9---anye-vyAkaraNa-sambaddha-viShayAH/12---ChAtraiH-viracitAni-karapatrANi/02---siddha-ting-pratyayAnAM-niShpAdanam: Difference between revisions
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| colspan="10" |<big>'''सिद्ध-तिङ्प्रत्ययाः - भव्या रामस्वामी'''</big> |
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तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् |
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(७.१.३५) |
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एरुः (३.४.८६) > अत् + उ |
एरुः (३.४.८६) > अत् + उ |
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| rowspan="2" |अन्तु |
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|<nowiki>एरुः (३.४.८६) — लोटः लस्य एः उः |</nowiki> |
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(३.४.८७) > अतो हेः (६.४.१०५) |
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तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् (७.१.३५) |
तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् (७.१.३५) |
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|<nowiki>अतो हेः (६.४.१०५) — अतः अङ्गात् हेः लुक् |</nowiki> |
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|इतश्च (३.४.१००), एरुः (३.४.८६) |
|इतश्च (३.४.१००), एरुः (३.४.८६) |
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प्रबध्य > सेर्ह्यपिच्च (३.४.८७) |
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तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् |
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(७.१.३५) |
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|हि/ तात् |
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|<nowiki>मेर्निः (३.४.८९) — लोटः लस्य मेः निः |</nowiki> |
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| rowspan="2" |मिप् |
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| rowspan="2" |आडुत्तमस्य पिच्च (३.४.९२) > आ + / |
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> इतश्च (३.४.१००) प्रबाध्य> |
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तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) |
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प्रबाध्य > एरुः (३.४.८६) प्रबाध्य > |
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मेर्निः (३.४.८९) > नि > आडुत्तमस्य |
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पिच्च (३.४.९२) > आ + नि |
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| rowspan="2" |आनि |
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| rowspan="2" |वस् |
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| rowspan="2" |आडुत्तमस्य पिच्च (३.४.९२) > आ + |
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/ > न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) प्रबाध्य |
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अपवादेन > नित्यंङितः (३.४.९९) > |
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आ + व |
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| rowspan="2" |मस् |
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| rowspan="2" |आडुत्तमस्य पिच्च (३.४.९२) आ + |
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/ > न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) |
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प्रबाध्य अपवादेन > नित्यं ङितः |
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(३.४.९९) > आ + म |
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| rowspan="2" |आम |
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|आडुत्तमस्य पिच्च (३.४.९२) — लोटः लस्य |
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उत्तमस्य आट् पित् च | |
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अङ्गस्य तुह्योः तातङ् आशिषि अन्यतरस्याम् | |
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Revision as of 15:06, 18 May 2021
सिद्ध-तिङ्प्रत्ययाः - भव्या रामस्वामी | |||||||||
परस्मैपदि लट् | सूत्राणि | ||||||||
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तिप् | हलन्त्यम् (१.३.३) | ति | तस् | न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) >
ससजुषो रुः (८.२.६६), खरवसानयोर्विसर्जनीयः (८.३.१५) |
तः | झि | झोऽन्तः > अन्त् + इ
जुहोत्यादिगणे अदभ्यास्तात् (७.१.४) > अत् + इ |
अन्ति
(अति ) |
झोऽन्तः (७.१.३) — अङ्गस्य प्रत्ययस्य झः अन्तः | |
सिप् | हलन्त्यम् (१.३.३) | सि | थस् | न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) >
ससजुषो रुः (८.२.६६), खरवसानयोर्विसर्जनीयः (८.३.१५) |
थः | थ | थ | ||
मिप् | हलन्त्यम् (१.३.३) | मि | वस् | न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) >
ससजुषो रुः (८.२.६६), खरवसानयोर्विसर्जनीयः (८.३.१५) |
वः | मस् | न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) >
ससजुषो रुः (८.२.६६), खरवसानयोर्विसर्जनीयः (८.३.१५) |
मः | अतो दीर्घो यञि (७.३.१०१) — अतः अङ्गस्य दीर्घः
यञि सार्वधातुके | |
परस्मैपदि लोट्
(लोटो लङ्वत् (३.४.८५), इतश्च (३.४.१००) ) |
लोटो लङ्वत् (३.४.८५) —
लोटः लङ्वत् | | ||||||||
तिप् | इतश्च (३.४.१००) प्रबाध्य > एरुः
(३.४.८६) तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् (७.१.३५) |
तु/ तात् | तस् | न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) प्रबाध्य >
तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) |
ताम् | झि | झोऽन्तः > अन्त् + इ > इतश्च
(३.४.१००) प्रबाध्य अपवादेन > एरुः (३.४.८६) > अन्त् + उ जुहोत्यादिगणे अदभ्यास्तात् (७.१.४) > अत् + इ > इतश्च (३.४.१००) प्रबाध्य अपवादेन > एरुः (३.४.८६) > अत् + उ |
अन्तु
(अतु ) |
एरुः (३.४.८६) — लोटः लस्य एः उः | |
सेर्ह्यपिच्च (३.४.८७) — लोटः लस्य सेः हि अपित् च | |||||||||
सिप् | इतश्च (३.४.१००) प्रबाध्य > एरुः
(३.४.८६) प्रबाध्य> सेर्ह्यपिच्च (३.४.८७) > अतो हेः (६.४.१०५) तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् (७.१.३५) |
0/ तात् | थस् | न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) प्रबाध्य >
तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) |
तम् | थ | तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः
(३.४.१०१) |
त | अतो हेः (६.४.१०५) — अतः अङ्गात् हेः लुक् | |
इतश्च (३.४.१००), एरुः (३.४.८६)
प्रबध्य > सेर्ह्यपिच्च (३.४.८७) तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् (७.१.३५) |
हि/ तात् | मेर्निः (३.४.८९) — लोटः लस्य मेः निः | | |||||||
मिप् | आडुत्तमस्य पिच्च (३.४.९२) > आ + /
> इतश्च (३.४.१००) प्रबाध्य> तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) प्रबाध्य > एरुः (३.४.८६) प्रबाध्य > मेर्निः (३.४.८९) > नि > आडुत्तमस्य पिच्च (३.४.९२) > आ + नि |
आनि | वस् | आडुत्तमस्य पिच्च (३.४.९२) > आ +
/ > न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) प्रबाध्य अपवादेन > नित्यंङितः (३.४.९९) > आ + व |
आव | मस् | आडुत्तमस्य पिच्च (३.४.९२) आ +
/ > न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) प्रबाध्य अपवादेन > नित्यं ङितः (३.४.९९) > आ + म |
आम | आडुत्तमस्य पिच्च (३.४.९२) — लोटः लस्य
उत्तमस्य आट् पित् च | |
तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् (७.१.३५) —
अङ्गस्य तुह्योः तातङ् आशिषि अन्यतरस्याम् | | |||||||||
परस्मैपदि लङ्(इतश्च (३.४.१००) ) | |||||||||