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<big>'''उतश्च प्रत्ययादसंयोगपूर्वात्''' (६.४.१०६) = प्रत्ययावयव-उकारात् प्राक् संयोगः नास्ति चेत्, परस्य हि-प्रत्ययस्य लुक् (लोपः) भवति | न विद्यते पूर्वः संयोगः यस्मात्, सः असंयोगपूर्वः, बहुव्रीहिः; तस्मात् असंयोगपूर्वात् | उतः पञ्चम्यन्तं, च अव्ययपदं, प्रत्ययात् पञ्चम्यन्तम्, असंयोगपूर्वात् पञ्चम्यन्तम्, अनेकपदमिदं |
<big>'''उतश्च प्रत्ययादसंयोगपूर्वात्''' (६.४.१०६) = प्रत्ययावयव-उकारात् प्राक् संयोगः नास्ति चेत्, परस्य हि-प्रत्ययस्य लुक् (लोपः) भवति | न विद्यते पूर्वः संयोगः यस्मात्, सः असंयोगपूर्वः, बहुव्रीहिः; तस्मात् असंयोगपूर्वात् | उतः पञ्चम्यन्तं, च अव्ययपदं, प्रत्ययात् पञ्चम्यन्तम्, असंयोगपूर्वात् पञ्चम्यन्तम्, अनेकपदमिदं सूत्रेम् | '''चिणो लुक्''' (६.४.१०४) इत्यस्मात् '''लुक्''' इत्यस्य अनुवृत्तिः | '''अतो हेः''' (६.४.१०५) इत्यस्मात् '''हेः''' इत्यस्य अनुवृत्तिः | '''अङ्गस्य''' (६.४.१) इत्यस्य अधिकारः | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्— '''असंयोगपूर्वात् उतः प्रत्ययात् अङ्गात् च हेः लुक्''' |</big> |
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