7---ArdhadhAtukaprakaraNam/14---halantadhAtUnAm-iDvyavasthA: Difference between revisions
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{{DISPLAYTITLE:14 - हलन्तधातूनाम् इड्व्यवस्था}} |
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!<big>ध्वनिमुद्रणानि -</big> |
!<big>ध्वनिमुद्रणानि -</big> |
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|'''<big>2022 वर्गः</big>''' |
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|<big>१) [https://archive.org/download/SamskritaVyakaranam2015-PaniniiyaStudy/311_iD-vyavasthA---ajantadhAtUnAm-iDvyavasthA---abhyAsaH--panca-rUpANi_%2B_halantadhAtUnAm-iDvyavasthA_2022-05-24.mp3 iD-vyavasthA---ajantadhAtUnAm-iDvyavasthA---abhyAsaH--panca-rUpANi_+_halantadhAtUnAm-iDvyavasthA_2022-05-24]</big> |
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|<big>२) [https://archive.org/download/SamskritaVyakaranam2015-PaniniiyaStudy/312_iD-vyavasthA---halantadhAtUnAm-iDvyavasthA---cintanam_%2B_abhyAsaH_2022-05-31.mp3 iD-vyavasthA---halantadhAtUnAm-iDvyavasthA---cintanam_+_abhyAsaH_2022-05-31]</big> |
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|<big>३) [https://archive.org/download/SamskritaVyakaranam2015-PaniniiyaStudy/313_iD-vyavasthA---halantadhAtUnAm-iDvyavasthA---cintanam_%2B_abhyAsaH_2022-06-07.mp3 iD-vyavasthA---halantadhAtUnAm-iDvyavasthA---cintanam_+_abhyAsaH_2022-06-07]</big> |
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|<big>४) [https://archive.org/download/SamskritaVyakaranam2015-PaniniiyaStudy/314_iD-vyavasthA---halantadhAtUnAm-iDvyavasthA---abhyAsaH_2022-06-14.mp3 iD-vyavasthA---halantadhAtUnAm-iDvyavasthA---abhyAsaH_2022-06-14]</big> |
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|<big>५) [https://archive.org/download/SamskritaVyakaranam2015-PaniniiyaStudy/317_iD-vyavasthA---ajanta-halanta-ca-dhAtUnAm-iDvyavasthA-abhyAsaH_%2B_veD-dhAtavaH_2022-07-05.mp3 iD-vyavasthA---ajanta-halanta-ca-dhAtUnAm-iDvyavasthA-abhyAsaH_+_veD-dhAtavaH_2022-07-05]</big> |
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|'''<big>2019 वर्गः</big>''' |
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|<big>१) [https://archive.org/download/Samskrita-Vyakaranam-2014_Paniniiya-Study-I/197_ajantadhAtUnAm-iDvyavasthA_%2B_halantadhAtUnAm-iDvyavasthA_2019-07-14.mp3 ajantadhAtUnAm-iDvyavasthA_+_halantadhAtUnAm-iDvyavasthA_2019-07-14]</big> |
|<big>१) [https://archive.org/download/Samskrita-Vyakaranam-2014_Paniniiya-Study-I/197_ajantadhAtUnAm-iDvyavasthA_%2B_halantadhAtUnAm-iDvyavasthA_2019-07-14.mp3 ajantadhAtUnAm-iDvyavasthA_+_halantadhAtUnAm-iDvyavasthA_2019-07-14]</big> |
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|<big>६) [https://archive.org/download/Samskrita-Vyakaranam-2014_Paniniiya-Study-I/202_ajantadhAtUnAM-ca-halantadhAtUnAm-iDvyavasthA---abhyAsaH-4_%2B_veT-dhAtavaH_2019-08-18.mp3 ajantadhAtUnAM-ca-halantadhAtUnAm-iDvyavasthA---abhyAsaH-4_+_veT-dhAtavaH_2019-08-18]</big> |
|<big>६) [https://archive.org/download/Samskrita-Vyakaranam-2014_Paniniiya-Study-I/202_ajantadhAtUnAM-ca-halantadhAtUnAm-iDvyavasthA---abhyAsaH-4_%2B_veT-dhAtavaH_2019-08-18.mp3 ajantadhAtUnAM-ca-halantadhAtUnAm-iDvyavasthA---abhyAsaH-4_+_veT-dhAtavaH_2019-08-18]</big> |
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<u><big>अनिट्-हलन्तधातवः</big></u> |
<u><big>अनिट्-हलन्तधातवः</big></u> |
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{| class="wikitable" style="text-align:center; width: 100%; height: 125px" ; "margin: 1em 2em 0;" |
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{| cellpadding=15 style="border:0px" |
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|<u><big>धातुः</big></u> |||||||||| <u><big>तास् (लुट्)</big></u> |||||||||| <u><big>तुमुन्</big></u> |||||||||| <u><big>तव्यत्</big></u> |
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|<big>शक्</big> || |||||||| <big>शक्ता</big> || |||||||| <big>शक्तुम्</big> || |||||||| <big>शक्तव्यम्</big> |
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|<big>धातुः</big> |
|<big><u>धातुः</u></big> |
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|<big>तास् (लुट्)</big> |
|<big><u>तास् (लुट्)</u></big> |
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|<big>तुमुन्</big> |
|<big><u>तुमुन्</u></big> |
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|<big>तव्यत्</big> |
|<big><u>तव्यत्</u></big> |
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|<big>स्य (लृट्)</big> |
|<big><u>स्य (लृट्)</u></big> |
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|<big>स्य (लृङ्)</big> |
|<big><u>स्य (लृङ्)</u></big> |
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|<big>शक्</big> |
|<big>शक्</big> |
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{| class="wikitable" style="text-align:center; width: 100%; height: 450px" ; "margin: 1em 2em 0;" |
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|<big>पच्</big> |
|<big>पच्</big> |
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|<big>रिच् |
|<big>रिच्</big> |
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|<big>रेक्ता</big> |
|<big>रेक्ता</big> |
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|<big>रेक्तुम्</big> |
|<big>रेक्तुम्</big> |
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|<big>विच् |
|<big>विच्</big> |
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|<big>वेक्ता</big> |
|<big>वेक्ता</big> |
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|<big>वेक्तुम्</big> |
|<big>वेक्तुम्</big> |
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|<big>सिच् |
|<big>सिच्</big> |
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|<big>सेक्ता</big> |
|<big>सेक्ता</big> |
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|<big>सेक्तुम्</big> |
|<big>सेक्तुम्</big> |
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|<big>मुच् |
|<big>मुच्</big> |
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|<big>मोक्ता</big> |
|<big>मोक्ता</big> |
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|<big>मोक्तुम्</big> |
|<big>मोक्तुम्</big> |
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<big>अन्ये सर्वे चकारान्तधातवः सेटः |</big> |
<big>अन्ये सर्वे चकारान्तधातवः सेटः |</big> |
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<big>प्रक्रिया—'''चोः कुः''' (८.२.३०) = झलि पदान्ते कुत्वम् ।</big> |
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<big><br /></big> |
<big><br /></big> |
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<big>३. एकाच्-छकारान्तधातवः - एक एव छकारन्तधातुः अनिट् अस्ति |</big> |
<big>३. एकाच्-छकारान्तधातवः - एक एव छकारन्तधातुः अनिट् अस्ति |</big> |
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|<big>प्रच्छ्</big> |
|<big>प्रच्छ्</big> |
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|<big>प्रष्टा</big> |
|<big>प्रष्टा</big> |
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<big>अन्ये सर्वे छकारान्तधातवः सेटः |</big> |
<big>अन्ये सर्वे छकारान्तधातवः सेटः |</big> |
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<big>प्रक्रिया—'''व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां षः''' (८.२.३६), '''ष्टुना ष्टुः''' (८.४.४१) ।</big> |
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<big><br /></big> |
<big><br /></big> |
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|<big>त्यज्</big> |
|<big>त्यज्</big> |
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|<big>त्यक्ता</big> |
|<big>त्यक्ता</big> |
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|<big>अयक्ष्यत् /अयक्ष्यत</big> |
|<big>अयक्ष्यत् /अयक्ष्यत</big> |
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|<big>निज् |
|<big>निज्</big> |
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|<big>नेक्ता</big> |
|<big>नेक्ता</big> |
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|<big>नेक्तुम्</big> |
|<big>नेक्तुम्</big> |
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|<big>अनेक्ष्यत् /अनेक्ष्यत</big> |
|<big>अनेक्ष्यत् /अनेक्ष्यत</big> |
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|<big>विज् |
|<big>विज्</big> |
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|<big>वेक्ता</big> |
|<big>वेक्ता</big> |
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|<big>वेक्तुम्</big> |
|<big>वेक्तुम्</big> |
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|<big>अवेक्ष्यत् / अवेक्ष्यत</big> |
|<big>अवेक्ष्यत् / अवेक्ष्यत</big> |
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|<big>भुज् |
|<big>भुज्</big> |
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|<big>भोक्ता</big> |
|<big>भोक्ता</big> |
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|<big>भोक्तुम्</big> |
|<big>भोक्तुम्</big> |
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|<big>अभोक्ष्यत् / अभोक्ष्यत</big> |
|<big>अभोक्ष्यत् / अभोक्ष्यत</big> |
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|<big>युज् |
|<big>युज्</big> |
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|<big>योक्ता</big> |
|<big>योक्ता</big> |
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|<big>योक्तुम्</big> |
|<big>योक्तुम्</big> |
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|<big>अयोक्ष्यत् / अयोक्ष्यत</big> |
|<big>अयोक्ष्यत् / अयोक्ष्यत</big> |
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|<big>रुज् |
|<big>रुज्</big> |
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|<big>रोक्ता</big> |
|<big>रोक्ता</big> |
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|<big>रोक्तुम्</big> |
|<big>रोक्तुम्</big> |
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|<big>अरोक्ष्यत्</big> |
|<big>अरोक्ष्यत्</big> |
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|<big>सृज् |
|<big>सृज्<sup>१</sup></big> |
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|<big>स्रष्टा</big> |
|<big>स्रष्टा</big> |
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|<big>स्रष्टुम्</big> |
|<big>स्रष्टुम्</big> |
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|<big>अस्वङ्क्ष्यत</big> |
|<big>अस्वङ्क्ष्यत</big> |
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|<big>मस्ज् |
|<big>मस्ज्<sup>२,३</sup></big> |
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|<big>मङ्क्ता</big> |
|<big>मङ्क्ता</big> |
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|<big>मङ्क्तुम्</big> |
|<big>मङ्क्तुम्</big> |
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|<big>अमङ्क्ष्यत्</big> |
|<big>अमङ्क्ष्यत्</big> |
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|<big>भ्रस्ज् |
|<big>भ्रस्ज्<sup>३</sup></big> |
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|<big>भ्रष्टा</big> |
|<big>भ्रष्टा</big> |
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|<big>भ्रष्टुम्</big> |
|<big>भ्रष्टुम्</big> |
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Line 253: | Line 256: | ||
|<big>अभ्रक्ष्यत् / अभ्रक्ष्यत</big> |
|<big>अभ्रक्ष्यत् / अभ्रक्ष्यत</big> |
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|<big>भ्रस्ज् |
|<big>भ्रस्ज्<sup>४</sup></big> |
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|<big>भर्ष्टा</big> |
|<big>भर्ष्टा</big> |
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|<big>भर्ष्टुम्</big> |
|<big>भर्ष्टुम्</big> |
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<big>अन्ये सर्वे जकारान्तधातवः सेटः |</big> |
<big>अन्ये सर्वे जकारान्तधातवः सेटः |</big> |
||
<big>प्रक्रिया— '''चोः कुः''' (८.२.३०), '''खरि च''' (८.४.५५) // '''व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां षः''' (८.२.३६), '''ष्टुना ष्टुः''' (८.४.४१) ।</big> |
|||
<big>१) सृज्— '''सृजिदृशोर्झल्यमकिति''' (६.१.५८) = सृज विसर्गे, दृशिर्प्रेक्षणे इत्येतयोः धात्वोः झलादावकिति प्रत्यये परतः अमागमो भवति ।</big> <big>'''इको यणचि''' (६.१.७६) = इकः स्थाने यण्-आदेशः स्यात् अचि परे संहितायां विषये |</big> |
|||
<big>२) मस्ज्— '''मस्जिनशोर्झलि''' (७.२.६०) = मस्ज्-धातोः नश्-धातोः च नुमागमो भवति झलादि-प्रत्यये परे ।</big> |
|||
<big>३) मस्ज्, भ्रस्ज्— '''स्कोः संयोगाद्योरन्ते च''' (८.२.२९) = संयोगस्य प्रथमसदस्यः सकारः ककारः वा चेत्, संयोगस्य प्रथमसदस्यलोपो भवति न तु द्वितीयसदस्यस्य, झलि पदान्ते च |</big> |
|||
<big>४) भ्रस्ज्— '''भ्रस्जो रोपधयोः रमन्यतरस्याम्''' (६.४.४७) = भ्रस्ज्-धातोः रेफस्य च उपधावर्णस्य च विकल्पेन 'रम्' इति आगमः भवति आर्धधातुके प्रत्यये परे । '''मिदचोऽन्त्यात्परः''' (१.१.४७) । द्वयोः लोपः, रम् इति आगमः ।</big> |
|||
<big><br /></big> |
<big><br /></big> |
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Line 271: | Line 284: | ||
<big>५. एकाच्-दकारान्तधातवः - १५ धातवः अनिटः |</big> |
<big>५. एकाच्-दकारान्तधातवः - १५ धातवः अनिटः |</big> |
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{| class="wikitable" style= |
{| class="wikitable" style="text-align:center; width: 100%; height: 825px" ; "margin: 1em 2em 0;" |
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|<big>अद्</big> |
|<big>अद्</big> |
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|<big>अत्ता</big> |
|<big>अत्ता</big> |
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Line 307: | Line 320: | ||
|<big>अहत्स्यत</big> |
|<big>अहत्स्यत</big> |
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|<big>खिद् |
|<big>खिद्</big> |
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|<big>खेत्ता</big> |
|<big>खेत्ता</big> |
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|<big>खेत्तुम्</big> |
|<big>खेत्तुम्</big> |
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Line 314: | Line 327: | ||
|<big>अखेत्स्यत् / अखेत्स्यत</big> |
|<big>अखेत्स्यत् / अखेत्स्यत</big> |
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|<big>छिद् |
|<big>छिद्</big> |
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|<big>छेत्ता</big> |
|<big>छेत्ता</big> |
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|<big>छेत्तुम्</big> |
|<big>छेत्तुम्</big> |
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Line 321: | Line 334: | ||
|<big>अच्छेत्स्यत् / अच्छेत्स्यत</big> |
|<big>अच्छेत्स्यत् / अच्छेत्स्यत</big> |
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|<big>भिद् |
|<big>भिद्</big> |
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|<big>भेत्ता</big> |
|<big>भेत्ता</big> |
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|<big>भेत्तुम्</big> |
|<big>भेत्तुम्</big> |
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Line 328: | Line 341: | ||
|<big>अभेत्स्यत् / अभेत्स्यत</big> |
|<big>अभेत्स्यत् / अभेत्स्यत</big> |
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|<big>विद् |
|<big>विद्</big> |
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|<big>वेत्ता</big> |
|<big>वेत्ता</big> |
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|<big>वेत्तुम्</big> |
|<big>वेत्तुम्</big> |
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Line 335: | Line 348: | ||
|<big>अवेत्स्यत</big> |
|<big>अवेत्स्यत</big> |
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|<big>विद् |
|<big>विद्</big> |
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|<big>वेत्ता</big> |
|<big>वेत्ता</big> |
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|<big>वेत्तुम्</big> |
|<big>वेत्तुम्</big> |
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Line 342: | Line 355: | ||
|<big>अवेत्स्यत</big> |
|<big>अवेत्स्यत</big> |
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|<big>स्विद् |
|<big>स्विद्</big> |
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|<big>स्वेत्ता</big> |
|<big>स्वेत्ता</big> |
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|<big>स्वेत्तुम्</big> |
|<big>स्वेत्तुम्</big> |
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|<big>अस्वेत्स्यत्</big> |
|<big>अस्वेत्स्यत्</big> |
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|<big>क्षुद् |
|<big>क्षुद्</big> |
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|<big>क्षोत्ता</big> |
|<big>क्षोत्ता</big> |
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|<big>क्षोत्तुम्</big> |
|<big>क्षोत्तुम्</big> |
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Line 356: | Line 369: | ||
|<big>अक्षोत्स्यत् / अक्षोत्स्यत</big> |
|<big>अक्षोत्स्यत् / अक्षोत्स्यत</big> |
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|<big>तुद् |
|<big>तुद्</big> |
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|<big>तोत्ता</big> |
|<big>तोत्ता</big> |
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|<big>तोत्तुम्</big> |
|<big>तोत्तुम्</big> |
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Line 363: | Line 376: | ||
|<big>अतोत्स्यत् / अतोत्स्यत</big> |
|<big>अतोत्स्यत् / अतोत्स्यत</big> |
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|<big>नुद् |
|<big>नुद्</big> |
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|<big>नोत्ता</big> |
|<big>नोत्ता</big> |
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|<big>नोत्तुम्</big> |
|<big>नोत्तुम्</big> |
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Line 383: | Line 396: | ||
<big>अन्ये सर्वे दकारान्तधातवः सेटः |</big> |
<big>अन्ये सर्वे दकारान्तधातवः सेटः |</big> |
||
<big>प्रक्रिया— '''खरि च''' (८.४.५५) ।</big> |
|||
<big><br /></big> |
<big><br /></big> |
||
<big>६. एकाच्-धकारान्तधातवः - |
<big>६. एकाच्-धकारान्तधातवः - १२ धातवः अनिटः |</big> |
||
{| class="wikitable" style= |
{| class="wikitable" style="text-align:center; width: 100%; height: 600px" ; "margin: 1em 2em 0;" |
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|<big>व्यध्</big> |
|<big>व्यध्</big> |
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|<big>व्यद्धा</big> |
|<big>व्यद्धा</big> |
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|<big>अव्यत्स्यत्</big> |
|<big>अव्यत्स्यत्</big> |
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|<big>सिध् |
|<big>सिध्</big> |
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|<big>सेद्धा</big> |
|<big>सेद्धा</big> |
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|<big>सेद्धुम्</big> |
|<big>सेद्धुम्</big> |
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|<big>असेत्स्यत्</big> |
|<big>असेत्स्यत्</big> |
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|<big>क्रुध् |
|<big>क्रुध्</big> |
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|<big>क्रोद्धा</big> |
|<big>क्रोद्धा</big> |
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|<big>क्रोद्धुम्</big> |
|<big>क्रोद्धुम्</big> |
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|<big>अक्रोत्स्यत्</big> |
|<big>अक्रोत्स्यत्</big> |
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|<big>क्षुध् |
|<big>क्षुध्</big> |
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|<big>क्षोद्धा</big> |
|<big>क्षोद्धा</big> |
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|<big>क्षोद्धुम्</big> |
|<big>क्षोद्धुम्</big> |
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|<big>अक्षोत्स्यत्</big> |
|<big>अक्षोत्स्यत्</big> |
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|<big>बुध् |
|<big>बुध्</big> |
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|<big>बोद्धा</big> |
|<big>बोद्धा</big> |
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|<big>बोद्धुम्</big> |
|<big>बोद्धुम्</big> |
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|<big>अभोत्स्यत</big> |
|<big>अभोत्स्यत</big> |
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|<big>युध् |
|<big>युध्</big> |
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|<big>योद्धा</big> |
|<big>योद्धा</big> |
||
|<big>योद्धुम्</big> |
|<big>योद्धुम्</big> |
||
Line 432: | Line 447: | ||
|<big>अयोत्स्यत</big> |
|<big>अयोत्स्यत</big> |
||
|- |
|- |
||
|<big> |
|<big>रुध्</big> |
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|<big>रोद्धा</big> |
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|<big>रोद्धुम्</big> |
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|<big>रोद्धव्यम्</big> |
|||
|<big>रोत्स्यति</big> |
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|<big>अरोत्स्यत्</big> |
|||
|- |
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|<big>अनु+रुध्</big> |
|||
| <big>अनुरोद्धा</big> |
|||
|<big>अनुरोद्धुम्</big> |
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| <big>अनुरोद्धव्यम्</big> |
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|<big>अनुरोत्स्यते</big> |
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|<big>अन्वरोत्स्यत</big> |
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|- |
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|<big>शुध्</big> |
|||
|<big>शोद्धा</big> |
|<big>शोद्धा</big> |
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|<big>शोद्धुम्</big> |
|<big>शोद्धुम्</big> |
||
Line 463: | Line 492: | ||
<big><br /> |
<big><br /> |
||
व्यधँ ताडने दि प० (विध्यति), षिधुँ संराद्धौ दि प० (सिध्यति), क्रुधँ क्रोधे दि प० (क्रुध्यति), क्षुधँ बुभुक्षायाम् दि प० (क्षुध्यति), बुधँ अवगमने दि आ० (बुध्यते), युधँ सम्प्रहारे दि आ० (युध्यते), शुधँ शौचे दि प० (शुध्यति), राधँ वृद्धौ दि प० (राध्यति), राधँ संसिद्धौ स्वा प० (राध्नोति), साधँ संसिद्धौ स्वा प० (साध्नोति), बन्धँ बन्धने क्र्या प० (बध्नाति)</big> |
व्यधँ ताडने दि प० (विध्यति), षिधुँ संराद्धौ दि प० (सिध्यति), क्रुधँ क्रोधे दि प० (क्रुध्यति), क्षुधँ बुभुक्षायाम् दि प० (क्षुध्यति), बुधँ अवगमने दि आ० (बुध्यते), युधँ सम्प्रहारे दि आ० (युध्यते), रुधिर् आवरणे रुधादि प० (रुणद्धि), अनु + रुधँ कामे दि आ० (अनुरुध्यते), शुधँ शौचे दि प० (शुध्यति), राधँ वृद्धौ दि प० (राध्यति), राधँ संसिद्धौ स्वा प० (राध्नोति), साधँ संसिद्धौ स्वा प० (साध्नोति), बन्धँ बन्धने क्र्या प० (बध्नाति)</big> |
||
<big>अन्ये सर्वे धकारान्तधातवः सेटः |</big> |
<big>अन्ये सर्वे धकारान्तधातवः सेटः |</big> |
||
<big>प्रक्रिया— '''झषस्तथोर्धोऽधः''' (८.२.४०) = झष्-उत्तरस्य तकारथकारयोः स्थाने धकारादेशो भवति, धा-धातुं वर्जयित्वा | '''झलां जश् झशि''' (८.४.५३) = झलां स्थाने जशादेशो भवति झशि परे |</big> |
|||
<big>स्य-प्रत्यये परे '''खरि च''' (८.४.५५) ।</big> |
|||
<big>बुध्, बन्ध् (स्य-प्रत्यये परे)— '''एकाचो बशो भष् झषन्तस्य स्ध्वोः''' (८.२.३७) = धातोरवयवो यो झषन्त एकाच्, तस्य बशः भषादेशो भवति सकारे परे, ध्व-शब्दे परे, पदान्ते च |</big> |
|||
<big><br /></big> |
<big><br /></big> |
||
Line 471: | Line 506: | ||
<big>७. एकाच्-नकारान्तधातवः - द्वौ धातू अनिटौ |</big> |
<big>७. एकाच्-नकारान्तधातवः - द्वौ धातू अनिटौ |</big> |
||
{| class="wikitable" style= |
{| class="wikitable" style="text-align:center; width: 100%; height: 100px" ; "margin: 1em 2em 0;" |
||
|<big>मन्</big> |
|<big>मन्</big> |
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|<big>मन्ता</big> |
|<big>मन्ता</big> |
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Line 501: | Line 536: | ||
{| class="wikitable" style= |
{| class="wikitable" style="text-align:center; width: 100%; height: 900px" ; "margin: 1em 2em 0;" |
||
|<big>तप्</big> |
|<big>तप्</big> |
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|<big>तप्ता</big> |
|<big>तप्ता</big> |
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Line 534: | Line 569: | ||
|<big>अस्वप्स्यत्</big> |
|<big>अस्वप्स्यत्</big> |
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|- |
|- |
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|<big>क्षिप् |
|<big>क्षिप्</big> |
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|<big>क्षेप्ता</big> |
|<big>क्षेप्ता</big> |
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|<big>क्षेप्तुम्</big> |
|<big>क्षेप्तुम्</big> |
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Line 541: | Line 576: | ||
|<big>अक्षेप्स्यत् / अक्षेप्स्यत</big> |
|<big>अक्षेप्स्यत् / अक्षेप्स्यत</big> |
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|- |
|- |
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|<big>तिप् |
|<big>तिप्</big> |
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|<big>तेप्ता</big> |
|<big>तेप्ता</big> |
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|<big>तेप्तुम्</big> |
|<big>तेप्तुम्</big> |
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Line 548: | Line 583: | ||
|<big>अतेप्स्यत</big> |
|<big>अतेप्स्यत</big> |
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|- |
|- |
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|<big>लिप् |
|<big>लिप्</big> |
||
|<big>लेप्ता</big> |
|<big>लेप्ता</big> |
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|<big>लेप्तुम्</big> |
|<big>लेप्तुम्</big> |
||
Line 555: | Line 590: | ||
|<big>अलेप्स्यत् / अलेप्स्यत</big> |
|<big>अलेप्स्यत् / अलेप्स्यत</big> |
||
|- |
|- |
||
|<big>छुप् |
|<big>छुप्</big> |
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|<big>छोप्ता</big> |
|<big>छोप्ता</big> |
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|<big>छोप्तुम्</big> |
|<big>छोप्तुम्</big> |
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Line 562: | Line 597: | ||
|<big>अच्छोप्स्यत्</big> |
|<big>अच्छोप्स्यत्</big> |
||
|- |
|- |
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|<big>लुप् |
|<big>लुप्</big> |
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|<big>लोप्ता</big> |
|<big>लोप्ता</big> |
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|<big>लोप्तुम्</big> |
|<big>लोप्तुम्</big> |
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Line 569: | Line 604: | ||
|<big>अलोप्स्यत् / अलोप्स्यत</big> |
|<big>अलोप्स्यत् / अलोप्स्यत</big> |
||
|- |
|- |
||
|<big>तृप् |
|<big>तृप्<sup>१</sup></big> |
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<big>तृप्*-त्रप्</big> |
|||
|<big>तर्प्ता</big> |
|<big>तर्प्ता</big> |
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Line 588: | Line 621: | ||
<big>अत्रप्स्यत्</big> |
<big>अत्रप्स्यत्</big> |
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|- |
|- |
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|<big>दृप् |
|<big>दृप्<sup>१</sup></big> |
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<big>दृप्*-द्रप्</big> |
|||
|<big>दर्प्ता</big> |
|<big>दर्प्ता</big> |
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Line 607: | Line 638: | ||
<big>अद्रप्स्यत्</big> |
<big>अद्रप्स्यत्</big> |
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|- |
|- |
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|<big>सृप् |
|<big>सृप्<sup>१</sup></big> |
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<big>सृप्*-स्रप्</big> |
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|<big>सर्प्ता</big> |
|<big>सर्प्ता</big> |
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Line 640: | Line 669: | ||
<big><br /></big> |
<big><br /></big> |
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<big> |
<big>१) तृप्, दृप्, सृप् एते त्रयः धातवः अनुदात्ताः अतः अनिटः; अनिटः च ऋदुपधाः च इत्यतः विकल्पेन तेषाम् अमागमो भवति | अधस्थसूत्रद्वयं दृश्यताम्—</big> |
||
<big |
<big> |
||
'''एकाच उपदेशेऽनुदात्तात्''' (७.२.१०) = यः औपदेशिकधातुः एकाच् अपि अनुदात्तः अपि अस्ति, तस्मात् विहितस्य प्रत्ययस्य इडागमो न भवति |</big> |
'''एकाच उपदेशेऽनुदात्तात्''' (७.२.१०) = यः औपदेशिकधातुः एकाच् अपि अनुदात्तः अपि अस्ति, तस्मात् विहितस्य प्रत्ययस्य इडागमो न भवति |</big> |
||
<big>'''अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम्''' (६.१.५९) = उपदेशे अनुदात्तः यः ऋदुपधः तस्य अम्-आगमः विकल्पेन भवति झलादौ अकिति प्रत्यये परे |</big> |
<big>'''अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम्''' (६.१.५९) = उपदेशे अनुदात्तः यः ऋदुपधः तस्य अम्-आगमः विकल्पेन भवति झलादौ अकिति प्रत्यये परे | षड् धातवः—तृप्, दृप्, सृप्, मृश्, स्पृश्, कृष् । '''इको यणचि''' (६.१.७६) ।</big> |
||
<big><br /> |
<big><br /> |
||
Line 654: | Line 683: | ||
<big>९. एकाच्-भकारान्तधातवः - ३ धातवः अनिटः |</big> |
<big>९. एकाच्-भकारान्तधातवः - ३ धातवः अनिटः |</big> |
||
{| class="wikitable" style= |
{| class="wikitable" style="text-align:center; width: 100%; height: 200px" ; "margin: 1em 2em 0;" |
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|<big>यभ्</big> |
|<big>यभ्</big> |
||
|<big>यब्धा</big> |
|<big>यब्धा</big> |
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Line 681: | Line 710: | ||
<big>अन्ये सर्वे भकारान्तधातवः सेटः |</big> |
<big>अन्ये सर्वे भकारान्तधातवः सेटः |</big> |
||
<big>प्रक्रिया— '''झषस्तथोर्धोऽधः''' (८.२.४०) = झष्-उत्तरस्य तकारथकारयोः स्थाने धकारादेशो भवति, धा-धातुं वर्जयित्वा | '''झलां जश् झशि''' (८.४.५३) = झलां स्थाने जशादेशो भवति झशि परे |</big> |
|||
<big>स्य-प्रत्यये परे '''खरि च''' (८.४.५५) ।</big> |
|||
<big><br /></big> |
<big><br /></big> |
||
Line 686: | Line 719: | ||
<big>१०. एकाच्-मकारान्तधातवः - ४ धातवः अनिटः |</big> |
<big>१०. एकाच्-मकारान्तधातवः - ४ धातवः अनिटः |</big> |
||
{| class="wikitable" style= |
{| class="wikitable" style="text-align:center; width: 100%; height: 250px" ; "margin: 1em 2em 0;" |
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|<big>गम्</big> |
|<big>गम्</big> |
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|<big>गन्ता</big> |
|<big>गन्ता</big> |
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Line 726: | Line 759: | ||
<big><br /> |
<big><br /> |
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अन्ये सर्वे मकारान्तधातवः सेटः |</big> |
अन्ये सर्वे मकारान्तधातवः सेटः |</big> |
||
<big>प्रक्रिया—'''नश्चापदान्तस्य''' '''झलि''' (८.३.२४), '''अनुस्वारस्य''' '''ययि''' '''परसवर्णः''' (८.४.५८) ।</big> |
|||
<big><br /></big> |
<big><br /></big> |
||
Line 731: | Line 766: | ||
<big>११. एकाच्-शकारान्तधातवः - १० धातवः अनिटः |</big> |
<big>११. एकाच्-शकारान्तधातवः - १० धातवः अनिटः |</big> |
||
{| class="wikitable" style= |
{| class="wikitable" style="text-align:center; width: 100%; height: 700px" ; "margin: 1em 2em 0;" |
||
|<big>दिश् |
|<big>दिश्</big> |
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|<big>देष्टा</big> |
|<big>देष्टा</big> |
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|<big>देष्टुम्</big> |
|<big>देष्टुम्</big> |
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Line 739: | Line 774: | ||
|<big>अदेक्ष्यत् / अदेक्ष्यत</big> |
|<big>अदेक्ष्यत् / अदेक्ष्यत</big> |
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|- |
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|<big>रिश् |
|<big>रिश्</big> |
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|<big>रेष्टा</big> |
|<big>रेष्टा</big> |
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|<big>रेष्टुम्</big> |
|<big>रेष्टुम्</big> |
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Line 746: | Line 781: | ||
|<big>अरेक्ष्यत्</big> |
|<big>अरेक्ष्यत्</big> |
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|- |
|- |
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|<big>लिश् |
|<big>लिश्</big> |
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|<big>लेष्टा</big> |
|<big>लेष्टा</big> |
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|<big>लेष्टुम्</big> |
|<big>लेष्टुम्</big> |
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Line 753: | Line 788: | ||
|<big>अलेक्ष्यत् / अलेक्ष्यत</big> |
|<big>अलेक्ष्यत् / अलेक्ष्यत</big> |
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|- |
|- |
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|<big>विश् |
|<big>विश्</big> |
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|<big>वेष्टा</big> |
|<big>वेष्टा</big> |
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|<big>वेष्टुम्</big> |
|<big>वेष्टुम्</big> |
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Line 760: | Line 795: | ||
|<big>अवेक्ष्यत्</big> |
|<big>अवेक्ष्यत्</big> |
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|- |
|- |
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|<big>रुश् |
|<big>रुश्</big> |
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|<big>रोष्टा</big> |
|<big>रोष्टा</big> |
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|<big>रोष्टुम्</big> |
|<big>रोष्टुम्</big> |
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Line 767: | Line 802: | ||
|<big>अरोक्ष्यत्</big> |
|<big>अरोक्ष्यत्</big> |
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|- |
|- |
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|<big>क्रुश् |
|<big>क्रुश्</big> |
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|<big>क्रोष्टा</big> |
|<big>क्रोष्टा</big> |
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|<big>क्रोष्टुम्</big> |
|<big>क्रोष्टुम्</big> |
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Line 774: | Line 809: | ||
|<big>अक्रोक्ष्यत्</big> |
|<big>अक्रोक्ष्यत्</big> |
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|- |
|- |
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|<big> |
|<big>दृश्<sup>१</sup></big> |
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|<big>द्रष्टा</big> |
|<big>द्रष्टा</big> |
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|<big>द्रष्टुम्</big> |
|<big>द्रष्टुम्</big> |
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Line 781: | Line 816: | ||
|<big>अद्रक्ष्यत्</big> |
|<big>अद्रक्ष्यत्</big> |
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|- |
|- |
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|<big>मृश् |
|<big>मृश्<sup>२</sup></big> |
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<big>मृश्-म्रश्</big> |
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|<big>मर्ष्टा</big> |
|<big>मर्ष्टा</big> |
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Line 800: | Line 833: | ||
<big>अम्रक्ष्यत्</big> |
<big>अम्रक्ष्यत्</big> |
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|- |
|- |
||
|<big>स्पृश् |
|<big>स्पृश्<sup>२</sup></big> |
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<big>स्पृश्-स्प्रश्</big> |
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|<big>स्पर्ष्टा</big> |
|<big>स्पर्ष्टा</big> |
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Line 831: | Line 862: | ||
<big>अन्ये सर्वे शकारान्तधातवः सेटः |</big> |
<big>अन्ये सर्वे शकारान्तधातवः सेटः |</big> |
||
<big>प्रक्रिया—'''व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां षः''' (८.२.३६), '''ष्टुना ष्टुः''' (८.४.४१) ।</big> |
|||
<big>१) दृश्— '''सृजिदृशोर्झल्यमकिति''' (६.१.५८) = सृज विसर्गे, दृशिर्प्रेक्षणे इत्येतयोः धात्वोः झलादावकिति प्रत्यये परतः अमागमो भवति ।</big> <big>'''इको यणचि''' (६.१.७६) = इकः स्थाने यण्-आदेशः स्यात् अचि परे संहितायां विषये |</big> |
|||
२) <big>मृश्, स्पृश् एतौ द्वौ धातू अनुदात्तौ अतः अनिटौ; अनिटौ च ऋदुपधौ च इत्यतः विकल्पेन तयोः अमागमो भवति | अधस्थसूत्रद्वयं दृश्यताम्—</big> |
|||
<big> |
|||
'''एकाच उपदेशेऽनुदात्तात्''' (७.२.१०) = यः औपदेशिकधातुः एकाच् अपि अनुदात्तः अपि अस्ति, तस्मात् विहितस्य प्रत्ययस्य इडागमो न भवति |</big> |
|||
<big>'''अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम्''' (६.१.५९) = उपदेशे अनुदात्तः यः ऋदुपधः तस्य अम्-आगमः विकल्पेन भवति झलादौ अकिति प्रत्यये परे | षड् धातवः—तृप्, दृप्, सृप्, मृश्, स्पृश्, कृष् । '''इको यणचि''' (६.१.७६) ।</big> |
|||
<big><br /></big> |
<big><br /></big> |
||
Line 837: | Line 879: | ||
{| class="wikitable" style= |
{| class="wikitable" style="text-align:center; width: 100%; height: 750px" ; "margin: 1em 2em 0;" |
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|<big>त्विष् |
|<big>त्विष्</big> |
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|<big>त्वेष्टा</big> |
|<big>त्वेष्टा</big> |
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|<big>त्वेष्टुम्</big> |
|<big>त्वेष्टुम्</big> |
||
Line 845: | Line 887: | ||
|<big>अत्वेक्ष्यत् / अत्वेक्ष्यत</big> |
|<big>अत्वेक्ष्यत् / अत्वेक्ष्यत</big> |
||
|- |
|- |
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|<big>द्विष् |
|<big>द्विष्</big> |
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|<big>द्वेष्टा</big> |
|<big>द्वेष्टा</big> |
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|<big>द्वेष्टुम्</big> |
|<big>द्वेष्टुम्</big> |
||
Line 852: | Line 894: | ||
|<big>अद्वेक्ष्यत् / अद्वेक्ष्यत</big> |
|<big>अद्वेक्ष्यत् / अद्वेक्ष्यत</big> |
||
|- |
|- |
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|<big>पिष् |
|<big>पिष्</big> |
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|<big>पेष्टा</big> |
|<big>पेष्टा</big> |
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|<big>पेष्टुम्</big> |
|<big>पेष्टुम्</big> |
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Line 859: | Line 901: | ||
|<big>अपेक्ष्यत्</big> |
|<big>अपेक्ष्यत्</big> |
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|- |
|- |
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|<big>विष् |
|<big>विष्</big> |
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|<big>वेष्टा</big> |
|<big>वेष्टा</big> |
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|<big>वेष्टुम्</big> |
|<big>वेष्टुम्</big> |
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Line 866: | Line 908: | ||
|<big>अवेक्ष्यत् / अवेक्ष्यत</big> |
|<big>अवेक्ष्यत् / अवेक्ष्यत</big> |
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|- |
|- |
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|<big>शिष् |
|<big>शिष्</big> |
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|<big>शेष्टा</big> |
|<big>शेष्टा</big> |
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|<big>शेष्टुम्</big> |
|<big>शेष्टुम्</big> |
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Line 873: | Line 915: | ||
|<big>अशेक्ष्यत्</big> |
|<big>अशेक्ष्यत्</big> |
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|- |
|- |
||
|<big>श्लिष् |
|<big>श्लिष्</big> |
||
|<big>श्लेष्टा</big> |
|<big>श्लेष्टा</big> |
||
|<big>श्लेष्टुम्</big> |
|<big>श्लेष्टुम्</big> |
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Line 880: | Line 922: | ||
|<big>अश्लेक्ष्यत्</big> |
|<big>अश्लेक्ष्यत्</big> |
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|- |
|- |
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|<big>तुष् |
|<big>तुष्</big> |
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|<big>तोष्टा</big> |
|<big>तोष्टा</big> |
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|<big>तोष्टुम्</big> |
|<big>तोष्टुम्</big> |
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Line 887: | Line 929: | ||
|<big>अतोक्ष्यत्</big> |
|<big>अतोक्ष्यत्</big> |
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|- |
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|<big>दुष् |
|<big>दुष्</big> |
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|<big>दोष्टा</big> |
|<big>दोष्टा</big> |
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|<big>दोष्टुम्</big> |
|<big>दोष्टुम्</big> |
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Line 894: | Line 936: | ||
|<big>अदोक्ष्यत्</big> |
|<big>अदोक्ष्यत्</big> |
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|- |
|- |
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|<big>पुष् |
|<big>पुष्</big> |
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|<big>पोष्टा</big> |
|<big>पोष्टा</big> |
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|<big>पोष्टुम्</big> |
|<big>पोष्टुम्</big> |
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Line 901: | Line 943: | ||
|<big>अपोक्ष्यत्</big> |
|<big>अपोक्ष्यत्</big> |
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|- |
|- |
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|<big>शुष् |
|<big>शुष्</big> |
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|<big>शोष्टा</big> |
|<big>शोष्टा</big> |
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|<big>शोष्टुम्</big> |
|<big>शोष्टुम्</big> |
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Line 908: | Line 950: | ||
|<big>अशोक्ष्यत्</big> |
|<big>अशोक्ष्यत्</big> |
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|<big>कृष् |
|<big>कृष्</big> |
||
|<big>कर्ष्टा</big> |
|<big>कर्ष्टा</big> |
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|<big>कर्ष्टुम्</big> |
|<big>कर्ष्टुम्</big> |
||
Line 915: | Line 957: | ||
|<big>अकर्क्ष्यत् / अकर्क्ष्यत</big> |
|<big>अकर्क्ष्यत् / अकर्क्ष्यत</big> |
||
|- |
|- |
||
|<big>कृष् |
|<big>कृष्</big> |
||
|<big>क्रष्टा</big> |
|<big>क्रष्टा</big> |
||
|<big>क्रष्टुम्</big> |
|<big>क्रष्टुम्</big> |
||
Line 928: | Line 970: | ||
<big><br /> |
<big><br /> |
||
अन्ये सर्वे षकारान्तधातवः सेटः |</big> |
अन्ये सर्वे षकारान्तधातवः सेटः |</big> |
||
<big>प्रक्रिया— '''ष्टुना ष्टुः''' (८.४.४१) ।</big> |
|||
<big><br /></big> |
<big><br /></big> |
||
Line 933: | Line 977: | ||
<big>१३. एकाच्-सकारान्तधातवः - द्वौ धातू अनिटौ |</big> |
<big>१३. एकाच्-सकारान्तधातवः - द्वौ धातू अनिटौ |</big> |
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{| class="wikitable" style= |
{| class="wikitable" style="text-align:center; width: 100%; height: 125px" ; "margin: 1em 2em 0;" |
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|<big>वस्</big> |
|<big>वस्</big> |
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|<big>वस्ता</big> |
|<big>वस्ता</big> |
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Line 960: | Line 1,004: | ||
<big>१४. एकाच्-हकारान्तधातवः - ८ धातवः अनिटः |</big> |
<big>१४. एकाच्-हकारान्तधातवः - ८ धातवः अनिटः |</big> |
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{| class="wikitable" style= |
{| class="wikitable" style="text-align:center; width: 100%; height: 500px" ; "margin: 1em 2em 0;" |
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|<big>दह्</big> |
|<big>दह्<sup>१</sup></big> |
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|<big>दग्धा</big> |
|<big>दग्धा</big> |
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|<big>दग्धुम्</big> |
|<big>दग्धुम्</big> |
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|<big>अधक्ष्यत्</big> |
|<big>अधक्ष्यत्</big> |
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|<big>दिह् |
|<big>दिह्<sup>१</sup></big> |
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|<big>देग्धा</big> |
|<big>देग्धा</big> |
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|<big>देग्धुम्</big> |
|<big>देग्धुम्</big> |
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Line 975: | Line 1,019: | ||
|<big>अधेक्ष्यत्/अधेक्ष्यत</big> |
|<big>अधेक्ष्यत्/अधेक्ष्यत</big> |
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|- |
|- |
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|<big> |
|<big>मिह्<sup>२</sup></big> |
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|<big>दोग्धा</big> |
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|<big>दोग्धुम्</big> |
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|<big>दोग्धव्यम्</big> |
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|<big>धोक्ष्यति / ते</big> |
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|<big>अधोक्ष्यत्/अधोक्ष्यत</big> |
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|- |
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|<big>मिह्-मेह्</big> |
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|<big>मेढा</big> |
|<big>मेढा</big> |
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|<big>मेढुम्</big> |
|<big>मेढुम्</big> |
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Line 989: | Line 1,026: | ||
|<big>अमेक्ष्यत्</big> |
|<big>अमेक्ष्यत्</big> |
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|- |
|- |
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|<big> |
|<big>लिह्<sup>२</sup></big> |
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|<big>लेढा</big> |
|<big>लेढा</big> |
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|<big>लेढुम्</big> |
|<big>लेढुम्</big> |
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Line 996: | Line 1,033: | ||
|<big>अलेक्ष्यत् / अलेक्ष्यत</big> |
|<big>अलेक्ष्यत् / अलेक्ष्यत</big> |
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|- |
|- |
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|<big> |
|<big>दुह्<sup>१</sup></big> |
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|<big>दोग्धा</big> |
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|<big>दोग्धुम्</big> |
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|<big>दोग्धव्यम्</big> |
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|<big>धोक्ष्यति / ते</big> |
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|<big>अधोक्ष्यत्/अधोक्ष्यत</big> |
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|- |
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|<big>रुह्<sup>२</sup></big> |
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|<big>रोढा</big> |
|<big>रोढा</big> |
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|<big>रोढुम्</big> |
|<big>रोढुम्</big> |
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Line 1,003: | Line 1,047: | ||
|<big>अरोक्ष्यत्</big> |
|<big>अरोक्ष्यत्</big> |
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|- |
|- |
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|<big>वह्</big> |
|<big>वह्<sup>३</sup></big> |
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|<big>वोढा</big> |
|<big>वोढा</big> |
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|<big>वोढुम्</big> |
|<big>वोढुम्</big> |
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Line 1,010: | Line 1,054: | ||
|<big>अवक्ष्यत् / अवक्ष्यत</big> |
|<big>अवक्ष्यत् / अवक्ष्यत</big> |
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|- |
|- |
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|<big>नह्</big> |
|<big>नह्<sup>४</sup></big> |
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|<big>नद्धा</big> |
|<big>नद्धा</big> |
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|<big>नद्धुम्</big> |
|<big>नद्धुम्</big> |
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Line 1,020: | Line 1,064: | ||
<big>दहँ भस्मीकरणे भ्वा प० (दहति), दिहँ उपचये अ उ० (देग्धि/दिग्धे), |
<big>दहँ भस्मीकरणे भ्वा प० (दहति), दिहँ उपचये अ उ० (देग्धि/दिग्धे), मिहँ सेचने भ्वा प० (मेहति), दुहँ प्रपूरणे अ उ० (दोग्धि/दुग्धे), रुहँ बीजजन्मनि प्रादुर्भावे च भ्वा प० (रोहति), लिहँ आस्वादने अ उ० (लेढि/लीढे), वहँ प्रापणे दि उ० (वहति/ते), णहँ बन्धने दि उ० (नह्यति/ते)</big> |
||
<big><br /> |
<big><br /> |
||
अन्ये सर्वे हकारान्तधातवः सेटः |</big> |
अन्ये सर्वे हकारान्तधातवः सेटः |</big> |
||
<big>प्रक्रिया—</big> |
|||
<big>१) दह्, दिह्, दुह्—'''पुगन्तलघूपधस्य च''' (७.३.८६), '''दादेर्धातोर्घः''' (८.२.३२) = दकारादिधातोः हकारस्य स्थाने घकारादेशो भवति झलि पदान्ते च; '''झषस्तथोर्धोऽधः''' (८.२.४०) = झष्-उत्तरस्य तकारथकारयोः स्थाने धकारादेशो भवति, धा-धातुं वर्जयित्वा | '''झलां जश् झशि''' (८.४.५३) = झलां स्थाने जशादेशो भवति झशि परे |</big> |
|||
<big>२) मिह्, लिह्, रुह्—'''पुगन्तलघूपधस्य च''' (७.३.८६), '''हो ढः''' (८.२.३१) = हकारस्य स्थाने ढकारादेशो भवति झलि पदान्ते च; '''झषस्तथोर्धोऽधः''' (८.२.४०); '''ष्टुना ष्टुः''' (८.४.४१); '''ढो ढे लोपः''' (८.३.१३) = ढकारे परे पूर्वतनस्य ढकारस्य लोपो भवति |</big> |
|||
<big>३) वह्—'''हो ढः''' (८.२.३१); '''झषस्तथोर्धोऽधः''' (८.२.४०); '''ष्टुना ष्टुः''' (८.४.४१); '''ढो ढे लोपः''' (८.३.१३); '''सहिवहोरोदवर्णस्य''' (६.३.११२) = ढकारस्य लोपश्चेत्, सह् वह् इति धात्वोः अकारस्य स्थाने ओकारादेशो भवति |</big> |
|||
<big>४) नह्—'''नहो धः''' (८.२.३४) = नह्-धातोः हकारस्य धकारादेशो भवति झलि पदान्ते च; '''झषस्तथोर्धोऽधः''' (८.२.४०); '''झलां जश् झशि''' (८.४.५३) |</big> |
|||
Line 1,032: | Line 1,088: | ||
भव्याभगिन्या विरचितं कोष्ठकमपि सुन्दरं— तस्मिन् सर्वा सूचिना मिलित्वा प्राप्यते | येषां कृते भव्या-भगिन्याः कोष्ठके अधिकसौकर्यं, तत् कोष्ठकं स्थलद्वये उपयोक्तुं शक्यते--</big> |
भव्याभगिन्या विरचितं कोष्ठकमपि सुन्दरं— तस्मिन् सर्वा सूचिना मिलित्वा प्राप्यते | येषां कृते भव्या-भगिन्याः कोष्ठके अधिकसौकर्यं, तत् कोष्ठकं स्थलद्वये उपयोक्तुं शक्यते--</big> |
||
<big>१) [ |
<big>१) [[7---ArdhadhAtukaprakaraNam/14---halantadhAtUnAm-iDvyavasthA/001---halanta-dhAtUnAm-iDvyavasthA---samagraM-cintanam|हलन्तधातूनाम् इड्व्यवस्था---समग्रं चिन्तनम्]]</big> |
||
<big>२) [https://docs.google.com/spreadsheets/d/e/2PACX-1vSeq70sQ5_keIu0KDDuNAi4W7Mgtak9MIRjg8_buXO2xWnBbfDI70BnwsLNmaB3e98f_fEPPYtG1eoO/pubhtml?gid=1590464593&single=true अस्मिन् लिन्क्-मध्ये]</big> |
<big>२) [https://docs.google.com/spreadsheets/d/e/2PACX-1vSeq70sQ5_keIu0KDDuNAi4W7Mgtak9MIRjg8_buXO2xWnBbfDI70BnwsLNmaB3e98f_fEPPYtG1eoO/pubhtml?gid=1590464593&single=true अस्मिन् लिन्क्-मध्ये]</big> |
||
Line 1,040: | Line 1,096: | ||
<big>Swarup – July 2019</big> |
<big>Swarup – July 2019</big> |
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[https://static.miraheze.org/samskritavyakaranamwiki/7/7b/%E0%A5%A7%E0%A5%AA_-_%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D_%E0%A4%87%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE.pdf १४_-_हलन्तधातूनाम्_इड्व्यवस्था] |
|||
[https://static.miraheze.org/samskritavyakaranamwiki/f/f0/%E0%A5%A7%E0%A5%AB_-_%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A5%8D-%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%B5%E0%A4%83.pdf १५_-_वेड्-धातवः.pdf] (file size: 32 KB) |
Latest revision as of 01:24, 30 August 2023
अनिट्-हलन्तधातवः
हलन्तधातवः आधिक्येन सेटः अतः ये अनिटः, तेषां ज्ञानेन हलन्तधातूनाम् इड्व्यवस्था सौकर्येण ज्ञेया | केवलं १०२ हलन्तधातवः अनिटः; तेषां कण्ठस्थीकरणेन सर्वेषाम् हलन्तधातूनाम् इड्व्यवस्था मनसि सिद्धा |
१. एकाच्-ककारान्तधातवः - एक एव ककारन्तधातुः अनिट् अस्ति |
धातुः | तास् (लुट्) | तुमुन् | तव्यत् | स्य (लृट्) | स्य (लृङ्) |
शक् | शक्ता | शक्तुम् | शक्तव्यम् | शक्ष्यति | अशक्ष्यत् |
शक्लृ शक्तौ स्वा प० (शक्नोति)
अन्ये सर्वे ककारान्तधातवः सेटः |
२. एकाच्-चकारान्तधातवः - षड् धातवः अनिटः |
पच् | पक्ता | पक्तुम् | पक्तव्यम् | पक्ष्यति / ते | अपक्ष्यत् / अपक्ष्यत |
वच् | वक्ता | वक्तुम् | वक्तव्यम् | वक्ष्यति | अवक्ष्यत् |
रिच् | रेक्ता | रेक्तुम् | रेक्तव्यम् | रेक्ष्यति / ते | अरेक्ष्यत् / अरेक्ष्यत |
विच् | वेक्ता | वेक्तुम् | वेक्तव्यम् | वेक्ष्यति / ते | अवेक्ष्यत् / अवेक्ष्यत |
सिच् | सेक्ता | सेक्तुम् | सेक्तव्यम् | सेक्ष्यति / ते | असेक्ष्यत् / असेक्ष्यत |
मुच् | मोक्ता | मोक्तुम् | मोक्तव्यम् | मोक्ष्यति / ते | अमोक्ष्यत् / अमोक्ष्यत |
डुपचँष् पाके भ्वा उ० (पचति/ते), वचँ परिभाषणे अ प० (वक्ति), रिचिँर् विरेचने रु उ० (रिणक्ति/रिङ्क्ते), विचिँर् पृथग्भावे रु उ० (विनक्ति/विङ्क्ते), षिचँ क्षरणे तु उ० (सिञ्चति/ते), मुचॢँ मोक्षणे तु उ० (मुञ्चति/ते)
अन्ये सर्वे चकारान्तधातवः सेटः |
प्रक्रिया—चोः कुः (८.२.३०) = झलि पदान्ते कुत्वम् ।
३. एकाच्-छकारान्तधातवः - एक एव छकारन्तधातुः अनिट् अस्ति |
प्रच्छ् | प्रष्टा | प्रष्टुम् | प्रष्टव्यम् | प्रक्ष्यति | अप्रक्ष्यत् |
प्रछँ ज्ञीप्सायाम् तु प० (पृच्छति)
अन्ये सर्वे छकारान्तधातवः सेटः |
प्रक्रिया—व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां षः (८.२.३६), ष्टुना ष्टुः (८.४.४१) ।
४. एकाच्-जकारान्तधातवः - १५ धातवः अनिटः |
त्यज् | त्यक्ता | त्यक्तुम् | त्यक्तव्यम् | त्यक्ष्यति | अत्यक्ष्यत् |
भज् | भक्ता | भक्तुम् | भक्तव्यम् | भक्ष्यति / ते | अभक्ष्यत् /अभक्ष्यत |
यज् | यष्टा | यष्टुम् | यष्टव्यम् | यक्ष्यति / ते | अयक्ष्यत् /अयक्ष्यत |
निज् | नेक्ता | नेक्तुम् | नेक्तव्यम् | नेक्ष्यति / ते | अनेक्ष्यत् /अनेक्ष्यत |
विज् | वेक्ता | वेक्तुम् | वेक्तव्यम् | वेक्ष्यति / ते | अवेक्ष्यत् / अवेक्ष्यत |
भुज् | भोक्ता | भोक्तुम् | भोक्तव्यम् | भोक्ष्यति तुदादौ /ति & ते रुधादौ | अभोक्ष्यत् / अभोक्ष्यत |
युज् | योक्ता | योक्तुम् | योक्तव्यम् | योक्ष्यति / ते | अयोक्ष्यत् / अयोक्ष्यत |
रुज् | रोक्ता | रोक्तुम् | रोक्तव्यम् | रोक्ष्यति | अरोक्ष्यत् |
सृज्१ | स्रष्टा | स्रष्टुम् | स्रष्टव्यम् | स्रक्ष्यति तुदादौ / ते दिवादौ | अस्रक्ष्यत् / अस्रक्ष्यत |
भञ्ज् | भङ्क्ता | भङ्क्तुम् | भङ्क्तव्यम् | भङ्क्ष्यति | अभङ्क्ष्यत् |
रञ्ज् | रङ्क्ता | रङ्क्तुम् | रङ्क्तव्यम् | रङ्क्ष्यति / ते | अरङ्क्ष्यत् / अरङ्क्ष्यत |
सञ्ज् | सङ्क्ता | सङ्क्तुम् | सङ्क्तव्यम् | सङ्क्ष्यति | असङ्क्ष्यत् |
स्वञ्ज् | स्वङ्क्ता | स्वङ्क्तुम् | स्वङ्क्तव्यम् | स्वङ्क्ष्यते | अस्वङ्क्ष्यत |
मस्ज्२,३ | मङ्क्ता | मङ्क्तुम् | मङ्क्तव्यम् | मङ्क्ष्यति | अमङ्क्ष्यत् |
भ्रस्ज्३ | भ्रष्टा | भ्रष्टुम् | भ्रष्टव्यम् | भ्रक्ष्यति / ते | अभ्रक्ष्यत् / अभ्रक्ष्यत |
भ्रस्ज्४ | भर्ष्टा | भर्ष्टुम् | भर्ष्टव्यम् | भर्क्ष्यति / ते | अभर्क्ष्यत् / अभर्क्ष्यत |
त्यजँ हानौ भ्वा प० (त्यजति), भजँ सेवायाम् भ्वा उ० (भजति/ते), यजँ देवपूजासङ्गतिकरणदानेषु भ्वा उ० (यजति/ते), णिजिँर् शौचपोषणयोः जु उ० (नेनेक्ति/नेनिक्ते), विजिँर् पृथग्भावे जु उ० (वेवेक्ति/वेविक्ते), भुजोँ कौटिल्ये तु प० (भुजति), भुजँ पालनाभ्यवहारयोः रु उ० (भुनक्ति/भुङ्क्ते), युजँ समाधौ दि आ (युज्यते), युजिँर् योगे रु उ० (युनक्ति/युङ्क्ते), रुजोँ भङ्गे तु प० रुजति, सृजँ विसर्गे तु प० (सृजति), सृजँ विसर्गे दि आ० (सृज्यते), भञ्जोँ आमर्दने रु प० (भनक्ति), रन्ज्ँ रागे भ्वा उ० (रजति/ते), रञ्जँ रागे दि उ० (रज्यति/ते), षञ्जँ सङ्गे भ्वा प० (सजति), ष्वन्ज् परिष्वङ्गे भ्वा: आ० (स्वजते), टुमस्जोँ शुद्धौ तु प० (मज्जति), भ्रस्जँ पाके तु उ० (भृज्जति/ते)
अन्ये सर्वे जकारान्तधातवः सेटः |
प्रक्रिया— चोः कुः (८.२.३०), खरि च (८.४.५५) // व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां षः (८.२.३६), ष्टुना ष्टुः (८.४.४१) ।
१) सृज्— सृजिदृशोर्झल्यमकिति (६.१.५८) = सृज विसर्गे, दृशिर्प्रेक्षणे इत्येतयोः धात्वोः झलादावकिति प्रत्यये परतः अमागमो भवति । इको यणचि (६.१.७६) = इकः स्थाने यण्-आदेशः स्यात् अचि परे संहितायां विषये |
२) मस्ज्— मस्जिनशोर्झलि (७.२.६०) = मस्ज्-धातोः नश्-धातोः च नुमागमो भवति झलादि-प्रत्यये परे ।
३) मस्ज्, भ्रस्ज्— स्कोः संयोगाद्योरन्ते च (८.२.२९) = संयोगस्य प्रथमसदस्यः सकारः ककारः वा चेत्, संयोगस्य प्रथमसदस्यलोपो भवति न तु द्वितीयसदस्यस्य, झलि पदान्ते च |
४) भ्रस्ज्— भ्रस्जो रोपधयोः रमन्यतरस्याम् (६.४.४७) = भ्रस्ज्-धातोः रेफस्य च उपधावर्णस्य च विकल्पेन 'रम्' इति आगमः भवति आर्धधातुके प्रत्यये परे । मिदचोऽन्त्यात्परः (१.१.४७) । द्वयोः लोपः, रम् इति आगमः ।
५. एकाच्-दकारान्तधातवः - १५ धातवः अनिटः |
अद् | अत्ता | अत्तुम् | अत्तव्यम् | अत्स्यति | आत्स्यत् |
पद् | पत्ता | पत्तुम् | पत्तव्यम् | पत्स्यते | अपत्स्यत |
शद् | शत्ता | शत्तुम् | शत्तव्यम् | शत्स्यति भ्वादौ / ते तुदादौ | अशत्स्यत् / अशत्स्यत |
सद् | सत्ता | सत्तुम् | सत्तव्यम् | सत्स्यति | असत्स्यत् |
हद् | हत्ता | हत्तुम् | हत्तव्यम् | हत्स्यते | अहत्स्यत |
खिद् | खेत्ता | खेत्तुम् | खेत्तव्यम् | खेत्स्यति / ते | अखेत्स्यत् / अखेत्स्यत |
छिद् | छेत्ता | छेत्तुम् | छेत्तव्यम् | छेत्स्यति / ते | अच्छेत्स्यत् / अच्छेत्स्यत |
भिद् | भेत्ता | भेत्तुम् | भेत्तव्यम् | भेत्स्यति / ते | अभेत्स्यत् / अभेत्स्यत |
विद् | वेत्ता | वेत्तुम् | वेत्तव्यम् | वेत्स्यते | अवेत्स्यत |
विद् | वेत्ता | वेत्तुम् | वेत्तव्यम् | वेत्स्यते | अवेत्स्यत |
स्विद् | स्वेत्ता | स्वेत्तुम् | स्वेत्तव्यम् | स्वेत्स्यति | अस्वेत्स्यत् |
क्षुद् | क्षोत्ता | क्षोत्तुम् | क्षोत्तव्यम् | क्षोत्स्यति / ते | अक्षोत्स्यत् / अक्षोत्स्यत |
तुद् | तोत्ता | तोत्तुम् | तोत्तव्यम् | तोत्स्यति / ते | अतोत्स्यत् / अतोत्स्यत |
नुद् | नोत्ता | नोत्तुम् | नोत्तव्यम् | नोत्स्यति / ते | अनोत्स्यत् / अनोत्स्यत |
स्कन्द् | स्कन्त्ता | स्कन्त्तुम् | स्कन्त्तव्यम् | स्कन्त्स्यति | अस्कन्त्स्यत् |
अदँ भक्षणे अ प० (अत्ति), पदँ गतौ दि आ० (पद्यते), शदॢँ शातने भ्वा: प० (शीयति), शदॢँ शातने तु प० (शीयते) (प० किन्तु शदेः शितः (१.३.६०) इत्यनेन सार्वधातुकलकारेषु लट्, लोट्, लङ्, विधिलिङ् अस्य आत्मनेपदस्यैव रूपाणि भवन्ति), षदॢँ विशरणगत्यवसादनेषु भ्वा प०, तु प० (सीदति उभयत्र), हदँ पुरीषोत्सर्गे भ्वा आ० (हदते), खिदँ दैन्ये दि आ० (खिद्यते), खिदँ दैन्ये रुधादि: आ (खिन्ते), खिदँ परिघाते तु प० (खिन्दति), छिदिँर् द्वैधीकरणे रु० उ० (छिनत्ति/छिन्ते), छिद्र कर्णभेदने चु उ० छिद्रयति/ते)(लृटि छिद्रयिष्यति/ते), भिदिँर् विदारणे रु उ० (भिनत्ति/भिन्ते), विदँ सत्तायाम् दि आ० अनिट् (विद्यते), विदँ विचारणे रुधादि: आ अनिट् (विन्ते), विदँ ज्ञाने अ प० सेट् (वेद/वेत्ति), विदॢँ लाभे तु उ० सेट् (विन्दति/ते), विदँ चेतनाख्याननिवासेषु चु आ० सेट् (वेदयते), ष्विदाँ गात्रप्रक्षरणे दि प० (स्विद्यति), क्षुदिँर् सम्प्रेषणे रु उ० (क्षुणत्ति/क्षुन्ते), तुदँ व्यथने तु उ० (तुदति/ते), णुदँ प्रेरणे तु उ० (नुदति/ते), स्कन्दिँर् गतिशोषणयोः भ्वा प० (स्कन्दति)
अन्ये सर्वे दकारान्तधातवः सेटः |
प्रक्रिया— खरि च (८.४.५५) ।
६. एकाच्-धकारान्तधातवः - १२ धातवः अनिटः |
व्यध् | व्यद्धा | व्यद्धुम् | व्यद्धव्यम् | व्यत्स्यति | अव्यत्स्यत् |
सिध् | सेद्धा | सेद्धुम् | सेद्धव्यम् | सेत्स्यति | असेत्स्यत् |
क्रुध् | क्रोद्धा | क्रोद्धुम् | क्रोद्धव्यम् | क्रोत्स्यति | अक्रोत्स्यत् |
क्षुध् | क्षोद्धा | क्षोद्धुम् | क्षोद्धव्यम् | क्षोत्स्यति | अक्षोत्स्यत् |
बुध् | बोद्धा | बोद्धुम् | बोद्धव्यम् | भोत्स्यते | अभोत्स्यत |
युध् | योद्धा | योद्धुम् | योद्धव्यम् | योत्स्यते | अयोत्स्यत |
रुध् | रोद्धा | रोद्धुम् | रोद्धव्यम् | रोत्स्यति | अरोत्स्यत् |
अनु+रुध् | अनुरोद्धा | अनुरोद्धुम् | अनुरोद्धव्यम् | अनुरोत्स्यते | अन्वरोत्स्यत |
शुध् | शोद्धा | शोद्धुम् | शोद्धव्यम् | शोत्स्यति | अशोत्स्यत् |
राध् | राद्धा | राद्धुम् | राद्धव्यम् | रात्स्यति | अरात्स्यत् |
साध् | साद्धा | साद्धुम् | साद्धव्यम् | सात्स्यति | असात्स्यत् |
बन्ध् | बन्द्धा | बन्द्धुम् | बन्द्धव्यम् | भन्त्स्यति | अभन्त्स्यत् |
व्यधँ ताडने दि प० (विध्यति), षिधुँ संराद्धौ दि प० (सिध्यति), क्रुधँ क्रोधे दि प० (क्रुध्यति), क्षुधँ बुभुक्षायाम् दि प० (क्षुध्यति), बुधँ अवगमने दि आ० (बुध्यते), युधँ सम्प्रहारे दि आ० (युध्यते), रुधिर् आवरणे रुधादि प० (रुणद्धि), अनु + रुधँ कामे दि आ० (अनुरुध्यते), शुधँ शौचे दि प० (शुध्यति), राधँ वृद्धौ दि प० (राध्यति), राधँ संसिद्धौ स्वा प० (राध्नोति), साधँ संसिद्धौ स्वा प० (साध्नोति), बन्धँ बन्धने क्र्या प० (बध्नाति)
अन्ये सर्वे धकारान्तधातवः सेटः |
प्रक्रिया— झषस्तथोर्धोऽधः (८.२.४०) = झष्-उत्तरस्य तकारथकारयोः स्थाने धकारादेशो भवति, धा-धातुं वर्जयित्वा | झलां जश् झशि (८.४.५३) = झलां स्थाने जशादेशो भवति झशि परे |
स्य-प्रत्यये परे खरि च (८.४.५५) ।
बुध्, बन्ध् (स्य-प्रत्यये परे)— एकाचो बशो भष् झषन्तस्य स्ध्वोः (८.२.३७) = धातोरवयवो यो झषन्त एकाच्, तस्य बशः भषादेशो भवति सकारे परे, ध्व-शब्दे परे, पदान्ते च |
७. एकाच्-नकारान्तधातवः - द्वौ धातू अनिटौ |
मन् | मन्ता | मन्तुम् | मन्तव्यम् | मंस्यते | अमंस्यत |
हन् | हन्ता | हन्तुम् | हन्तव्यम् | हनिष्यति | अहनिष्यत् |
अत्र विशेषः -
ऋद्धनोः स्ये (७.२.७०) इत्यनेन ऋकारान्ताः धातवः, हन्-धातुः च स्यप्रत्यये सेटः भवन्ति |
मनँ ज्ञाने दि आ० (मन्यते), हनँ हिंसागत्योः अ प० (हन्ति)
अन्ये सर्वे नकारान्तधातवः सेटः |
८. एकाच्-पकारान्तधातवः - १३ धातवः अनिटः |
तप् | तप्ता | तप्तुम् | तप्तव्यम् | तप्स्यति भ्वादौ
तप्स्यते दिवादौ |
अतप्स्यत्
अतप्स्यत |
वप् | वप्ता | वप्तुम् | वप्तव्यम् | वप्स्यति / ते | अवप्स्यत् / अवप्स्यत |
शप् | शप्ता | शप्तुम् | शप्तव्यम् | शप्स्यति / ते | अशप्स्यत् /अशप्स्यत |
स्वप् | स्वप्ता | स्वप्तुम् | स्वप्तव्यम् | स्वप्स्यति | अस्वप्स्यत् |
क्षिप् | क्षेप्ता | क्षेप्तुम् | क्षेप्तव्यम् | क्षेप्स्यति / ते | अक्षेप्स्यत् / अक्षेप्स्यत |
तिप् | तेप्ता | तेप्तुम् | तेप्तव्यम् | तेप्स्यते | अतेप्स्यत |
लिप् | लेप्ता | लेप्तुम् | लेप्तव्यम् | लेप्स्यति / ते | अलेप्स्यत् / अलेप्स्यत |
छुप् | छोप्ता | छोप्तुम् | छोप्तव्यम् | छोप्स्यति | अच्छोप्स्यत् |
लुप् | लोप्ता | लोप्तुम् | लोप्तव्यम् | लोप्स्यति / ते | अलोप्स्यत् / अलोप्स्यत |
तृप्१ | तर्प्ता
त्रप्ता |
तर्प्तुम्
त्रप्तुम् |
तर्प्तव्यम्
त्रप्तव्यम् |
तर्प्स्यति
त्रप्स्यति |
अतर्प्स्यत्
अत्रप्स्यत् |
दृप्१ | दर्प्ता
द्रप्ता |
दर्प्तुम्
द्रप्तुम् |
दर्प्तव्यम्
द्रप्तव्यम् |
दर्प्स्यति
द्रप्स्यति |
अदर्प्स्यत्
अद्रप्स्यत् |
सृप्१ | सर्प्ता
स्रप्ता |
सर्प्तुम्
स्रप्तुम् |
सर्प्तव्यम्
स्रप्तव्यम् |
सर्प्स्यति
स्रप्स्यति |
असर्प्स्यत्
अस्रप्स्यत् |
आप् | आप्ता | आप्तुम् | आप्तव्यम् | आप्स्यति | आप्स्यत् |
तपँ सन्तापे भ्वा प० (तपति), तपँ ऐश्वर्ये दि आ० (तप्यते, विकल्पेन शप् प० तपति), डुवपँ बीजसन्ताने भ्वा उ० (वपति/ते), शपँ आक्रोशे भ्वा उ० शपति/ते), ञिष्वपँ शये अ प० (स्वपिति), क्षिपँ प्रेरणे दि प० (क्षिप्यति), क्षिपँ प्रेरणे तु उ० (क्षिपति/ते), तिपृँ क्षरणे भ्वा आ० (तेपते), लिपँ उपदेहे तु उ० (लिम्पति/ते), छुपँ स्पर्शे तु प० (छुपति), लुपॢँ छेदने तु उ० (लुम्पति/ते), तृपँ प्रीणने दि प० (तृप्यति), दृपँ हर्षमोहनयोः दि प० (दृप्यति), सृपॢँ गतौ भ्वा प० (सर्पति), आपॢँ व्याप्तौ स्वा प० (आप्नोति)
१) तृप्, दृप्, सृप् एते त्रयः धातवः अनुदात्ताः अतः अनिटः; अनिटः च ऋदुपधाः च इत्यतः विकल्पेन तेषाम् अमागमो भवति | अधस्थसूत्रद्वयं दृश्यताम्—
एकाच उपदेशेऽनुदात्तात् (७.२.१०) = यः औपदेशिकधातुः एकाच् अपि अनुदात्तः अपि अस्ति, तस्मात् विहितस्य प्रत्ययस्य इडागमो न भवति |
अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् (६.१.५९) = उपदेशे अनुदात्तः यः ऋदुपधः तस्य अम्-आगमः विकल्पेन भवति झलादौ अकिति प्रत्यये परे | षड् धातवः—तृप्, दृप्, सृप्, मृश्, स्पृश्, कृष् । इको यणचि (६.१.७६) ।
अन्ये सर्वे पकारान्तधातवः सेटः |
९. एकाच्-भकारान्तधातवः - ३ धातवः अनिटः |
यभ् | यब्धा | यब्धुम् | यब्धव्यम् | यप्स्यति | अयप्स्यत् |
रभ् | रब्धा | रब्धुम् | रब्धव्यम् | रप्स्यते | अरप्स्यत |
लभ् | लब्धा | लब्धुम् | लब्धव्यम् | लप्स्यते | अलप्स्यत |
यभँ मैथुने भ्वा प० (यभति), रभँ राभस्ये भ्वा आ० (आरभते), डुलभँष् प्राप्तौ भ्वा आ० (लभते)
अन्ये सर्वे भकारान्तधातवः सेटः |
प्रक्रिया— झषस्तथोर्धोऽधः (८.२.४०) = झष्-उत्तरस्य तकारथकारयोः स्थाने धकारादेशो भवति, धा-धातुं वर्जयित्वा | झलां जश् झशि (८.४.५३) = झलां स्थाने जशादेशो भवति झशि परे |
स्य-प्रत्यये परे खरि च (८.४.५५) ।
१०. एकाच्-मकारान्तधातवः - ४ धातवः अनिटः |
गम् | गन्ता | गन्तुम् | गन्तव्यम् | गमिष्यति | अगमिष्यत् |
नम् | नन्ता | नन्तुम् | नन्तव्यम् | नंस्यति | अनंस्यत् |
यम् | यन्ता | यन्तुम् | यन्तव्यम् | यंस्यति | अयंस्यत् |
रम् | रन्ता | रन्तुम् | रन्तव्यम् | रंस्यते | अरंस्यत |
अत्र विशेषः -
गमेरिट् परस्मैपदेषु (७.२.५८) इत्यनेन गम्-धातोः परस्य सकारदेः प्रत्ययस्य इडागमो भवति |
गमॢँ गतौ भ्वा प० (गच्छति), णमँ प्रह्वत्वे शब्दे च भ्वा प० (नमति), यमँ उपरमे भ्वा प० (यच्छति), रमुँ क्रीडायाम् भ्वा आ० (रमते)
अन्ये सर्वे मकारान्तधातवः सेटः |
प्रक्रिया—नश्चापदान्तस्य झलि (८.३.२४), अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः (८.४.५८) ।
११. एकाच्-शकारान्तधातवः - १० धातवः अनिटः |
दिश् | देष्टा | देष्टुम् | देष्टव्यम् | देक्ष्यति / ते | अदेक्ष्यत् / अदेक्ष्यत |
रिश् | रेष्टा | रेष्टुम् | रेष्टव्यम् | रेक्ष्यति | अरेक्ष्यत् |
लिश् | लेष्टा | लेष्टुम् | लेष्टव्यम् | लेक्ष्यति (तुदादौ), ते (दिवादौ) | अलेक्ष्यत् / अलेक्ष्यत |
विश् | वेष्टा | वेष्टुम् | वेष्टव्यम् | वेक्ष्यति | अवेक्ष्यत् |
रुश् | रोष्टा | रोष्टुम् | रोष्टव्यम् | रोक्ष्यति | अरोक्ष्यत् |
क्रुश् | क्रोष्टा | क्रोष्टुम् | क्रोष्टव्यम् | क्रोक्ष्यति | अक्रोक्ष्यत् |
दृश्१ | द्रष्टा | द्रष्टुम् | द्रष्टव्यम् | द्रक्ष्यति | अद्रक्ष्यत् |
मृश्२ | मर्ष्टा
म्रष्टा |
मर्ष्टुम्
म्रष्टुम् |
मर्ष्टव्यम्
म्रष्टव्यम् |
मर्क्ष्यति
म्रक्ष्यति |
अमर्क्ष्यत्
अम्रक्ष्यत् |
स्पृश्२ | स्पर्ष्टा
स्प्रष्टा |
स्पर्ष्टुम्
स्प्रष्टुम् |
स्पर्ष्टव्यम्
स्प्रष्टव्यम् |
स्पर्क्ष्यति
स्प्रक्ष्यति |
अस्पर्क्ष्यत्
अस्प्रक्ष्यत् |
दंश् | दंष्टा | दंष्टुम् | दंष्टव्यम् | दंक्ष्यति | अदंक्ष्यत् |
दिशँ अतिसर्जने तु उ० (दिशति/ते), रिशँ हिंसायाम् तु प० (रिशति), लिशँ गतौ तु प० (लिशति), लिशँ अल्पीभावे दि आ० (लिश्यते), विशँ प्रवेशने तु प० (विशति), रुशँ हिंसायाम् तु प० (रुशति), क्रुशँ आह्वाने रोदने च भ्वा प० (क्रोशति), दृशिँर् प्रेक्षणे भ्वा प० (पश्यति), मृशँ आमर्शने तु प० (मृशति), स्पृशँ संस्पर्शने तु प० (स्पृशति), दंशँ दशने भ्वा प० (दशति)
अन्ये सर्वे शकारान्तधातवः सेटः |
प्रक्रिया—व्रश्चभ्रस्जसृजमृजयजराजभ्राजच्छशां षः (८.२.३६), ष्टुना ष्टुः (८.४.४१) ।
१) दृश्— सृजिदृशोर्झल्यमकिति (६.१.५८) = सृज विसर्गे, दृशिर्प्रेक्षणे इत्येतयोः धात्वोः झलादावकिति प्रत्यये परतः अमागमो भवति । इको यणचि (६.१.७६) = इकः स्थाने यण्-आदेशः स्यात् अचि परे संहितायां विषये |
२) मृश्, स्पृश् एतौ द्वौ धातू अनुदात्तौ अतः अनिटौ; अनिटौ च ऋदुपधौ च इत्यतः विकल्पेन तयोः अमागमो भवति | अधस्थसूत्रद्वयं दृश्यताम्—
एकाच उपदेशेऽनुदात्तात् (७.२.१०) = यः औपदेशिकधातुः एकाच् अपि अनुदात्तः अपि अस्ति, तस्मात् विहितस्य प्रत्ययस्य इडागमो न भवति |
अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् (६.१.५९) = उपदेशे अनुदात्तः यः ऋदुपधः तस्य अम्-आगमः विकल्पेन भवति झलादौ अकिति प्रत्यये परे | षड् धातवः—तृप्, दृप्, सृप्, मृश्, स्पृश्, कृष् । इको यणचि (६.१.७६) ।
१२. एकाच्-षकारान्तधातवः - १२ धातवः अनिटः |
त्विष् | त्वेष्टा | त्वेष्टुम् | त्वेष्टव्यम् | त्वेक्ष्यति / ते | अत्वेक्ष्यत् / अत्वेक्ष्यत |
द्विष् | द्वेष्टा | द्वेष्टुम् | द्वेष्टव्यम् | द्वेक्ष्यति / ते | अद्वेक्ष्यत् / अद्वेक्ष्यत |
पिष् | पेष्टा | पेष्टुम् | पेष्टव्यम् | पेक्ष्यति | अपेक्ष्यत् |
विष् | वेष्टा | वेष्टुम् | वेष्टव्यम् | वेक्ष्यति / ते | अवेक्ष्यत् / अवेक्ष्यत |
शिष् | शेष्टा | शेष्टुम् | शेष्टव्यम् | शेक्ष्यति | अशेक्ष्यत् |
श्लिष् | श्लेष्टा | श्लेष्टुम् | श्लेष्टव्यम् | श्लेक्ष्यति | अश्लेक्ष्यत् |
तुष् | तोष्टा | तोष्टुम् | तोष्टव्यम् | तोक्ष्यति | अतोक्ष्यत् |
दुष् | दोष्टा | दोष्टुम् | दोष्टव्यम् | दोक्ष्यति | अदोक्ष्यत् |
पुष् | पोष्टा | पोष्टुम् | पोष्टव्यम् | पोक्ष्यति | अपोक्ष्यत् |
शुष् | शोष्टा | शोष्टुम् | शोष्टव्यम् | शोक्ष्यति | अशोक्ष्यत् |
कृष् | कर्ष्टा | कर्ष्टुम् | कर्ष्टाव्यम् | कर्क्ष्यति भ्वा / तु कर्क्ष्यति/ते | अकर्क्ष्यत् / अकर्क्ष्यत |
कृष् | क्रष्टा | क्रष्टुम् | क्रष्टव्यम् | क्रक्ष्यति भ्वा / तु क्रक्ष्यति/ते | अक्रक्ष्यत् / अक्रक्ष्यत |
त्विषँ दीप्तौ भ्वा उ० (त्वेषति/ते), द्विषँ अप्रीतौ अ उ० (द्वेष्टि/द्विष्टे), पिषॢँ सञ्चूर्णने हिंसायाम् च रु प० (पिनष्टि), विषॢँ व्याप्तौ जु उ० (वेवेष्टि/वेविष्टे), शिषँ हिंसायाम् भ्वा प० (शेषति), शिषॢँ विशेषणे रु प० (शिनष्टि), श्लिषँ आलिङ्गने दि प० (श्लिष्यति), तुषँ प्रीतौ दि प० (तुष्यति), दुषँ वैकृत्ये दि प० (दुष्यति), पुषँ पुष्टौ विभागे च दि प० (पुष्यति), शुषँ शोषणे दि प० (शुष्यति), कृषँ विलेखने भ्वा प० (कर्षति), कृषँ विलेखने तु उ० (कृषति/कृषते)
अन्ये सर्वे षकारान्तधातवः सेटः |
प्रक्रिया— ष्टुना ष्टुः (८.४.४१) ।
१३. एकाच्-सकारान्तधातवः - द्वौ धातू अनिटौ |
वस् | वस्ता | वस्तुम् | वस्तव्यम् | वत्स्यति* | अवत्स्यत् |
घस् | घस्ता | घस्तुम् | घस्तव्यम् | घत्स्यति* | अघत्स्यत् |
वसँ निवासे भ्वा प० (वसति), घसॢँ अदने भ्वा प० (घसति)
अन्ये सर्वे सकारान्तधातवः सेटः |
*सः स्यार्धधातुके (७.४.४९) = सकारस्य स्थाने तकारादेशो भवति सकारादि-आर्धधातुकप्रत्यये परे | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्— सः अङ्गस्य तः सि आर्धधातुके |
१४. एकाच्-हकारान्तधातवः - ८ धातवः अनिटः |
दह्१ | दग्धा | दग्धुम् | दग्धव्यम् | धक्ष्यति | अधक्ष्यत् |
दिह्१ | देग्धा | देग्धुम् | देग्धव्यम् | धेक्ष्यति / ते | अधेक्ष्यत्/अधेक्ष्यत |
मिह्२ | मेढा | मेढुम् | मेढव्यम् | मेक्ष्यति | अमेक्ष्यत् |
लिह्२ | लेढा | लेढुम् | लेढव्यम् | लेक्ष्यति / ते | अलेक्ष्यत् / अलेक्ष्यत |
दुह्१ | दोग्धा | दोग्धुम् | दोग्धव्यम् | धोक्ष्यति / ते | अधोक्ष्यत्/अधोक्ष्यत |
रुह्२ | रोढा | रोढुम् | रोढव्यम् | रोक्ष्यति | अरोक्ष्यत् |
वह्३ | वोढा | वोढुम् | वोढव्यम् | वक्ष्यति / ते | अवक्ष्यत् / अवक्ष्यत |
नह्४ | नद्धा | नद्धुम् | नद्धव्यम् | नत्स्यति / ते | अनत्स्यत् /अनत्स्यत |
दहँ भस्मीकरणे भ्वा प० (दहति), दिहँ उपचये अ उ० (देग्धि/दिग्धे), मिहँ सेचने भ्वा प० (मेहति), दुहँ प्रपूरणे अ उ० (दोग्धि/दुग्धे), रुहँ बीजजन्मनि प्रादुर्भावे च भ्वा प० (रोहति), लिहँ आस्वादने अ उ० (लेढि/लीढे), वहँ प्रापणे दि उ० (वहति/ते), णहँ बन्धने दि उ० (नह्यति/ते)
अन्ये सर्वे हकारान्तधातवः सेटः |
प्रक्रिया—
१) दह्, दिह्, दुह्—पुगन्तलघूपधस्य च (७.३.८६), दादेर्धातोर्घः (८.२.३२) = दकारादिधातोः हकारस्य स्थाने घकारादेशो भवति झलि पदान्ते च; झषस्तथोर्धोऽधः (८.२.४०) = झष्-उत्तरस्य तकारथकारयोः स्थाने धकारादेशो भवति, धा-धातुं वर्जयित्वा | झलां जश् झशि (८.४.५३) = झलां स्थाने जशादेशो भवति झशि परे |
२) मिह्, लिह्, रुह्—पुगन्तलघूपधस्य च (७.३.८६), हो ढः (८.२.३१) = हकारस्य स्थाने ढकारादेशो भवति झलि पदान्ते च; झषस्तथोर्धोऽधः (८.२.४०); ष्टुना ष्टुः (८.४.४१); ढो ढे लोपः (८.३.१३) = ढकारे परे पूर्वतनस्य ढकारस्य लोपो भवति |
३) वह्—हो ढः (८.२.३१); झषस्तथोर्धोऽधः (८.२.४०); ष्टुना ष्टुः (८.४.४१); ढो ढे लोपः (८.३.१३); सहिवहोरोदवर्णस्य (६.३.११२) = ढकारस्य लोपश्चेत्, सह् वह् इति धात्वोः अकारस्य स्थाने ओकारादेशो भवति |
४) नह्—नहो धः (८.२.३४) = नह्-धातोः हकारस्य धकारादेशो भवति झलि पदान्ते च; झषस्तथोर्धोऽधः (८.२.४०); झलां जश् झशि (८.४.५३) |
धेयम्—एतेभ्यः अनिट्-धातुभ्यः यदा सनादिप्रत्ययाः संयुज्यन्ते, तदा एते सनाद्यन्ताः आतिदेशिकधातवः अनेकाचः इति कृत्वा एते सर्वे सेटः भवन्ति | यथा गम् + सन् → जिगमिष, गम् + यङ् → जङ्गम्य | एते अनेकाचः धातवः सेटः |
भव्याभगिन्या विरचितं कोष्ठकमपि सुन्दरं— तस्मिन् सर्वा सूचिना मिलित्वा प्राप्यते | येषां कृते भव्या-भगिन्याः कोष्ठके अधिकसौकर्यं, तत् कोष्ठकं स्थलद्वये उपयोक्तुं शक्यते--
१) हलन्तधातूनाम् इड्व्यवस्था---समग्रं चिन्तनम्
Swarup – July 2019