7---ArdhadhAtukaprakaraNam/14---halantadhAtUnAm-iDvyavasthA: Difference between revisions
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<big>३. एकाच्-छकारान्तधातवः - एक एव छकारन्तधातुः अनिट् अस्ति |</big> |
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<big>५. एकाच्-दकारान्तधातवः - १५ धातवः अनिटः |</big> |
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<big>७. एकाच्-नकारान्तधातवः - द्वौ धातू अनिटौ |</big> |
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<big>९. एकाच्-भकारान्तधातवः - ३ धातवः अनिटः |</big> |
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<big>१०. एकाच्-मकारान्तधातवः - ४ धातवः अनिटः |</big> |
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<big>११. एकाच्-शकारान्तधातवः - १० धातवः अनिटः |</big> |
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<big>१३. एकाच्-सकारान्तधातवः - द्वौ धातू अनिटौ |</big> |
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<big>१४. एकाच्-हकारान्तधातवः - ८ धातवः अनिटः |</big> |
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|<big>दह्</big> |
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|<big>दग्धा</big> |
|<big>दग्धा</big> |
Revision as of 08:22, 9 June 2021
अनिट्-हलन्तधातवः
हलन्तधातवः आधिक्येन सेटः अतः ये अनिटः, तेषां ज्ञानेन हलन्तधातूनाम् इड्व्यवस्था सौकर्येण ज्ञेया | केवलं १०२ हलन्तधातवः अनिटः; तेषां कण्ठस्थीकरणेन सर्वेषाम् हलन्तधातूनाम् इड्व्यवस्था मनसि सिद्धा |
१. एकाच्-ककारान्तधातवः - एक एव ककारन्तधातुः अनिट् अस्ति |
धातुः | तास् (लुट्) | तुमुन् | तव्यत् | स्य (लृट्) | स्य (लृङ्) |
शक् | शक्ता | शक्तुम् | शक्तव्यम् | शक्ष्यति | अशक्ष्यत् |
शक्लृ शक्तौ स्वा प० (शक्नोति)
अन्ये सर्वे ककारान्तधातवः सेटः |
२. एकाच्-चकारान्तधातवः - षड् धातवः अनिटः |
पच् | पक्ता | पक्तुम् | पक्तव्यम् | पक्ष्यति / ते | अपक्ष्यत् / अपक्ष्यत |
वच् | वक्ता | वक्तुम् | वक्तव्यम् | वक्ष्यति | अवक्ष्यत् |
रिच्-रेच् | रेक्ता | रेक्तुम् | रेक्तव्यम् | रेक्ष्यति / ते | अरेक्ष्यत् / अरेक्ष्यत |
विच्-वेच् | वेक्ता | वेक्तुम् | वेक्तव्यम् | वेक्ष्यति / ते | अवेक्ष्यत् / अवेक्ष्यत |
सिच्-सेच् | सेक्ता | सेक्तुम् | सेक्तव्यम् | सेक्ष्यति / ते | असेक्ष्यत् / असेक्ष्यत |
मुच्-मोच् | मोक्ता | मोक्तुम् | मोक्तव्यम् | मोक्ष्यति / ते | अमोक्ष्यत् / अमोक्ष्यत |
डुपचँष् पाके भ्वा उ० (पचति/ते), वचँ परिभाषणे अ प० (वक्ति), रिचिँर् विरेचने रु उ० (रिणक्ति/रिङ्क्ते), विचिँर् पृथग्भावे रु उ० (विनक्ति/विङ्क्ते), षिचँ क्षरणे तु उ० (सिञ्चति/ते), मुचॢँ मोक्षणे तु उ० (मुञ्चति/ते)
अन्ये सर्वे चकारान्तधातवः सेटः |
३. एकाच्-छकारान्तधातवः - एक एव छकारन्तधातुः अनिट् अस्ति |
प्रच्छ् | प्रष्टा | प्रष्टुम् | प्रष्टव्यम् | प्रक्ष्यति | अप्रक्ष्यत् |
प्रछँ ज्ञीप्सायाम् तु प० (पृच्छति)
अन्ये सर्वे छकारान्तधातवः सेटः |
४. एकाच्-जकारान्तधातवः - १५ धातवः अनिटः |
त्यज् | त्यक्ता | त्यक्तुम् | त्यक्तव्यम् | त्यक्ष्यति | अत्यक्ष्यत् |
भज् | भक्ता | भक्तुम् | भक्तव्यम् | भक्ष्यति / ते | अभक्ष्यत् /अभक्ष्यत |
यज् | यष्टा | यष्टुम् | यष्टव्यम् | यक्ष्यति / ते | अयक्ष्यत् /अयक्ष्यत |
निज्-नेज् | नेक्ता | नेक्तुम् | नेक्तव्यम् | नेक्ष्यति / ते | अनेक्ष्यत् /अनेक्ष्यत |
विज्-वेज् | वेक्ता | वेक्तुम् | वेक्तव्यम् | वेक्ष्यति / ते | अवेक्ष्यत् / अवेक्ष्यत |
भुज्-भोज् | भोक्ता | भोक्तुम् | भोक्तव्यम् | भोक्ष्यति तुदादौ /ति & ते रुधादौ | अभोक्ष्यत् / अभोक्ष्यत |
युज्-योज् | योक्ता | योक्तुम् | योक्तव्यम् | योक्ष्यति / ते | अयोक्ष्यत् / अयोक्ष्यत |
रुज्-रोज् | रोक्ता | रोक्तुम् | रोक्तव्यम् | रोक्ष्यति | अरोक्ष्यत् |
सृज्-स्रज् | स्रष्टा | स्रष्टुम् | स्रष्टव्यम् | स्रक्ष्यति तुदादौ / ते दिवादौ | अस्रक्ष्यत् / अस्रक्ष्यत |
भञ्ज् | भङ्क्ता | भङ्क्तुम् | भङ्क्तव्यम् | भङ्क्ष्यति | अभङ्क्ष्यत् |
रञ्ज् | रङ्क्ता | रङ्क्तुम् | रङ्क्तव्यम् | रङ्क्ष्यति / ते | अरङ्क्ष्यत् / अरङ्क्ष्यत |
सञ्ज् | सङ्क्ता | सङ्क्तुम् | सङ्क्तव्यम् | सङ्क्ष्यति | असङ्क्ष्यत् |
स्वञ्ज् | स्वङ्क्ता | स्वङ्क्तुम् | स्वङ्क्तव्यम् | स्वङ्क्ष्यते | अस्वङ्क्ष्यत |
मस्ज्-मंज् | मङ्क्ता | मङ्क्तुम् | मङ्क्तव्यम् | मङ्क्ष्यति | अमङ्क्ष्यत् |
भ्रस्ज्-भ्रज् | भ्रष्टा | भ्रष्टुम् | भ्रष्टव्यम् | भ्रक्ष्यति / ते | अभ्रक्ष्यत् / अभ्रक्ष्यत |
भ्रस्ज्-भर्ज् | भर्ष्टा | भर्ष्टुम् | भर्ष्टव्यम् | भर्क्ष्यति / ते | अभर्क्ष्यत् / अभर्क्ष्यत |
त्यजँ हानौ भ्वा प० (त्यजति), भजँ सेवायाम् भ्वा उ० (भजति/ते), यजँ देवपूजासङ्गतिकरणदानेषु भ्वा उ० (यजति/ते), णिजिँर् शौचपोषणयोः जु उ० (नेनेक्ति/नेनिक्ते), विजिँर् पृथग्भावे जु उ० (वेवेक्ति/वेविक्ते), भुजोँ कौटिल्ये तु प० (भुजति), भुजँ पालनाभ्यवहारयोः रु उ० (भुनक्ति/भुङ्क्ते), युजँ समाधौ दि आ (युज्यते), युजिँर् योगे रु उ० (युनक्ति/युङ्क्ते), रुजोँ भङ्गे तु प० रुजति, सृजँ विसर्गे तु प० (सृजति), सृजँ विसर्गे दि आ० (सृज्यते), भञ्जोँ आमर्दने रु प० (भनक्ति), रन्ज्ँ रागे भ्वा उ० (रजति/ते), रञ्जँ रागे दि उ० (रज्यति/ते), षञ्जँ सङ्गे भ्वा प० (सजति), ष्वन्ज् परिष्वङ्गे भ्वा: आ० (स्वजते), टुमस्जोँ शुद्धौ तु प० (मज्जति), भ्रस्जँ पाके तु उ० (भृज्जति/ते)
अन्ये सर्वे जकारान्तधातवः सेटः |
५. एकाच्-दकारान्तधातवः - १५ धातवः अनिटः |
अद् | अत्ता | अत्तुम् | अत्तव्यम् | अत्स्यति | आत्स्यत् |
पद् | पत्ता | पत्तुम् | पत्तव्यम् | पत्स्यते | अपत्स्यत |
शद् | शत्ता | शत्तुम् | शत्तव्यम् | शत्स्यति भ्वादौ / ते तुदादौ | अशत्स्यत् / अशत्स्यत |
सद् | सत्ता | सत्तुम् | सत्तव्यम् | सत्स्यति | असत्स्यत् |
हद् | हत्ता | हत्तुम् | हत्तव्यम् | हत्स्यते | अहत्स्यत |
खिद्-खेद् | खेत्ता | खेत्तुम् | खेत्तव्यम् | खेत्स्यति / ते | अखेत्स्यत् / अखेत्स्यत |
छिद्-छेद् | छेत्ता | छेत्तुम् | छेत्तव्यम् | छेत्स्यति / ते | अच्छेत्स्यत् / अच्छेत्स्यत |
भिद्-भेद् | भेत्ता | भेत्तुम् | भेत्तव्यम् | भेत्स्यति / ते | अभेत्स्यत् / अभेत्स्यत |
विद्-वेद् | वेत्ता | वेत्तुम् | वेत्तव्यम् | वेत्स्यते | अवेत्स्यत |
विद्-वेद् | वेत्ता | वेत्तुम् | वेत्तव्यम् | वेत्स्यते | अवेत्स्यत |
स्विद्-स्वेद् | स्वेत्ता | स्वेत्तुम् | स्वेत्तव्यम् | स्वेत्स्यति | अस्वेत्स्यत् |
क्षुद्-क्षोद् | क्षोत्ता | क्षोत्तुम् | क्षोत्तव्यम् | क्षोत्स्यति / ते | अक्षोत्स्यत् / अक्षोत्स्यत |
तुद्-तोद् | तोत्ता | तोत्तुम् | तोत्तव्यम् | तोत्स्यति / ते | अतोत्स्यत् / अतोत्स्यत |
नुद्-नोद् | नोत्ता | नोत्तुम् | नोत्तव्यम् | नोत्स्यति / ते | अनोत्स्यत् / अनोत्स्यत |
स्कन्द् | स्कन्त्ता | स्कन्त्तुम् | स्कन्त्तव्यम् | स्कन्त्स्यति | अस्कन्त्स्यत् |
अदँ भक्षणे अ प० (अत्ति), पदँ गतौ दि आ० (पद्यते), शदॢँ शातने भ्वा: प० (शीयति), शदॢँ शातने तु प० (शीयते) (प० किन्तु शदेः शितः (१.३.६०) इत्यनेन सार्वधातुकलकारेषु लट्, लोट्, लङ्, विधिलिङ् अस्य आत्मनेपदस्यैव रूपाणि भवन्ति), षदॢँ विशरणगत्यवसादनेषु भ्वा प०, तु प० (सीदति उभयत्र), हदँ पुरीषोत्सर्गे भ्वा आ० (हदते), खिदँ दैन्ये दि आ० (खिद्यते), खिदँ दैन्ये रुधादि: आ (खिन्ते), खिदँ परिघाते तु प० (खिन्दति), छिदिँर् द्वैधीकरणे रु० उ० (छिनत्ति/छिन्ते), छिद्र कर्णभेदने चु उ० छिद्रयति/ते)(लृटि छिद्रयिष्यति/ते), भिदिँर् विदारणे रु उ० (भिनत्ति/भिन्ते), विदँ सत्तायाम् दि आ० अनिट् (विद्यते), विदँ विचारणे रुधादि: आ अनिट् (विन्ते), विदँ ज्ञाने अ प० सेट् (वेद/वेत्ति), विदॢँ लाभे तु उ० सेट् (विन्दति/ते), विदँ चेतनाख्याननिवासेषु चु आ० सेट् (वेदयते), ष्विदाँ गात्रप्रक्षरणे दि प० (स्विद्यति), क्षुदिँर् सम्प्रेषणे रु उ० (क्षुणत्ति/क्षुन्ते), तुदँ व्यथने तु उ० (तुदति/ते), णुदँ प्रेरणे तु उ० (नुदति/ते), स्कन्दिँर् गतिशोषणयोः भ्वा प० (स्कन्दति)
अन्ये सर्वे दकारान्तधातवः सेटः |
६. एकाच्-धकारान्तधातवः - १० धातवः अनिटः |
व्यध् | व्यद्धा | व्यद्धुम् | व्यद्धव्यम् | व्यत्स्यति | अव्यत्स्यत् |
सिध्-सेध् | सेद्धा | सेद्धुम् | सेद्धव्यम् | सेत्स्यति | असेत्स्यत् |
क्रुध्-क्रोध् | क्रोद्धा | क्रोद्धुम् | क्रोद्धव्यम् | क्रोत्स्यति | अक्रोत्स्यत् |
क्षुध्-क्षोध् | क्षोद्धा | क्षोद्धुम् | क्षोद्धव्यम् | क्षोत्स्यति | अक्षोत्स्यत् |
बुध्-बोध् | बोद्धा | बोद्धुम् | बोद्धव्यम् | भोत्स्यते | अभोत्स्यत |
युध्-योध् | योद्धा | योद्धुम् | योद्धव्यम् | योत्स्यते | अयोत्स्यत |
शुध्-शोध् | शोद्धा | शोद्धुम् | शोद्धव्यम् | शोत्स्यति | अशोत्स्यत् |
राध् | राद्धा | राद्धुम् | राद्धव्यम् | रात्स्यति | अरात्स्यत् |
साध् | साद्धा | साद्धुम् | साद्धव्यम् | सात्स्यति | असात्स्यत् |
बन्ध् | बन्द्धा | बन्द्धुम् | बन्द्धव्यम् | भन्त्स्यति | अभन्त्स्यत् |
व्यधँ ताडने दि प० (विध्यति), षिधुँ संराद्धौ दि प० (सिध्यति), क्रुधँ क्रोधे दि प० (क्रुध्यति), क्षुधँ बुभुक्षायाम् दि प० (क्षुध्यति), बुधँ अवगमने दि आ० (बुध्यते), युधँ सम्प्रहारे दि आ० (युध्यते), शुधँ शौचे दि प० (शुध्यति), राधँ वृद्धौ दि प० (राध्यति), राधँ संसिद्धौ स्वा प० (राध्नोति), साधँ संसिद्धौ स्वा प० (साध्नोति), बन्धँ बन्धने क्र्या प० (बध्नाति)
अन्ये सर्वे धकारान्तधातवः सेटः |
७. एकाच्-नकारान्तधातवः - द्वौ धातू अनिटौ |
मन् | मन्ता | मन्तुम् | मन्तव्यम् | मंस्यते | अमंस्यत |
हन् | हन्ता | हन्तुम् | हन्तव्यम् | हनिष्यति | अहनिष्यत् |
अत्र विशेषः -
ऋद्धनोः स्ये (७.२.७०) इत्यनेन ऋकारान्ताः धातवः, हन्-धातुः च स्यप्रत्यये सेटः भवन्ति |
मनँ ज्ञाने दि आ० (मन्यते), हनँ हिंसागत्योः अ प० (हन्ति)
अन्ये सर्वे नकारान्तधातवः सेटः |
८. एकाच्-पकारान्तधातवः - १३ धातवः अनिटः |
तप् | तप्ता | तप्तुम् | तप्तव्यम् | तप्स्यति भ्वादौ
तप्स्यते दिवादौ |
अतप्स्यत्
अतप्स्यत |
वप् | वप्ता | वप्तुम् | वप्तव्यम् | वप्स्यति / ते | अवप्स्यत् / अवप्स्यत |
शप् | शप्ता | शप्तुम् | शप्तव्यम् | शप्स्यति / ते | अशप्स्यत् /अशप्स्यत |
स्वप् | स्वप्ता | स्वप्तुम् | स्वप्तव्यम् | स्वप्स्यति | अस्वप्स्यत् |
क्षिप्-क्षेप् | क्षेप्ता | क्षेप्तुम् | क्षेप्तव्यम् | क्षेप्स्यति / ते | अक्षेप्स्यत् / अक्षेप्स्यत |
तिप्-तेप् | तेप्ता | तेप्तुम् | तेप्तव्यम् | तेप्स्यते | अतेप्स्यत |
लिप्-लेप् | लेप्ता | लेप्तुम् | लेप्तव्यम् | लेप्स्यति / ते | अलेप्स्यत् / अलेप्स्यत |
छुप्-छोप् | छोप्ता | छोप्तुम् | छोप्तव्यम् | छोप्स्यति | अच्छोप्स्यत् |
लुप्-लोप् | लोप्ता | लोप्तुम् | लोप्तव्यम् | लोप्स्यति / ते | अलोप्स्यत् / अलोप्स्यत |
तृप्-तर्प्
तृप्*-त्रप् |
तर्प्ता
त्रप्ता |
तर्प्तुम्
त्रप्तुम् |
तर्प्तव्यम्
त्रप्तव्यम् |
तर्प्स्यति
त्रप्स्यति |
अतर्प्स्यत्
अत्रप्स्यत् |
दृप्-दर्प्
दृप्*-द्रप् |
दर्प्ता
द्रप्ता |
दर्प्तुम्
द्रप्तुम् |
दर्प्तव्यम्
द्रप्तव्यम् |
दर्प्स्यति
द्रप्स्यति |
अदर्प्स्यत्
अद्रप्स्यत् |
सृप्-सर्प्
सृप्*-स्रप् |
सर्प्ता
स्रप्ता |
सर्प्तुम्
स्रप्तुम् |
सर्प्तव्यम्
स्रप्तव्यम् |
सर्प्स्यति
स्रप्स्यति |
असर्प्स्यत्
अस्रप्स्यत् |
आप् | आप्ता | आप्तुम् | आप्तव्यम् | आप्स्यति | आप्स्यत् |
तपँ सन्तापे भ्वा प० (तपति), तपँ ऐश्वर्ये दि आ० (तप्यते, विकल्पेन शप् प० तपति), डुवपँ बीजसन्ताने भ्वा उ० (वपति/ते), शपँ आक्रोशे भ्वा उ० शपति/ते), ञिष्वपँ शये अ प० (स्वपिति), क्षिपँ प्रेरणे दि प० (क्षिप्यति), क्षिपँ प्रेरणे तु उ० (क्षिपति/ते), तिपृँ क्षरणे भ्वा आ० (तेपते), लिपँ उपदेहे तु उ० (लिम्पति/ते), छुपँ स्पर्शे तु प० (छुपति), लुपॢँ छेदने तु उ० (लुम्पति/ते), तृपँ प्रीणने दि प० (तृप्यति), दृपँ हर्षमोहनयोः दि प० (दृप्यति), सृपॢँ गतौ भ्वा प० (सर्पति), आपॢँ व्याप्तौ स्वा प० (आप्नोति)
*तृप्, दृप्, सृप् एते त्रयः धातवः अनुदात्ताः अतः अनिटः; अनिटः च ऋदुपधाः च इत्यतः विकल्पेन तेषाम् अमागमो भवति | अधस्थसूत्रद्वयं दृश्यताम्—
एकाच उपदेशेऽनुदात्तात् (७.२.१०) = यः औपदेशिकधातुः एकाच् अपि अनुदात्तः अपि अस्ति, तस्मात् विहितस्य प्रत्ययस्य इडागमो न भवति |
अनुदात्तस्य चर्दुपधस्यान्यतरस्याम् (६.१.५९) = उपदेशे अनुदात्तः यः ऋदुपधः तस्य अम्-आगमः विकल्पेन भवति झलादौ अकिति प्रत्यये परे |
अन्ये सर्वे पकारान्तधातवः सेटः |
९. एकाच्-भकारान्तधातवः - ३ धातवः अनिटः |
यभ् | यब्धा | यब्धुम् | यब्धव्यम् | यप्स्यति | अयप्स्यत् |
रभ् | रब्धा | रब्धुम् | रब्धव्यम् | रप्स्यते | अरप्स्यत |
लभ् | लब्धा | लब्धुम् | लब्धव्यम् | लप्स्यते | अलप्स्यत |
यभँ मैथुने भ्वा प० (यभति), रभँ राभस्ये भ्वा आ० (आरभते), डुलभँष् प्राप्तौ भ्वा आ० (लभते)
अन्ये सर्वे भकारान्तधातवः सेटः |
१०. एकाच्-मकारान्तधातवः - ४ धातवः अनिटः |
गम् | गन्ता | गन्तुम् | गन्तव्यम् | गमिष्यति | अगमिष्यत् |
नम् | नन्ता | नन्तुम् | नन्तव्यम् | नंस्यति | अनंस्यत् |
यम् | यन्ता | यन्तुम् | यन्तव्यम् | यंस्यति | अयंस्यत् |
रम् | रन्ता | रन्तुम् | रन्तव्यम् | रंस्यते | अरंस्यत |
अत्र विशेषः -
गमेरिट् परस्मैपदेषु (७.२.५८) इत्यनेन गम्-धातोः परस्य सकारदेः प्रत्ययस्य इडागमो भवति |
गमॢँ गतौ भ्वा प० (गच्छति), णमँ प्रह्वत्वे शब्दे च भ्वा प० (नमति), यमँ उपरमे भ्वा प० (यच्छति), रमुँ क्रीडायाम् भ्वा आ० (रमते)
अन्ये सर्वे मकारान्तधातवः सेटः |
११. एकाच्-शकारान्तधातवः - १० धातवः अनिटः |
दिश्-देश् | देष्टा | देष्टुम् | देष्टव्यम् | देक्ष्यति / ते | अदेक्ष्यत् / अदेक्ष्यत |
रिश्-रेश् | रेष्टा | रेष्टुम् | रेष्टव्यम् | रेक्ष्यति | अरेक्ष्यत् |
लिश्-लेश् | लेष्टा | लेष्टुम् | लेष्टव्यम् | लेक्ष्यति (तुदादौ), ते (दिवादौ) | अलेक्ष्यत् / अलेक्ष्यत |
विश्-वेश् | वेष्टा | वेष्टुम् | वेष्टव्यम् | वेक्ष्यति | अवेक्ष्यत् |
रुश्-रोश् | रोष्टा | रोष्टुम् | रोष्टव्यम् | रोक्ष्यति | अरोक्ष्यत् |
क्रुश्-क्रोश् | क्रोष्टा | क्रोष्टुम् | क्रोष्टव्यम् | क्रोक्ष्यति | अक्रोक्ष्यत् |
दृश्-द्रश् | द्रष्टा | द्रष्टुम् | द्रष्टव्यम् | द्रक्ष्यति | अद्रक्ष्यत् |
मृश्-मर्श्
मृश्-म्रश् |
मर्ष्टा
म्रष्टा |
मर्ष्टुम्
म्रष्टुम् |
मर्ष्टव्यम्
म्रष्टव्यम् |
मर्क्ष्यति
म्रक्ष्यति |
अमर्क्ष्यत्
अम्रक्ष्यत् |
स्पृश्-स्पर्श्
स्पृश्-स्प्रश् |
स्पर्ष्टा
स्प्रष्टा |
स्पर्ष्टुम्
स्प्रष्टुम् |
स्पर्ष्टव्यम्
स्प्रष्टव्यम् |
स्पर्क्ष्यति
स्प्रक्ष्यति |
अस्पर्क्ष्यत्
अस्प्रक्ष्यत् |
दंश् | दंष्टा | दंष्टुम् | दंष्टव्यम् | दंक्ष्यति | अदंक्ष्यत् |
दिशँ अतिसर्जने तु उ० (दिशति/ते), रिशँ हिंसायाम् तु प० (रिशति), लिशँ गतौ तु प० (लिशति), लिशँ अल्पीभावे दि आ० (लिश्यते), विशँ प्रवेशने तु प० (विशति), रुशँ हिंसायाम् तु प० (रुशति), क्रुशँ आह्वाने रोदने च भ्वा प० (क्रोशति), दृशिँर् प्रेक्षणे भ्वा प० (पश्यति), मृशँ आमर्शने तु प० (मृशति), स्पृशँ संस्पर्शने तु प० (स्पृशति), दंशँ दशने भ्वा प० (दशति)
अन्ये सर्वे शकारान्तधातवः सेटः |
१२. एकाच्-षकारान्तधातवः - १२ धातवः अनिटः |
त्विष्-त्वेष् | त्वेष्टा | त्वेष्टुम् | त्वेष्टव्यम् | त्वेक्ष्यति / ते | अत्वेक्ष्यत् / अत्वेक्ष्यत |
द्विष्-द्वेष् | द्वेष्टा | द्वेष्टुम् | द्वेष्टव्यम् | द्वेक्ष्यति / ते | अद्वेक्ष्यत् / अद्वेक्ष्यत |
पिष्-पेष् | पेष्टा | पेष्टुम् | पेष्टव्यम् | पेक्ष्यति | अपेक्ष्यत् |
विष्-वेष् | वेष्टा | वेष्टुम् | वेष्टव्यम् | वेक्ष्यति / ते | अवेक्ष्यत् / अवेक्ष्यत |
शिष्-शेष् | शेष्टा | शेष्टुम् | शेष्टव्यम् | शेक्ष्यति | अशेक्ष्यत् |
श्लिष्-श्लेष् | श्लेष्टा | श्लेष्टुम् | श्लेष्टव्यम् | श्लेक्ष्यति | अश्लेक्ष्यत् |
तुष्-तोष् | तोष्टा | तोष्टुम् | तोष्टव्यम् | तोक्ष्यति | अतोक्ष्यत् |
दुष्-दोष् | दोष्टा | दोष्टुम् | दोष्टव्यम् | दोक्ष्यति | अदोक्ष्यत् |
पुष्-पोष् | पोष्टा | पोष्टुम् | पोष्टव्यम् | पोक्ष्यति | अपोक्ष्यत् |
शुष्-शोष् | शोष्टा | शोष्टुम् | शोष्टव्यम् | शोक्ष्यति | अशोक्ष्यत् |
कृष्-कर्ष् | कर्ष्टा | कर्ष्टुम् | कर्ष्टाव्यम् | कर्क्ष्यति भ्वा / तु कर्क्ष्यति/ते | अकर्क्ष्यत् / अकर्क्ष्यत |
कृष्-क्रष् | क्रष्टा | क्रष्टुम् | क्रष्टव्यम् | क्रक्ष्यति भ्वा / तु क्रक्ष्यति/ते | अक्रक्ष्यत् / अक्रक्ष्यत |
त्विषँ दीप्तौ भ्वा उ० (त्वेषति/ते), द्विषँ अप्रीतौ अ उ० (द्वेष्टि/द्विष्टे), पिषॢँ सञ्चूर्णने हिंसायाम् च रु प० (पिनष्टि), विषॢँ व्याप्तौ जु उ० (वेवेष्टि/वेविष्टे), शिषँ हिंसायाम् भ्वा प० (शेषति), शिषॢँ विशेषणे रु प० (शिनष्टि), श्लिषँ आलिङ्गने दि प० (श्लिष्यति), तुषँ प्रीतौ दि प० (तुष्यति), दुषँ वैकृत्ये दि प० (दुष्यति), पुषँ पुष्टौ विभागे च दि प० (पुष्यति), शुषँ शोषणे दि प० (शुष्यति), कृषँ विलेखने भ्वा प० (कर्षति), कृषँ विलेखने तु उ० (कृषति/कृषते)
अन्ये सर्वे षकारान्तधातवः सेटः |
१३. एकाच्-सकारान्तधातवः - द्वौ धातू अनिटौ |
वस् | वस्ता | वस्तुम् | वस्तव्यम् | वत्स्यति* | अवत्स्यत् |
घस् | घस्ता | घस्तुम् | घस्तव्यम् | घत्स्यति* | अघत्स्यत् |
वसँ निवासे भ्वा प० (वसति), घसॢँ अदने भ्वा प० (घसति)
अन्ये सर्वे सकारान्तधातवः सेटः |
*सः स्यार्धधातुके (७.४.४९) = सकारस्य स्थाने तकारादेशो भवति सकारादि-आर्धधातुकप्रत्यये परे | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्— सः अङ्गस्य तः सि आर्धधातुके |
१४. एकाच्-हकारान्तधातवः - ८ धातवः अनिटः |
दह् | दग्धा | दग्धुम् | दग्धव्यम् | धक्ष्यति | अधक्ष्यत् |
दिह्-देह् | देग्धा | देग्धुम् | देग्धव्यम् | धेक्ष्यति / ते | अधेक्ष्यत्/अधेक्ष्यत |
दुह्-दोह् | दोग्धा | दोग्धुम् | दोग्धव्यम् | धोक्ष्यति / ते | अधोक्ष्यत्/अधोक्ष्यत |
मिह्-मेह् | मेढा | मेढुम् | मेढव्यम् | मेक्ष्यति | अमेक्ष्यत् |
लिह्-लेह् | लेढा | लेढुम् | लेढव्यम् | लेक्ष्यति / ते | अलेक्ष्यत् / अलेक्ष्यत |
रुह्-रोह् | रोढा | रोढुम् | रोढव्यम् | रोक्ष्यति | अरोक्ष्यत् |
वह् | वोढा | वोढुम् | वोढव्यम् | वक्ष्यति / ते | अवक्ष्यत् / अवक्ष्यत |
नह् | नद्धा | नद्धुम् | नद्धव्यम् | नत्स्यति / ते | अनत्स्यत् /अनत्स्यत |
दहँ भस्मीकरणे भ्वा प० (दहति), दिहँ उपचये अ उ० (देग्धि/दिग्धे), दुहँ प्रपूरणे अ उ० (दोग्धि/दुग्धे), मिहँ सेचने भ्वा प० (मेहति), रुहँ बीजजन्मनि प्रादुर्भावे च भ्वा प० (रोहति), लिहँ आस्वादने अ उ० (लेढि/लीढे), वहँ प्रापणे दि उ० (वहति/ते), णहँ बन्धने दि उ० (नह्यति/ते)
अन्ये सर्वे हकारान्तधातवः सेटः |
धेयम्—एतेभ्यः अनिट्-धातुभ्यः यदा सनादिप्रत्ययाः संयुज्यन्ते, तदा एते सनाद्यन्ताः आतिदेशिकधातवः अनेकाचः इति कृत्वा एते सर्वे सेटः भवन्ति | यथा गम् + सन् → जिगमिष, गम् + यङ् → जङ्गम्य | एते अनेकाचः धातवः सेटः |
भव्याभगिन्या विरचितं कोष्ठकमपि सुन्दरं— तस्मिन् सर्वा सूचिना मिलित्वा प्राप्यते | येषां कृते भव्या-भगिन्याः कोष्ठके अधिकसौकर्यं, तत् कोष्ठकं स्थलद्वये उपयोक्तुं शक्यते--
१) हलन्तधातूनाम् इड्व्यवस्था---समग्रं चिन्तनम्
Swarup – July 2019
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