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{{DISPLAYTITLE: 14 - समासः}} |
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<big ><span lang="SA" style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">अत्र समासप्रकरणस्य अध्ययनं भवति </span><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">| <span lang="SA">ये जनाः अधुना प्रथमवारं समासस्य पाठं पठन्ति </span>, <span lang="SA">ते अधस्तन-प्रथमं पाठं सम्यक् पठेयुः </span>| </span><span> </span><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif"> <span lang="SA">येषां पूर्वमेव समासपाठस्य कश्चन अनुभावः जातः </span>, <span lang="SA">ते प्रथमं पाठं त्यक्त्वा अग्रे गच्छेयुः </span>| <span lang="SA">समासप्रकरणस्य अध्ययनार्थम् उपसर्जनसंज्ञायाः अभिज्ञानम् अत्यवश्यकम् अस्ति </span>| <span lang="SA">तस्मिन् विषये प्रथमे पाठे उक्तम् अस्ति </span>| <span lang="SA">पाणिनेः अष्टाध्यायां कारकप्रकरणस्य </span>, <span lang="SA">समासप्रकरणस्य च मध्ये कश्चित् महत्वपूर्णः सम्बन्धः वर्तते </span>| <span lang="SA">समासप्रकरणस्य अध्ययनार्थं कारकप्रकरणस्य केषाञ्चन सूत्राणां पूर्वज्ञानम् अपेक्षितम् अस्ति </span>| <span lang="SA">यत्र यत्र तादृशसम्बन्धज्ञानम् आवश्यकम् अस्ति समासप्रकरणस्य अध्ययनार्थं तत्र तत्र कारकसम्बद्धसूत्राणाम् उल्लेखः क्रियते </span></span><span> </span><span style="font-family:Mangal,serif">| </span></big> |
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<big>अत्र समासप्रकरणस्य अध्ययनं भवति | ये जनाः अधुना प्रथमवारं समासस्य पाठं पठन्ति, ते अधस्तन-प्रथमं पाठं सम्यक् पठेयुः | येषां पूर्वमेव समासपाठस्य कश्चन अनुभावः जातः, ते प्रथमं पाठं त्यक्त्वा अग्रे गच्छेयुः | समासप्रकरणस्य अध्ययनार्थम् उपसर्जनसंज्ञायाः अभिज्ञानम् अत्यावश्यकम् अस्ति | तस्मिन् विषये प्रथमे पाठे उक्तम् अस्ति | पाणिनेः अष्टाध्यायां कारकप्रकरणस्य, समासप्रकरणस्य च मध्ये कश्चित् महत्वपूर्णः सम्बन्धः वर्तते | समासप्रकरणस्य अध्ययनार्थं कारकप्रकरणस्य केषाञ्चन सूत्राणां पूर्वज्ञानम् अपेक्षितम् अस्ति | यत्र यत्र तादृशसम्बन्धज्ञानम् आवश्यकम् अस्ति समासप्रकरणस्य अध्ययनार्थं तत्र तत्र कारकसम्बद्धसूत्राणाम् उल्लेखः क्रियते |</big> |
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<big><span lang="SA" style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">सामान्यतया शात्राध्यनने समासप्रकरणस्य अध्ययनम् अन्यान् सर्वान् प्रकरणान् पठित्वा अन्ते भवति </span><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">|<span lang="SA">किमर्थम् इति चेत् समासप्रकरणस्य अतीव गहनसम्बन्धः वर्तते अन्यैः प्रकरणैः सह </span>|<span lang="SA">समासप्रकरणं पठितुं कारकप्रकरणस्य</span>, <span lang="SA">सुबन्तप्रकरणस्य च ज्ञानम् अत्यावश्यकम्</span>|</span></big> |
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<big>सामान्यतया शात्राध्यनने समासप्रकरणस्य अध्ययनम् अन्यान् सर्वान् प्रकरणान् पठित्वा अन्ते भवति | किमर्थम् इति चेत् समासप्रकरणस्य अतीव गहनसम्बन्धः वर्तते अन्यैः प्रकरणैः सह | समासप्रकरणं पठितुं कारकप्रकरणस्य, सुबन्तप्रकरणस्य च ज्ञानम् अत्यावश्यकम् |</big> |
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<big ><span lang="SA" style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">अस्माकं समासकरपत्राणि मातुः पाठ्यक्रमम् आश्रित्य </span><span> </span><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif"> <span lang="SA">रचितानि सन्ति </span>| <span lang="SA">मातुः पाठे किं वैशिष्ट्यं वर्तते </span>? <span lang="SA">मातुः समासप्रकरणे किं नूतनम् अस्ति अपि च किमर्थम् अस्माभिः सर्वैः अयं पाठ्यक्रमः अपेक्षितः इत्यत्र उच्यते ।</span></span></big> |
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<big>अस्माकं समासकरपत्राणि मातुः पाठ्यक्रमम् आश्रित्य रचितानि सन्ति | मातुः पाठे किं वैशिष्ट्यं वर्तते ? मातुः समासप्रकरणे किं नूतनम् अस्ति अपि च किमर्थम् अस्माभिः सर्वैः अयं पाठ्यक्रमः अपेक्षितः इत्यत्र उच्यते |</big> |
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<big ><span lang="SA" style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">मातुः समासप्रकरणं पाणिनेः समासप्रकरणम् एव </span><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">; <span lang="SA">वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी अपि तथा </span>| <span lang="SA">तर्हि तयोः भेदः कुत्र वर्तते इत्यत्र उच्यते </span>| <span lang="SA">द्वयोः विवरणं </span></span><span> </span><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif"> <span lang="SA">तु तदेव </span>, <span lang="SA">अतः विवरणदृष्ट्या भेदो नास्ति </span>| <span lang="SA">उत्तरं प्राप्यते पाठ्यक्रमे - येन क्रमेण सर्वं विवरणं दत्तं </span>, <span lang="SA">तत्र महान् भेदः वर्तते </span>| <span lang="SA">समासप्रकरणे बहूनि सूत्राणि वर्तन्ते </span>, <span lang="SA">अतः पाठनस्य पद्धतिः अत्यन्तं महत्त्वपूर्णा ।</span></span></big> |
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<big ><span lang="SA" style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">प्रत्येकस्मिन् स्तरे मातुः पाठ्यक्रमः पाणिनेः सूत्राणि अवलम्ब्य समायोजितः </span><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">| <span lang="SA">मातुः पाठ्यक्रमे समासप्रकरणस्य अन्यैः प्रकरणै सह </span></span><span> </span><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif"> <span lang="SA">सम्बन्धः प्रतिपाद्यते येन समग्रहदृष्टिः सिद्ध्यति </span>| </span></big> |
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<big>मातुः समासप्रकरणं पाणिनेः समासप्रकरणम् एव; वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी अपि तथा | तर्हि तयोः भेदः कुत्र वर्तते इत्यत्र उच्यते | द्वयोः विवरणं तु तदेव, अतः विवरणदृष्ट्या भेदो नास्ति | उत्तरं प्राप्यते पाठ्यक्रमे - येन क्रमेण सर्वं विवरणं दत्तं, तत्र महान् भेदः वर्तते | समासप्रकरणे बहूनि सूत्राणि वर्तन्ते, अतः पाठनस्य पद्धतिः अत्यन्तं महत्त्वपूर्णा |</big> |
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<big ><span lang="SA" style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">१ </span><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">) <span lang="SA">सम्पूर्णसमासप्रकरणस्य मानचित्रं दीयते </span>| <span lang="SA">अष्टाध्यायां </span></span><span> </span><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif"> <span lang="SA">केषाम् अध्यायानां </span>, <span lang="SA">सूत्राणाम् </span>, <span lang="SA">अधिकाराणां च ज्ञानम् अत्यावश्यकं समासप्रकरणस्य अध्ययनार्थम् इति पाठस्य आरम्भे एव माता वदति येन अस्माकं मनसि एकं मानचित्रं भवति </span>| </span></big> |
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<big ><span lang="SA" style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">२ </span><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">) <span lang="SA">समास-कारकयोः सम्बन्धः </span></span><span> </span><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif"> <span lang="SA">स्पष्टीक्रियते अनेन कुत्र समासः निषिध्यते </span>, <span lang="SA">किमर्थं कस्यचित् विभक्तेः उपयोगः इति ज्ञायते </span>| </span></big> |
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<big>प्रत्येकस्मिन् स्तरे मातुः पाठ्यक्रमः पाणिनेः सूत्राणि अवलम्ब्य समायोजितः | मातुः पाठ्यक्रमे समासप्रकरणस्य अन्यैः प्रकरणै सह सम्बन्धः प्रतिपाद्यते येन समग्रहदृष्टिः सिद्ध्यति |</big> |
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<big ><span lang="SA" style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">३ </span><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">) <span lang="SA">समास-तद्धितयोः सम्बन्धः प्रक्रियास्तरे ज्ञायते ।</span></span></big> |
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<span lang="SA" style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif"><big>४) उत्तरपदाधिकारस्य सम्बन्धः समासप्रकरणेन सह ज्ञायते ।</big ></span> |
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<big>१) सम्पूर्णसमासप्रकरणस्य मानचित्रं दीयते | अष्टाध्यायां केषाम् अध्यायानां, सूत्राणाम्, अधिकाराणां च ज्ञानम् अत्यावश्यकं समासप्रकरणस्य अध्ययनार्थम् इति पाठस्य आरम्भे एव माता वदति येन अस्माकं मनसि एकं मानचित्रं भवति |</big> |
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<big ><span lang="SA" style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">एवं च सर्वत्र सूत्राधारीकृत्य पाठ्यक्रमः व्यवस्थापितः </span><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">| <span lang="SA">मातुः पाठस्य मार्गः ह्रस्वः </span>| <span lang="SA">मातुः क्रमे तर्कः विद्यते </span>, <span lang="SA">सर्वम् आयोजितं सूत्राणुगुणं </span>; <span lang="SA">सिद्धान्तकौमुदी न तथा </span>| <span lang="SA">कथमिति अग्रे तत्तकरपत्रे पश्येम </span>| </span></big> |
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<big>२) समास-कारकयोः सम्बन्धः स्पष्टीक्रियते अनेन कुत्र समासः निषिध्यते, किमर्थं कस्यचित् विभक्तेः उपयोगः इति ज्ञायते |</big> |
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<big>३) समास-तद्धितयोः सम्बन्धः प्रक्रियास्तरे ज्ञायते |</big> |
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<big>४) उत्तरपदाधिकारस्य सम्बन्धः समासप्रकरणेन सह ज्ञायते |</big> |
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<big>अस्य पाठस्य अन्तर्भूताः भागाः --</big> |
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<big>एवं च सर्वत्र सूत्राधारीकृत्य पाठ्यक्रमः व्यवस्थापितः | मातुः पाठस्य मार्गः ह्रस्वः | मातुः क्रमे तर्कः विद्यते, सर्वम् आयोजितं सूत्राणुगुणं; सिद्धान्तकौमुदी न तथा | कथमिति अग्रे तत्तद्करपत्रे पश्येम |</big> |
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<span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif"><big> </big></span> |
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<big>[[01 - समासपरिचयः|01 - '''समासपरिचयः''']]</big> |
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<big>अस्य पाठस्य अन्तर्भूताः भागाः --</big> |
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<big>[[02A - अव्ययीभावसमासः| 02A - '''अव्ययीभावसमासः ''']]</big> |
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|[[14---samAsaH/01---samAsaparicayaH|<big>०१ - समासपरिचयः</big>]] |
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<big>[[ 02B - अव्ययीभावसमासः, द्वितीयभागः| 02B - '''अव्ययीभावसमासः, द्वितीयभागः ''']]</big> |
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|[[ 14---samAsaH/02A- --avyayiibhAvasamAsaH| <big>०२ A - अव्ययीभावसमासः</big> ]] |
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<big>[[03A - तत्पुरुषसमासः - सामान्यतत्पुरुषः|03A - '''तत्पुरुषसमासः''' '''- सामान्यतत्पुरुषसमासः''']]</big> |
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|[[ 14- --samAsaH/2B--avyayibhavasamasah-dvitiiyabhAgaH| <big>०२ B - अव्ययीभावसमासः, द्वितीयभागः</big> ]] |
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<big>[[03B- तत्पुरुषसमासः - नञ्प्रभृतयः|03B - '''तत्पुरुषसमासः''' '''- नञ्प्रभृतयः''']]</big> |
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<big>[[03C - तत्पुरुषसमासः - कर्मधारयः|03C - '''तत्पुरुषसमासः -''' '''कर्मधारयसमासः''']]</big> |
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|<big>[[14---samAsaH/03A---tatpuruShasamAsaH---sAmAnyatatpuruSHa-samAsaH|०३ A - तत्पुरुषसमासः - सामान्यतत्पुरुषः]]</big> |
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<big>[[03D- तत्पुरुषसमासः - द्विगुः|03D - '''तत्पुरुषसमासः''' - '''द्विगुसमासः''']]</big>
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|[[14---samAsaH/03B--tatpuruShasamAsaH---naNYprabhRitibhyaH|<big>०३ B- तत्पुरुषसमासः - नञ्प्रभृतयः</big>]] |
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|[[14---samAsaH/03C---tatpuruShasamAsaH---karmadhArayaH|<big>०३ C - तत्पुरुषसमासः - कर्मधारयः</big>]] |
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<big>[[04 - बहुव्रीहिसमासः| 04 - '''बहुव्रीहिसमासः ''']]</big> |
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|[[14---samAsaH/03D--tatpuruShasamAsaH---dvigusamAsaH|<big>०३ D- तत्पुरुषसमासः - द्विगुः</big>]] |
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|[[ 14---samAsaH/04- --bahuvriihisamAsaH| <big>०४ - बहुव्रीहिसमासः</big> ]] |
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|[[ 14---samAsaH/05- --dvandvasamAsaH| <big>०५ - द्वन्द्वसमासः</big> ]] |
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|[[ 14---samAsaH/06-- -aluk-prakaraNam| <big>०६ - अलुक् -प्रकरणम्</big> ]] |
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<big>[[05 - द्वन्द्वसमासः| 05 - '''द्वन्द्वसमासः ''']]</big> |
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<big>[[06- अलुक् - प्रकरणम्| 06 - '''अलुक्-प्रकरणम् ''']]</big> |
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<big>[[07 - परिशिष्टम्|07 - '''परिशिष्टम्''']]</big> |
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<big><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">Vidhya</span><span> </span><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif"> March <span lang="HI">2020</span></span></big> |
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<small><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif">Vidhya</span><span> </span><span style="font-family:Lohit Devanagari,sans-serif"> March <span lang="HI">2020</span></span></small> |
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अत्र समासप्रकरणस्य अध्ययनं भवति | ये जनाः अधुना प्रथमवारं समासस्य पाठं पठन्ति, ते अधस्तन-प्रथमं पाठं सम्यक् पठेयुः | येषां पूर्वमेव समासपाठस्य कश्चन अनुभावः जातः, ते प्रथमं पाठं त्यक्त्वा अग्रे गच्छेयुः | समासप्रकरणस्य अध्ययनार्थम् उपसर्जनसंज्ञायाः अभिज्ञानम् अत्यावश्यकम् अस्ति | तस्मिन् विषये प्रथमे पाठे उक्तम् अस्ति | पाणिनेः अष्टाध्यायां कारकप्रकरणस्य, समासप्रकरणस्य च मध्ये कश्चित् महत्वपूर्णः सम्बन्धः वर्तते | समासप्रकरणस्य अध्ययनार्थं कारकप्रकरणस्य केषाञ्चन सूत्राणां पूर्वज्ञानम् अपेक्षितम् अस्ति | यत्र यत्र तादृशसम्बन्धज्ञानम् आवश्यकम् अस्ति समासप्रकरणस्य अध्ययनार्थं तत्र तत्र कारकसम्बद्धसूत्राणाम् उल्लेखः क्रियते |
सामान्यतया शात्राध्यनने समासप्रकरणस्य अध्ययनम् अन्यान् सर्वान् प्रकरणान् पठित्वा अन्ते भवति | किमर्थम् इति चेत् समासप्रकरणस्य अतीव गहनसम्बन्धः वर्तते अन्यैः प्रकरणैः सह | समासप्रकरणं पठितुं कारकप्रकरणस्य, सुबन्तप्रकरणस्य च ज्ञानम् अत्यावश्यकम् |
अस्माकं समासकरपत्राणि मातुः पाठ्यक्रमम् आश्रित्य रचितानि सन्ति | मातुः पाठे किं वैशिष्ट्यं वर्तते ? मातुः समासप्रकरणे किं नूतनम् अस्ति अपि च किमर्थम् अस्माभिः सर्वैः अयं पाठ्यक्रमः अपेक्षितः इत्यत्र उच्यते |
मातुः समासप्रकरणं पाणिनेः समासप्रकरणम् एव; वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी अपि तथा | तर्हि तयोः भेदः कुत्र वर्तते इत्यत्र उच्यते | द्वयोः विवरणं तु तदेव, अतः विवरणदृष्ट्या भेदो नास्ति | उत्तरं प्राप्यते पाठ्यक्रमे - येन क्रमेण सर्वं विवरणं दत्तं, तत्र महान् भेदः वर्तते | समासप्रकरणे बहूनि सूत्राणि वर्तन्ते, अतः पाठनस्य पद्धतिः अत्यन्तं महत्त्वपूर्णा |
प्रत्येकस्मिन् स्तरे मातुः पाठ्यक्रमः पाणिनेः सूत्राणि अवलम्ब्य समायोजितः | मातुः पाठ्यक्रमे समासप्रकरणस्य अन्यैः प्रकरणै सह सम्बन्धः प्रतिपाद्यते येन समग्रहदृष्टिः सिद्ध्यति |
१) सम्पूर्णसमासप्रकरणस्य मानचित्रं दीयते | अष्टाध्यायां केषाम् अध्यायानां, सूत्राणाम्, अधिकाराणां च ज्ञानम् अत्यावश्यकं समासप्रकरणस्य अध्ययनार्थम् इति पाठस्य आरम्भे एव माता वदति येन अस्माकं मनसि एकं मानचित्रं भवति |
२) समास-कारकयोः सम्बन्धः स्पष्टीक्रियते अनेन कुत्र समासः निषिध्यते, किमर्थं कस्यचित् विभक्तेः उपयोगः इति ज्ञायते |
३) समास-तद्धितयोः सम्बन्धः प्रक्रियास्तरे ज्ञायते |
४) उत्तरपदाधिकारस्य सम्बन्धः समासप्रकरणेन सह ज्ञायते |
एवं च सर्वत्र सूत्राधारीकृत्य पाठ्यक्रमः व्यवस्थापितः | मातुः पाठस्य मार्गः ह्रस्वः | मातुः क्रमे तर्कः विद्यते, सर्वम् आयोजितं सूत्राणुगुणं; सिद्धान्तकौमुदी न तथा | कथमिति अग्रे तत्तद्करपत्रे पश्येम |
अस्य पाठस्य अन्तर्भूताः भागाः --
Vidhya March 2020