
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(१५) द्रव्यकर्मभिन्नत्वे सति सामान्यवान् गुणः |
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(६) सुखाद्युपलब्धिसाधनमिन्द्रियं मनः |
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(१६) नित्यत्वे सति अनेकसमवेतत्वं सामान्यस्य लक्षणम् |
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(७) संयोगनाशाको गुणो विभागः |
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(१७) गन्धसमानाधिकरणद्रव्यत्वापरजातिमत्त्वं पृथिव्याः लक्षणम् |
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(८) आद्यस्यन्दनासमवायिकारणं द्रवत्वम् |
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(१८) गुणसमानाधिकरणसत्ताभिन्नजातिमत्त्वं द्रव्यस्य लक्षणम् |
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(९) चूर्णादिपिण्डीभावहेतुर्गुणः स्नेहः |
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(१९) इन्द्रियस्य लक्षणम् |
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(१०) संस्कारमात्रजन्यं ज्ञानं स्मृतिः |
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(२०)
ध्वंसभिन्नत्वे सति ध्वंसाऽप्रतियोगित्वं नित्यत्वम् अथवा नित्यस्य लक्षणम्
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