14---samAsaH/03A---tatpuruShasamAsaH---sAmAnyatatpuruSHa-samAsaH/tatpuruSHasamAsa-abhyAsaH: Difference between revisions
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{{DISPLAYTITLE: तत्पुरुषसमासाभ्यासः}} |
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एतेषां समस्तपदानां विग्रहवाक्यं विलिख्य, समासनाम, सूत्रञ्च निर्दिशत – |
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<big>'''<u>एतेषां समस्तपदानां विग्रहवाक्यं विलिख्य, समासनाम, सूत्रञ्च निर्दिशत –</u>'''</big> |
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१) '''मन्दिरगता''' बालिका भोजनम् अकरोत् । |
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<big>१) '''मन्दिरगता''' बालिका भोजनम् अकरोत् |</big> |
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२) '''पुत्रीप्राप्तं''' पारितोषिकं माता च पिता च अभिनन्दतः। |
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<big>२) '''पुत्रीप्राप्तं''' पारितोषिकं माता च पिता च अभिनन्दतः |</big> |
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३) '''पुत्रीसमा''' छात्रा गुरुं नमति। |
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<big>३) '''पुत्रीसमा''' छात्रा गुरुं नमति |</big> |
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४) '''कृष्णश्रितः''' भक्तः सन्तुष्टः जातः। |
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<big>४) '''कृष्णश्रितः''' भक्तः सन्तुष्टः जातः |</big> |
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५) '''मध्याह्ने''' सूर्यस्य आतपः तीक्ष्णः। |
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<big>५) '''मध्याह्ने''' सूर्यस्य आतपः तीक्ष्णः |</big> |
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६) अनुजा '''शालाप्राप्ताभिः''' सखीभिः सह क्रीडति। |
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<big>६) अनुजा '''शालाप्राप्ताभिः''' सखीभिः सह क्रीडति |</big> |
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७) उत्तमा बालिका '''गृहपाठं''' '''पूर्वाह्णे''' एव कृतवान् । |
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<big>७) उत्तमा बालिका '''गृहपाठं''' '''पूर्वाह्णे''' एव कृतवान् |</big> |
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८) चोराः '''मध्यरात्रे''' आगच्छन्ति। |
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<big>८) चोराः '''मध्यरात्रे''' आगच्छन्ति |</big> |
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९) '''कष्टातीतस्य''' जनस्य सुखं मधुरतरं भाति। |
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<big>९) '''कष्टातीतस्य''' जनस्य सुखं मधुरतरं भाति |</big> |
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१०) '''विषादयुक्तः''' अर्जुनः युद्धं कर्तुं नोत्सहते । |
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<big>१०) '''विषादयुक्तः''' अर्जुनः युद्धं कर्तुं नोत्सहते |</big> |
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११) '''नगरप्राप्तः''' ग्रामीणः विस्मयान्वितोऽभवत्। |
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<big>११) '''नगरप्राप्तः''' ग्रामीणः विस्मयान्वितोऽभवत् |</big> |
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१२) '''अपराह्ने''' वयं क्रीडाम। |
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<big>१२) '''अपराह्ने''' वयं क्रीडाम |</big> |
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१३) '''संशयापन्ना''' छात्रा अध्यापकं पृष्टवती। |
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<big>१३) '''संशयापन्ना''' छात्रा अध्यापकं पृष्टवती |</big> |
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१४) '''लक्षमणप्रयुक्तः''' बाणः मेघनादं व्यदारयत्। |
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<big>१४) '''लक्षमणप्रयुक्तः''' बाणः मेघनादं व्यदारयत् |</big> |
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१५) सीता रामस्य '''प्राणसमा''' आसीत्। |
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<big>१५) सीता रामस्य '''प्राणसमा''' आसीत् |</big> |
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१६) '''मध्याह्नस्य''' भोजनं सम्यगासीत्। |
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<big>१६) '''मध्याह्नस्य''' भोजनं सम्यगासीत् |</big> |
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१७) सर्वाः महिलाः '''मातृसदृश्यः''' माननीयाः। |
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<big>१७) सर्वाः महिलाः '''मातृसदृश्यः''' माननीयाः |</big> |
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१८) '''विद्याविहीनः''' पशुः इति सुभाषितं सूचयति। |
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<big>१८) '''विद्याविहीनः''' पशुः इति सुभाषितं सूचयति |</big> |
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१९) '''रज्जुबद्धान्''' काष्ठान् ग्रामम् आनय। |
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<big>१९) '''रज्जुबद्धान्''' काष्ठान् ग्रामम् आनय |</big> |
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२०) '''सीतानुगतः''' रामः वनं प्राविशत्। |
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<big>२०) '''सीतानुगतः''' रामः वनं प्राविशत् |</big> |
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२१) '''लक्ष्मीसहितायाः''' नारायणाय नमः। |
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<big>२१) '''लक्ष्मीसहितायाः''' नारायणाय नमः |</big> |
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२२) अर्जुनः युद्धे '''शिवदत्तस्य''' अस्त्रस्य प्रयोगं कृतवान्। |
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<big>२२) अर्जुनः युद्धे '''शिवदत्तस्य''' अस्त्रस्य प्रयोगं कृतवान् |</big> |
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२३) '''दुःखातीतः''' वृद्धा ततः निर्गता। |
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<big>२३) '''दुःखातीतः''' वृद्धा ततः निर्गता |</big> |
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२४) '''विष्णुप्रयुक्तं''' चक्रं राक्षसं समहरत् । |
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<big>२४) '''विष्णुप्रयुक्तं''' चक्रं राक्षसं समहरत् |</big> |
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२५) '''दण्डताडितः''' सर्पः निर्गच्छति। |
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<big>२५) '''दण्डताडितः''' सर्पः निर्गच्छति |</big> |
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२६) पुरुषोत्तमः रामः अयोध्यायाः राज्यम् अपालयत् । |
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<big>२६) '''पुरुषोत्तमः''' रामः अयोध्यायाः राज्यम् अपालयत् |</big> |
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२७) '''पुस्तकपठनादौ''' अनुच्चरितमपि तत् ज्ञातं सत् बोधयति इति अनुभवः। |
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<big>२७) '''पुस्तकपठनादौ''' अनुच्चरितमपि तत् ज्ञातं सत् बोधयति इति अनुभवः |</big> |
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२८) '''मातृसदृशी''' शिक्षिका छात्रान् पाठयति। |
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<big>२८) '''मातृसदृशी''' शिक्षिका छात्रान् पाठयति |</big> |
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२९) दुर्योधनः अहं '''युधिष्ठिरम्''' '''अर्धराज्यं''' न दास्यामि इति उक्तवान्। |
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<big>२९) दुर्योधनः अहं '''युधिष्ठिरम्''' '''अर्धराज्यं/ राज्यार्धं''' न दास्यामि इति उक्तवान् |</big> |
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३०) '''हरित्रातः''' भक्तः नमस्कृतवान्। |
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<big>३०) '''हरित्रातः''' भक्तः नमस्कृतवान् |</big> |
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३१) '''रोगतप्तः''' औषधं स्वीकरोति। |
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<big>३१) '''रोगतप्तः''' औषधं स्वीकरोति |</big> |
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३२) तस्य '''अर्धकायस्य''' स्रसाः बृहत्यः सन्ति। |
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<big>३२) तस्य '''अर्धकायस्य''' स्रसाः बृहत्यः सन्ति |</big> |
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३३) '''गर्तपतिता''' बालिका उच्चैः नर्दति। |
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<big>३३) '''गर्तपतिता''' बालिका उच्चैः नर्दति |</big> |
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३४) '''कार्यालप्राप्तः''' कर्मकरः कार्यम् अकरोत् । |
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<big>३४) '''कार्यालप्राप्तः''' कर्मकरः कार्यम् अकरोत् |</big> |
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३५) '''कालिदासविरचितानि''' काव्यानि सर्वे पठेयुः। |
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<big>३५) '''कालिदासविरचितानि''' काव्यानि सर्वे पठेयुः |</big> |
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३६) छात्राः '''व्यासरचितं''' महाभारतं पठान्ति। |
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<big>३६) छात्राः '''व्यासरचितं''' महाभारतं पठान्ति |</big> |
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३७) '''गुरुदेवाय''' नमः। |
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<big>३७) '''गुरुदेवाय''' नमः |</big> |
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३८) न '''सुखप्रति''' संसारे । |
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<big>३८) न '''सुखप्रति''' संसारे |</big> |
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३९) तारकः '''ब्रह्मदत्तेन''' '''वरेण''' देवान् पराजितवान्। |
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<big>३९) तारकः '''ब्रह्मदत्तेन''' '''वरेण''' देवान् पराजितवान् |</big> |
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४०) शबरी '''दशरथपुत्रस्य''' रामस्य भक्ता आसीत् । |
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<big>४०) शबरी '''दशरथपुत्रस्य''' रामस्य भक्ता आसीत् |</big> |
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४१) '''प्रेमपूर्णे''' परिसरे संभाषणस्य अभ्यासं करवाम। |
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<big>४१) '''प्रेमपूर्णे''' परिसरे संभाषणस्य अभ्यासं करवाम |</big> |
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४२) '''गुडमिश्रितं''' भोजनं सम्यग्भवति। |
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<big>४२) '''गुडमिश्रितं''' भोजनं सम्यग्भवति |</big> |
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४३) '''अश्वपतितः''' सैनिकः व्रणयुक्तः अभवत्। |
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<big>४३) '''अश्वपतितः''' सैनिकः व्रणयुक्तः अभवत् |</big> |
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४४) '''भगवदधीनं''' जगत् वर्तते । |
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<big>४४) '''भगवदधीनं''' जगत् वर्तते |</big> |
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<big>४५) यत् '''प्रमाणसिद्धं''' वर्तते तत्र इदम् इति वदामः |</big> |
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४६) '''शरणम् आगतः''' तु सदैव रक्षणीयः। |
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<big>४६) '''शरणम् आगतः''' तु सदैव रक्षणीयः |</big> |
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४७) '''ग्रामं गमी''' बालकः शालां प्रविशति। |
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<big>४७) '''ग्रामं गमी''' बालकः शालां प्रविशति |</big> |
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४८) '''तस्मै इदं''' पुस्तकं दातव्यम् । |
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<big>४८) '''तस्मै इदं''' पुस्तकं दातव्यम् |</big> |
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४९) '''धनाशा''' त्यक्ता चेत् पुरुषः वैराग्यं प्राप्नोति। |
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<big>४९) '''धनाशा''' त्यक्ता चेत् पुरुषः वैराग्यं प्राप्नोति |</big> |
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५०) '''विद्यया हीनः''' छात्रः न शोभते। |
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<big>५०) '''विद्यया हीनः''' छात्रः न शोभते |</big> |
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५१) न '''दोषप्रति''' वेदान्तदर्शने । |
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<big>५१) न '''दोषप्रति''' वेदान्तदर्शने |</big> |
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५२) भवतः कार्यं '''निर्विघ्नं''' समापयेत् । |
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<big>५२) भवतः कार्यं '''निर्विघ्नं''' समापयेत् |</big> |
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५३) '''शरविद्धः''' हंसः भूमौ पतितः। |
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<big>५३) '''शरविद्धः''' हंसः भूमौ पतितः |</big> |
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५४) '''गङ्गाजलं''' सर्वपापं हरति। |
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<big>५४) '''गङ्गाजलं''' सर्वपापं हरति |</big> |
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५५) '''सिंहात् भीतः''' व्याधः अरण्यात् पलायते । |
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<big>५५) '''सिंहात् भीतः''' व्याधः अरण्यात् पलायते |</big> |
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५६) '''सभायां पण्डितः''' कार्यक्रमे सम्भाषाणं करोति । |
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<big>५६) '''सभायां पण्डितः''' कार्यक्रमे सम्भाषाणं करोति |</big> |
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५७) शङ्कराचार्यः बाल्यकाले एव '''शास्त्रेषु प्रवीणः''' आसीत् । |
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<big>५७) शङ्कराचार्यः बाल्यकाले एव '''शास्त्रेषु प्रवीणः''' आसीत् |</big> |
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५८) माता मन्दिरं गतवती '''पूजार्थम्''' । |
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<big>५८) माता मन्दिरं गतवती '''पूजार्थम्''' |</big> |
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५९) '''धनहीनाः''' जनाः बहुदुखम् अनुभवन्ति अस्मिन् लोके। |
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<big>५९) '''धनहीनाः''' जनाः बहुदुखम् अनुभवन्ति अस्मिन् लोके |</big> |
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६०) शिवेन मन्मतः '''अग्निना दग्धः'''। |
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<big>६०) शिवेन मन्मतः '''अग्निना दग्धः'''|</big> |
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६१) माया '''ईश्वराधीना''' वर्तते इति अद्वैतिनः मतम् । |
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<big>६१) माया '''ईश्वराधीना''' वर्तते इति अद्वैतिनः मतम् |</big> |
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६२) दानाय पात्रम् |
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<big>६२) '''अध्यापकाधीनाः''' छात्राः वर्तन्ते |</big> |
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६३) '''स्नानाय इदं''' चूर्णम् अस्ति। |
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<big>६३) '''स्नानाय इदं''' चूर्णम् अस्ति |</big> |
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६४) '''सर्पेणः दृष्टः''' मूषकः। |
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<big>६४) '''सर्पदृष्टः''' मूषकः |</big> |
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६५) '''ज्ञानव्यवधाने''' ज्ञानं न जायते । |
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<big>६५) '''ज्ञानव्यवधाने''' ज्ञानं न जायते |</big> |
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६६) दशरथः '''युद्धे निपुणः''' आसीत्। |
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<big>६६) दशरथः '''युद्धे निपुणः''' आसीत् |</big> |
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६७) आकाङ्क्षा तु '''पदधर्मः''' ज्ञातव्यः भवति। |
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<big>६७) आकाङ्क्षा तु '''पदधर्मः''' ज्ञातव्यः भवति |</big> |
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६८) महाभारते युद्धे अन्ते दुर्योधनः '''जले मग्नः''' आसीत् । |
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<big>६८) महाभारते युद्धे अन्ते दुर्योधनः '''जले मग्नः''' आसीत् |</big> |
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६९) '''रोगान्मुक्तः''' वृद्धः अत्यन्तं सन्तुष्टः आसीत्। |
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<big>६९) '''रोगान्मुक्तः''' वृद्धः अत्यन्तं सन्तुष्टः आसीत् | </big> |
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७०) '''सुखप्राप्ताः''' जनाः मन्दिरात् गच्छन्ति। |
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<big>७०) '''सुखप्राप्ताः''' जनाः मन्दिरात् गच्छन्ति |</big> |
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७१) हरिः लतयाः '''वर्षेण पूर्वः'''। |
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<big>७१) हरिः लतयाः '''वर्षेण पूर्वः''' |</big> |
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७२) '''भूतेभ्यः बलिः''' सर्वैः दातव्यः। |
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<big>७२) '''भूतेभ्यः बलिः''' सर्वैः दातव्यः |</big> |
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<big>७३) '''गुडेन सम्मिश्रिताः''' धानाः सर्वैः इच्छन्ति |</big> |
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७४) '''गुर्वाधीनः''' छात्रः गुरुकुले पठति स्म। |
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<big>७४) '''गुर्वाधीनः''' छात्रः गुरुकुले पठति स्म |</big> |
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७५) '''भूतपूर्वः''' प्रधानमन्त्री विदेशं गतवान् । |
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<big>७५) '''भूतपूर्वः''' प्रधानमन्त्री विदेशं गतवान् |</big> |
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७६) '''सामिकृतात्''' अध्ययनात् न कोपि फलं भवति । |
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<big>७६) '''सामिकृतात्''' अध्ययनात् न कोपि फलं भवति |</big> |
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७७) सर्वैः '''प्रजाहितं''' करणीयम् । |
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<big>७७) सर्वैः '''प्रजाहितं''' करणीयम् |</big> |
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७८) छात्राः '''परीक्षाभयं''' प्राप्नुवन्ति। |
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<big>७८) छात्राः '''परीक्षाभयं''' प्राप्नुवन्ति |</big> |
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७९) '''मध्याह्ने''' सूर्यस्य तापः अधिकः भवति। |
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<big>७९) '''मध्याह्ने''' सूर्यस्य तापः अधिकः भवति |</big> |
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८०) '''भवदर्था''' समासकक्षा प्रवर्तमाना अस्ति। |
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<big>८०) '''भवदर्था''' समासकक्षा प्रवर्तमाना अस्ति |</big> |
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८१) '''स्थालीपक्वेभ्यः''' फलेभ्यः रसं अनुभूतवान् बालकः। |
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<big>८१) '''स्थालीपक्वेभ्यः''' फलेभ्यः रसं अनुभूतवान् बालकः |</big> |
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८२) '''अधरहिमालये''' बहवः योगिनः वसन्ति। |
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<big>८२) '''अधरहिमालये''' बहवः योगिनः वसन्ति |</big> |
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८३) दुष्टजनानां '''कुकर्मभ्यः''' भीतिः नास्ति कलियुगे । |
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<big>८३) दुष्टजनानां '''कुकर्मभ्यः''' भीतिः नास्ति कलियुगे |</big> |
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८४) '''गुरुसुश्रुषाम्''' अकृत्वा एव विद्यानदीं पारयितुं न शक्यते । |
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<big>८४) '''गुरुसुश्रुषाम्''' अकृत्वा एव विद्यानदीं पारयितुं न शक्यते |</big> |
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८५) मन्दिरे '''देवार्थं''' नैवेद्यम् अस्ति । |
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<big>८५) मन्दिरे '''देवार्थं''' नैवेद्यम् अस्ति |</big> |
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८६) '''अन्तिकात् आगता''' राजकुमारी सभायाम् उपविष्टान् सर्वान् अपश्यत्। |
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<big>८६) '''अन्तिकात् आगता''' राजकुमारी सभायाम् उपविष्टान् सर्वान् अपश्यत् |</big> |
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८७) गोविन्दात् रामः '''मासावरः''' । |
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<big>८७) गोविन्दात् रामः '''मासावरः''' |</big> |
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८८) '''वातेन छेद्यं''' तृणं गृहीत्वा ऋषिः गच्छति यागार्थम् ।स |
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<big>८८) '''वातेन छेद्यं''' तृणं गृहीत्वा ऋषिः गच्छति यागार्थम् |</big> |
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८९) '''हरित्रातः''' भक्तः संसारसागरं पारयति। |
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<big>८९) '''हरित्रातः''' भक्तः संसारसागरं पारयति |</big> |
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९०) तिरुपत्यां '''देवालये दध्योदनं''' प्रसादरूपेण दीयते । |
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<big>९०) तिरुपत्यां '''देवालये दध्योदनं''' प्रसादरूपेण दीयते |</big> |
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९१) '''गङ्गात्यस्ताः''' सीतारामलक्ष्मणाः भरद्वाजाश्रमं प्राप्तवन्तः। |
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<big>९१) '''गङ्गात्यस्ताः''' सीतारामलक्ष्मणाः भरद्वाजाश्रमं प्राप्तवन्तः |</big> |
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९२) '''राजधानीप्राप्तः''' मन्त्रिगणः प्रधानमन्त्रिणा अमिलत्। |
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<big>९२) '''राजधानीप्राप्तः''' मन्त्रिगणः प्रधानमन्त्रिणा अमिलत् |</big> |
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९३) '''अधरहिमालये''' कस्मिंश्चित् आश्रमे अयं योगी वसति। |
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<big>९३) '''अधरहिमालये''' कस्मिंश्चित् आश्रमे अयं योगी वसति |</big> |
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९४) '''प्रीतिबन्धः''' ईश्वरः भक्तानां साहाय्यं करोति । |
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<big>९४) '''प्रीतिबन्धः''' ईश्वरः भक्तानां साहाय्यं करोति |</big> |
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९५) '''दूरादागतः''' योगी ग्रामम् अप्रविशत् । |
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<big>९५) '''दूरादागतः''' योगी ग्रामम् अप्रविशत् |</big> |
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९६) '''पुरुषाधीना''' प्रकृतिः जगत्कारणं नास्ति इति वेदान्तिनां मतम् । |
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<big>९६) '''पुरुषाधीना''' प्रकृतिः जगत्कारणं नास्ति इति वेदान्तिनां मतम् |</big> |
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९७) जन्ममरणचक्रात् '''बहिर्गमनं''' मोक्षः । |
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<big>९७) जन्ममरणचक्रात् '''बहिर्गमनं''' मोक्षः |</big> |
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९८) एकः छात्रः '''तीर्थे वायसः इव''' गच्छन् आसीत्। |
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<big>९८) एकः छात्रः '''तीर्थे वायसः इव''' गच्छन् आसीत् |</big> |
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९९) रमेशः सुरेशात् '''मासपूर्वः'''। |
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<big>९९) रमेशः सुरेशात् '''मासपूर्वः'''|</big> |
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१००) '''उत्तरभारते''' बहूनि सुन्दराणि मन्दिराणि सन्ति। |
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<big>१००) '''उत्तरभारते''' बहूनि सुन्दराणि मन्दिराणि सन्ति |</big> |
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१०१) तेन यत् न साधितं, तत् अस्माभिः '''अर्धवर्षेण''' साधितम् । |
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<big>१०१) तेन यत् न साधितं, तत् अस्माभिः '''अर्धवर्षेण''' साधितम् |</big> |
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१०२) कालः सर्वोपि '''सूर्याधीनः''' एव इति भाति । |
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<big>१०२) कालः सर्वोपि '''सूर्याधीनः''' एव इति भाति |</big> |
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१०३) '''अस्मद्पिता''' अस्य नगरस्य अधिकारी इति उक्तं कैश्चित् बालकैः। |
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<big>१०३) '''अस्मद्पिता''' अस्य नगरस्य अधिकारी इति उक्तं कैश्चित् बालकैः|</big> |
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१०४) '''गोहितार्थं''' यजमानः नितरां कार्यं करोति । |
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<big>१०४) '''गोहितार्थं''' यजमानः नितरां कार्यं करोति |</big> |
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१०५) बालकेन '''स्वयंकृतं''' कार्यं दृष्ट्वा माता सुन्तुष्टा जाता । |
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<big>१०५) बालकेन '''स्वयंकृतं''' कार्यं दृष्ट्वा माता सुन्तुष्टा जाता |</big> |
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१०६) '''अक्षक्षौण्डः''' शकुनिः पाण्डवान् धूर्तेन पराजितवान् । |
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<big>१०६) '''अक्षक्षौण्डः''' शकुनिः पाण्डवान् धूर्तेन पराजितवान् |</big> |
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१०७) '''बालकार्थं''' माता अन्नं परिवेषितवती । |
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<big>१०७) '''बालकार्थं''' माता अन्नं परिवेषितवती |</big> |
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१०८) '''स्वर्गपतितः''' त्रिशङ्कुः भूमौ अपि स्थातुम् अशक्तः आसीत् । |
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<big>१०८) '''स्वर्गपतितः''' त्रिशङ्कुः भूमौ अपि स्थातुम् अशक्तः आसीत् |</big> |
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१०९) '''मूर्खशतम्''' जनाः तस्यां सम्भायाम् आसन् । |
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<big>१०९) '''मूर्खशतम्''' जनाः तस्यां सम्भायाम् आसन् |</big> |
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११०) '''युधिष्ठिरः''' पाण्डवेषु ज्येष्ठः आसीत् । |
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<big>११०) '''युधिष्ठिरः''' पाण्डवेषु ज्येष्ठः आसीत् |</big> |
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१११) '''दासीपुत्रः''' विदुरः '''नीतिनिपुणः''' आसीत्। |
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<big>१११) '''दासीपुत्रः''' विदुरः '''नीतिनिपुणः''' आसीत् |</big> |
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११२) '''दूरादागतः''' यात्रिकः '''रमेशगृहं''' प्रविष्टवान् । |
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<big>११२) '''दूरादागतः''' यात्रिकः '''रमेशगृहं''' प्रविष्टवान् |</big> |
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११३) '''देवालये''' मन्त्राः हृदि स्पृशन्ति। |
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<big>११३) '''देवालये''' मन्त्राः हृदि स्पृशन्ति |</big> |
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११४) '''अभिवृक्षं''' ( वृक्षम् अभि) गच्छति। |
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<big>११४) '''अभिवृक्षं''' ( वृक्षम् अभि) गच्छति |</big> |
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११५) '''पूर्वाह्णे''' आरब्धं कार्यं दिनस्य अन्ते अपि न समापितम् । |
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<big>११५) '''पूर्वाह्णे''' आरब्धं कार्यं दिनस्य अन्ते अपि न समापितम् |</big> |
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११६) केचन पूर्वसंस्कारात् '''स्तोकात् मुक्ताः''' भवन्ति। |
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<big>११६) केचन पूर्वसंस्कारात् '''स्तोकात् मुक्ताः''' भवन्ति |</big> |
|||
११७) '''अनुज्येष्ठं''' प्रविशन्तु भवन्तः। |
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<big>११७) '''अनुज्येष्ठं''' प्रविशन्तु भवन्तः |</big> |
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११८) '''आतपे शुष्कानि''' वस्त्राणि ग्रहीत्वा माता गृहे गतवती । |
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<big>११८) '''आतपे शुष्कानि''' वस्त्राणि ग्रहीत्वा माता गृहे गतवती |</big> |
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११९) '''काराबन्धः''' पुरुषः दुःखेन जीवनं अयापयत् । |
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<big>११९) '''काराबन्धः''' पुरुषः दुःखेन जीवनं अयापयत् |</big> |
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१२०) तस्मात्ते वितराम्यद्य '''पुत्रमात्मसमं''' गुणैः। |
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<big>१२०) तस्मात्ते वितराम्यद्य '''पुत्रमात्मसमं''' गुणैः |</big> |
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१२१) तत्र लङ्कां समासाद्य पुरीं '''रावणपालिताम्''' । |
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<big>१२१) तत्र लङ्कां समासाद्य पुरीं '''रावणपालिताम्''' |</big> |
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१२२) श्रुत्वा तु तं वानरसैन्यशब्दं '''लङ्कागता''' राक्षसराजभृत्याः। |
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<big>१२२) श्रुत्वा तु तं वानरसैन्यशब्दं '''लङ्कागता''' राक्षसराजभृत्याः |</big> |
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१२३) '''क्षीरौदनेन''' साज्येन सम्पूज्य च भवं प्रभुम्। |
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<big>१२३) '''क्षीरौदनेन''' साज्येन सम्पूज्य च भवं प्रभुम् |</big> |
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१२४) पश्चार्धेन प्रविष्टः शरपतनभयाद्भूयसा '''पूर्वकायम्''' । |
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<big>१२४) पश्चार्धेन प्रविष्टः शरपतनभयाद्भूयसा '''पूर्वकायम्''' |</big> |
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१२५) ज्येष्ठो भ्राता '''पितृतुल्यो''' मृते पितरि शौनकः। |
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<big>१२५) ज्येष्ठो भ्राता '''पितृतुल्यो''' मृते पितरि शौनकः |</big> |
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१२६) ईश्वरः '''कालातीतः''' अस्ति। |
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<big>१२६) ईश्वरः '''कालातीतः''' अस्ति |</big> |
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१२७) अपूर्वः कोऽपि '''कामान्धः''' दिवा नक्तं न पश्यति। |
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<big>१२७) अपूर्वः कोऽपि '''कामान्धः''' दिवा नक्तं न पश्यति |</big> |
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१२८) '''रामबाणहतो''' वीरश्चचाल च मुमोह च । |
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<big>१२८) '''रामबाणहतो''' वीरश्चचाल च मुमोह च |</big> |
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१२९) '''लोकहितं''' मम करणीयम्। |
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<big>१२९) '''लोकहितं''' मम करणीयम् |</big> |
|||
१३०) प्रजानामेव '''भूत्यर्थं''' स ताभ्यो बलिमग्रहीत्। |
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<big>१३०) प्रजानामेव '''भूत्यर्थं''' स ताभ्यो बलिमग्रहीत् |</big> |
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१३१) न '''दोषप्रति''' बौद्धदर्शने। |
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<big>१३१) न '''दोषप्रति''' बौद्धदर्शने |</big> |
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१३२) '''ब्रह्मविद्या''' '''किमर्थेयं''' नान्यन्मुक्ते फलं ततः। |
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<big>१३२) '''ब्रह्मविद्या''' '''किमर्थेयं''' नान्यन्मुक्ते फलं ततः |</big> |
|||
१३३) रक्षिता '''भवभीतानां''' भवः परमपावनः। |
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<big>१३३) रक्षिता '''भवभीतानां''' भवः परमपावनः |</big> |
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१३४) '''दुष्टभीति-महाभीति''' भञ्जनायै नमो नमः। |
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<big>१३४) '''दुष्टभीति-महाभीति''' भञ्जनायै नमो नमः |</big> |
|||
१३५) '''नृपहतपुत्रं''' पश्यति क्रुद्धब्राह्मणः। |
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<big>१३५) '''नृपहतपुत्रं''' पश्यति क्रुद्धब्राह्मणः |</big> |
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१३६) '''शिष्यपठितपुस्तकानि''' न कदापि पठ्यन्ते अन्यैः जनैः। |
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<big>१३६) '''शिष्यपठितपुस्तकानि''' न कदापि पठ्यन्ते अन्यैः जनैः |</big> |
|||
१३७) अद्यत्वे बहवः युवकाः '''आत्महत्यां''' कुर्वन्ति । |
|||
<big>१३७) अद्यत्वे बहवः युवकाः '''आत्महत्यां''' कुर्वन्ति |</big> |
|||
१३८) '''मूर्खराजा''' एकदा राज्यं अपालयत् । |
|||
<big>१३८) '''मूर्खराजा''' एकदा राज्यं अपालयत् |</big> |
|||
१३९) '''उपजरसं''' भवन्ति रोगाः। |
|||
<big>१३९) '''उपजरसं''' भवन्ति रोगाः|</big> |
|||
१४०) '''अध्युपानहं''' ( inside the shoe) सूक्ष्मः कण्टकः तुदति पादम् । A little thorn inside the shoe pricks the foot. |
|||
<big>१४०) '''अध्युपानहं''' ( inside the shoe) सूक्ष्मः कण्टकः तुदति पादम् | A little thorn inside the shoe pricks the foot.</big> |
|||
१४१) ब्रह्मवित् '''गुणातीतः''' भवति। |
|||
<big>१४१) ब्रह्मवित् '''गुणातीतः''' भवति |</big> |
|||
१४२) '''मध्येगङ्गात्''' आनय। '''गङ्गामध्यात्''' आनय। |
|||
<big>१४२) '''मध्येगङ्गात्''' आनय| '''गङ्गामध्यात्''' आनय|</big> |
|||
१४३) वाक्यं '''वक्त्राधीनम्''' एव । |
|||
<big>१४३) वाक्यं '''वक्त्राधीनम्''' एव |</big> |
|||
१४४) '''आमूला'''च्छ्रोतुमिच्छामि । |
|||
<big>१४४) '''आमूला'''च्छ्रोतुमिच्छामि |</big> |
|||
१४५) '''मौल्ययुक्ता''' माला ग्रीवायाः अपगच्छति । |
|||
<big>१४५) '''मौल्ययुक्ता''' माला ग्रीवायाः अपगच्छति |</big> |
|||
१४६) '''चुल्लीपक्वं''' वृन्ताकं पश्य। |
|||
<big>१४६) '''चुल्लीपक्वं''' वृन्ताकं पश्य |</big> |
|||
१४७) '''तत्त्वम्''' अंशः असि। |
|||
<big>१४७) '''तत्त्वम्''' अंशः असि |</big> |
|||
१४८) '''त्वदधीना''' हि सिद्धयः। |
|||
<big>१४८) '''त्वदधीना''' हि सिद्धयः |</big> |
|||
१४९) देवदत्तः विष्णुमित्रात् '''मासावरः'''। |
|||
<big>१४९) देवदत्तः विष्णुमित्रात् '''मासावरः''' |</big> |
|||
१५०) '''जीवन्मुक्तः''' यः सः '''बन्धमुक्तः''' भवति । |
|||
<big>१५०) '''जीवन्मुक्तः''' यः सः '''बन्धमुक्तः''' भवति |</big> |
|||
१५१) न '''सुखप्रति''' संसारे । |
|||
<big>१५१) न '''सुखप्रति''' संसारे |</big> |
|||
१५२) विकारहेतौ सति ये '''बहिर्विकारं''' समासते ते यमिनः। Those who remain unruffled even in the presence of temptations are the self restrained. |
|||
<big>१५२) विकारहेतौ सति ये '''बहिर्विकारं''' समासते ते यमिनः | Those who remain unruffled even in the presence of temptations are the self restrained.</big> |
|||
१५३) दुहितरः '''मातृसदृश्यो''' जायन्ते, पुत्राश्च '''पितृसदृशा''' इति प्रायिकम् । |
|||
<big>१५३) दुहितरः '''मातृसदृश्यो''' जायन्ते, पुत्राश्च '''पितृसदृशा''' इति प्रायिकम् |</big> |
|||
१५४) वणिजां प्रायेण '''वाक्कलहाः''' भवन्ति । |
|||
<big>१५४) वणिजां प्रायेण '''वाक्कलहाः''' भवन्ति |</big> |
|||
१५५) '''अपराह्णकृतं''' कार्यं दृष्ट्वा अधिकारी सन्तुष्टः। |
|||
<big>१५५) '''अपराह्णकृतं''' कार्यं दृष्ट्वा अधिकारी सन्तुष्टः |</big> |
|||
१५६) '''तिलमिश्रिताः''' तण्डुलाः श्राद्धे प्रयुज्यन्ते। |
|||
<big>१५६) '''तिलमिश्रिताः''' तण्डुलाः श्राद्धे प्रयुज्यन्ते |</big> |
|||
१५७) '''आचारणश्लक्ष्णान्''' सर्वे इच्छन्ति। |
|||
<big>१५७) '''आचारणश्लक्ष्णान्''' सर्वे इच्छन्ति |</big> |
|||
१५८) '''समुद्रमात्रं''' न सरो अस्ति किञ्चन । |
|||
<big>१५८) '''समुद्रमात्रं''' न सरो अस्ति किञ्चन |</big> |
|||
१५९) '''विश्वनाथः''' सर्वान् रक्षति । विश्वेषां नाथः |
|||
<big>१५९) '''विश्वनाथः''' सर्वान् रक्षति | </big> |
|||
१६०) घटेन वयं '''जलाहरणं''' कुर्मः। |
|||
<big>१६०) घटेन वयं '''जलाहरणं''' कुर्मः |</big> |
|||
१६१) देवदत्तः '''रामान्मासपूर्वः''', विष्णुमित्रात्। |
|||
<big>१६१) देवदत्तः '''रामान्मासपूर्वः''', विष्णुमित्रात् |</big> |
|||
१६२) वणीजां प्रायेण '''वाक्कलहा''' भवन्ति नासिकलहाः। |
|||
<big>१६२) वणीजां प्रायेण '''वाक्कलहा''' भवन्ति नासिकलहाः |</big> |
|||
समस्तपदं विलिख्य समासनाम, सूत्रञ्च निर्दिशत - |
|||
<big>१६३) '''रावणनीतायाः''' सीतायाः अन्वेषणं हनूमान् कृतवान् |</big> |
|||
१) भवते इयम् = |
|||
<big>१६४) '''प्रतिप्रश्नस्योत्त'''रे द्वे संभवतः पक्षविपक्षसमाश्रयेण |</big> |
|||
२) बलिभिः पुष्टः = |
|||
<big>१६५) प्रेम्णा '''शरीरार्धहरां''' हरस्य |</big> |
|||
३) निसर्गेण निपुणः = |
|||
<big><br /> |
|||
४) वेदे पण्डितः = |
|||
'''<u>समस्तपदं विलिख्य समासनाम, सूत्रञ्च निर्दिशत -</u>'''</big> |
|||
<big>१) भवते इयम् =</big> |
|||
<big>२) बलिभिः पुष्टः =</big> |
|||
६) गुरुणा ईक्षिता = |
|||
<big>३) निसर्गेण निपुणः =</big> |
|||
<big>४) वेदे पण्डितः =</big> |
|||
८) राज्यात् भ्रष्टः = |
|||
<big>५) अहिना हतः =</big> |
|||
<big>६) गुरुणा ईक्षिता =</big> |
|||
१०) पराभवात् भीतिः = |
|||
<big>७) अन्यैः पुष्टाः =</big> |
|||
११) गिरेः नदी = |
|||
<big>८) राज्यात् भ्रष्टः =</big> |
|||
१२) नित्यं प्रहसितः = |
|||
<big>९) कार्ये रतः =</big> |
|||
१३) आत्मनः संयमः = |
|||
<big>१०) पराभवात् भीतिः =</big> |
|||
१४) गोभ्यः बलिः = |
|||
<big>११) गिरेः नदी =</big> |
|||
१५) रणे संवितः = |
|||
<big>१२) नित्यं प्रहसितः =</big> |
|||
१६) सूर्येण ऊढः = |
|||
<big>१३) आत्मनः संयमः =</big> |
|||
१७) देवेन खातः = |
|||
<big>१४) गोभ्यः बलिः =</big> |
|||
१८) मम पुस्तकम् = |
|||
<big>१५) रणे संवितः =</big> |
|||
१९) गुहं निर्गतः = |
|||
<big>१६) सूर्येण ऊढः =</big> |
|||
२०) सर्वेभ्यः इयम् = |
|||
<big>१७) देवेन खातः =</big> |
|||
२१) खट्वाम् आरूढः = |
|||
<big>१८) मम पुस्तकम् =</big> |
|||
२२) त्वां श्रितः = |
|||
<big>१९) गुहं निर्गतः =</big> |
|||
२३) चौरैः हृतः = |
|||
<big>२०) सर्वेभ्यः इयम् =</big> |
|||
२४) संस्कृतस्य अध्यापकः = |
|||
<big>२१) खट्वाम् आरूढः =</big> |
|||
२५) तव अपेक्षा = |
|||
<big>२२) त्वां श्रितः =</big> |
|||
२६) भवता श्रुतम् = |
|||
<big>२३) चौरैः हृतः =</big> |
|||
२७) धर्मस्य क्षेत्रम् = |
|||
<big>२४) संस्कृतस्य अध्यापकः =</big> |
|||
२८) दन्तानां राजा = |
|||
<big>२५) तव अपेक्षा =</big> |
|||
२९) कस्मै इदम् = |
|||
<big>२६) भवता श्रुतम् =</big> |
|||
३०) मम पुत्रः |
|||
<big>२७) धर्मस्य क्षेत्रम् =</big> |
|||
३१) रोगात् मुक्तः = |
|||
<big>२८) दन्तानां राजा =</big> |
|||
३२) देवेन खातः = |
|||
<big>२९) कस्मै इदम् =</big> |
|||
३३) पाण्डवानाम् अनीकम् = |
|||
<big>३०) मम पुत्रः</big> |
|||
३४) तव दासः = |
|||
<big>३१) रोगात् मुक्तः =</big> |
|||
३५) ब्राह्मणानां याजकः = |
|||
<big>३२) देवेन खातः =</big> |
|||
३६) देवानां पूजकः = |
|||
<big>३३) पाण्डवानाम् अनीकम् =</big> |
|||
३७) कूपं पतितः = |
|||
<big>३४) तव दासः =</big> |
|||
<big>३५) ब्राह्मणानां याजकः =</big> |
|||
३९) वृकात् भयम् = |
|||
<big>३६) देवानां पूजकः =</big> |
|||
४०) दाने शौण्डः = |
|||
<big>३७) कूपं पतितः =</big> |
|||
४१) सुहृद्भ्यः अयम् = |
|||
<big>३८) स्वस्य जनाः =</big> |
|||
४२) गवे हितम् = |
|||
<big>३९) वृकात् भयम् =</big> |
|||
४३) कुलस्य क्षयः = |
|||
<big>४०) दाने शौण्डः =</big> |
|||
४४) व्यवहारे पटुः = |
|||
<big>४१) सुहृद्भ्यः अयम् =</big> |
|||
४५) वनेऽन्तर् = |
|||
<big>४२) गवे हितम् =</big> |
|||
४६) द्विजाय अयम् = |
|||
<big>४३) कुलस्य क्षयः =</big> |
|||
४७) वृकात् त्रासः = |
|||
<big>४४) व्यवहारे पटुः =</big> |
|||
४८) सर्वश्वेतः = |
|||
<big>४५) वनेऽन्तर् =</big> |
|||
४९) सर्वमहान् = |
|||
<big>४६) द्विजाय अयम् =</big> |
|||
५०) सुखात् आपेतः = |
|||
<big>४७) वृकात् त्रासः =</big> |
|||
५१) अक्षेषु कितवः |
|||
<big>४८) सर्वश्वेतः =</big> |
|||
५२) पित्रे सुखम् = |
|||
<big>४९) सर्वमहान् =</big> |
|||
५३) प्रसादात् पतितः = |
|||
<big>५०) सुखात् आपेतः =</big> |
|||
५४) पूर्वः कायस्य = |
|||
<big>५१) अक्षेषु कितवः</big> |
|||
५५) खट्वाम् आरूढः = |
|||
<big>५२) पित्रे सुखम् =</big> |
|||
<big>५३) प्रसादात् पतितः =</big> |
|||
५७) वाचि पटुः= |
|||
<big>५४) पूर्वः कायस्य =</big> |
|||
५८) गवां कृष्णा सम्पन्नक्षीरतमा = |
|||
<big>५५) खट्वाम् आरूढः =</big> |
|||
५९) भगवता गीता = |
|||
<big>५६) मूहूर्तं सुखम् =</big> |
|||
६०) शास्त्रे निपुणः = |
|||
<big>५७) वाचि पटुः=</big> |
|||
६१) अस्मभ्यं भीतः = |
|||
<big>५८) गवां कृष्णा सम्पन्नक्षीरतमा =</big> |
|||
६२) युष्माकम् अपेक्षा = |
|||
<big>५९) भगवता गीता =</big> |
|||
६३) युष्माभिः भुक्तम् = |
|||
<big>६०) शास्त्रे निपुणः =</big> |
|||
६४) वाक्निपुणः = |
|||
<big>६१) अस्मभ्यं भीतः =</big> |
|||
६५) योगे रतः = |
|||
<big>६२) युष्माकम् अपेक्षा =</big> |
|||
६६) मम निवासः = |
|||
<big>६३) युष्माभिः भुक्तम् =</big> |
|||
६७) काव्ये कुशलः = |
|||
<big>६४) वाक्निपुणः =</big> |
|||
६८) अक्षेषु शौण्डः = |
|||
<big>६५) योगे रतः =</big> |
|||
६९) धर्मे प्रवीणः = |
|||
<big>६६) मम निवासः =</big> |
|||
७०) धर्मात् च्युतः = |
|||
<big>६७) काव्ये कुशलः =</big> |
|||
<big>६८) अक्षेषु शौण्डः =</big> |
|||
७२) परशुना छिन्नवान् = |
|||
<big>६९) धर्मे प्रवीणः =</big> |
|||
७३) अस्माकं कर्तव्यम् = |
|||
<big>७०) धर्मात् च्युतः =</big> |
|||
७४) मम कर्तव्यम् = |
|||
<big>७१) कार्ये कुशलः =</big> |
|||
७५) मनुष्याणां क्षत्रियः शूरतमः = |
|||
<big>७२) परशुना छिन्नवान् =</big> |
|||
७६) द्यूते कितवः = |
|||
<big>७३) अस्माकं कर्तव्यम् =</big> |
|||
७७) आवयोः मैत्री = |
|||
<big>७४) मम कर्तव्यम् =</big> |
|||
७८) वृक्षात् पतितः = |
|||
<big>७५) मनुष्याणां क्षत्रियः शूरतमः =</big> |
|||
७९) शास्त्रे धूर्तः = |
|||
<big>७६) द्यूते कितवः =</big> |
|||
८०) योगे सिद्धः = |
|||
<big>७७) आवयोः मैत्री =</big> |
|||
८१) आतपे शुष्कः = |
|||
<big>७८) वृक्षात् पतितः =</big> |
|||
८२) क्रियायां धूर्तः = |
|||
<big>७९) शास्त्रे धूर्तः =</big> |
|||
८३) ग्रामाद् आगतः = |
|||
<big>८०) योगे सिद्धः =</big> |
|||
८४) देवैश्वर्यम् = |
|||
<big>८१) आतपे शुष्कः =</big> |
|||
८५) स्थाल्यां पक्वः = |
|||
<big>८२) क्रियायां धूर्तः =</big> |
|||
८६) योगे सिद्धः = |
|||
<big>८३) ग्रामाद् आगतः =</big> |
|||
८७) शास्त्रे पण्डितः = |
|||
<big>८४) देवैश्वर्यम् =</big> |
|||
८८) धर्मकुशलः = |
|||
<big>८५) स्थाल्यां पक्वः =</big> |
|||
८९) चक्रमुक्तः = |
|||
<big>८६) योगे सिद्धः =</big> |
|||
<big>८७) शास्त्रे पण्डितः =</big> |
|||
<big>८८) धर्मकुशलः =</big> |
|||
विग्रहवाक्यं विलिख्य समासनाम, सूत्रञ्च निर्दिशत - |
|||
<big>८९) चक्रमुक्तः =</big> |
|||
९१) लक्ष्मीच्छाया = |
|||
<big>९०) दाने शौण्डः =</big> |
|||
९२) अहिहतः = |
|||
<big><br /> |
|||
९३) मरुद्गणः = |
|||
'''<u>विग्रहवाक्यं विलिख्य समासनाम, सूत्रञ्च निर्दिशत -</u>'''</big> |
|||
<big>९१) लक्ष्मीच्छाया =</big> |
|||
९४) अर्धग्रामः = |
|||
<big>९२) अहिहतः =</big> |
|||
९५) मरुत्पतिः = |
|||
<big>९३) मरुद्गणः =</big> |
|||
९६) आस्यप्रत्यनः = |
|||
<big>९४) अर्धग्रामः =</big> |
|||
९७) मनोगतम् = |
|||
<big>९५) मरुत्पतिः =</big> |
|||
९८) स्वर्गपतितः = |
|||
<big>९६) आस्यप्रत्यनः =</big> |
|||
९९) राजेश्वरः = |
|||
<big>९७) मनोगतम् =</big> |
|||
१००) सर्पिष्कुण्डिका = |
|||
<big>९८) स्वर्गपतितः =</big> |
|||
१०१) श्रीशः = |
|||
<big>९९) राजेश्वरः =</big> |
|||
१०२) सुखापेतः = |
|||
<big>१००) सर्पिष्कुण्डिका =</big> |
|||
१०३) गङ्गोदकम् = |
|||
<big>१०१) श्रीशः =</big> |
|||
<big>१०२) सुखापेतः =</big> |
|||
<big>१०३) गङ्गोदकम् =</big> |
|||
१०६) वाक्पारुष्यम् = |
|||
<big>१०४) गवाग्रम् =</big> |
|||
<big>१०५) वाङ्मुखम् =</big> |
|||
<big>१०६) वाक्पारुष्यम् =</big> |
|||
<big>१०७) नृत्यकुशलः =</big> |
|||
११०) वृश्चिकात् भीतिः = |
|||
<big>१०८) व्याघ्रभीतः =</big> |
|||
<big>१०९) नखभिन्नः =</big> |
|||
<big>११०) वृश्चिकात् भीतिः =</big> |
|||
११३) विद्याविहीनः = |
|||
<big>१११) गवे सुखम् =</big> |
|||
<big>११२) कल्पनापोढः =</big> |
|||
<big>११३) विद्याविहीनः =</big> |
|||
<big>११४) एकोन =</big> |
|||
<big>११५) मद्भक्तः =</big> |
|||
<big>११६) त्वद्भयम् =</big> |
|||
<big>११७) दैत्यारिः =</big> |
|||
<big>११८) तत्कृतम् =</big> |
|||
<big>११९) भूतबलिः =</big> |
|||
<big>१२०) लोकहितम् =</big> |
|||
<big>१२१) वृक्षच्छाया =</big> |
|||
<big>१२२) मध्वरिः =</big> |
|||
<big>१२३) वृक्षमूलम् =</big> |
|||
<big>१२४) वनगतः =</big> |
|||
<big>१२५) गृहरक्षणम् =</big> |
|||
<big>१२६) रणशूरः =</big> |
|||
<big>१२७) परभृतः =</big> |
|||
<big>१२८) अस्मिन्मित्रम् =</big> |
|||
<big>१२९) युष्मद्धितम् =</big> |
|||
<big>१३०) भवन्नाम =</big> |
|||
<big>१३१) कष्टाश्रतः =</big> |
|||
<big>१३२) स्वर्गगता =</big> |
|||
१३५) श्वलेह्यः कूपः = |
|||
<big>१३३) भार्यासदृशः =</big> |
|||
<big>१३४) सुखप्रातः =</big> |
|||
<big>१३५) श्वलेह्यः कूपः =</big> |
|||
१३८) यूपदारुः = |
|||
<big>१३६) गोशाला =</big> |
|||
<big>१३७) वचःसन्तुष्टः =</big> |
|||
<big>१३८) यूपदारुः =</big> |
|||
<big>१३९) राष्ट्रहितम् =</big> |
|||
<big>१४०) शूर्पनिष्पावः =</big> |
|||
<big>१४१) काकबलि =</big> |
|||
<big>१४२) परशुच्छिन्नः =</big> |
|||
<big>१४३) सर्वोदयः =</big> |
|||
<big>१४४) तत्रभुक्तम् =</big> |
|||
<big>१४५) देवपरिचारकः =</big> |
|||
<big>१४६) दुःखापन्नः =</big> |
|||
१४९) रात्रिसङ्क्रान्ताः मूहूर्ताः = |
|||
<big>१४७) वैदेहीभर्ता =</big> |
|||
<big>१४८) अभ्यासपटुः =</big> |
|||
१५१) अहः सङ्क्रान्ताः मूहूर्ताः = |
|||
<big>१४९) रात्रिसङ्क्रान्ताः मूहूर्ताः =</big> |
|||
१५२) मन्दिरगतः = |
|||
<big>१५०) हिमलयङ्गतः =</big> |
|||
<big>१५१) अहः सङ्क्रान्ताः मूहूर्ताः =</big> |
|||
१५४) सुवर्णहारः = |
|||
<big>१५२) मन्दिरगतः =</big> |
|||
१५५) पादोनं = |
|||
<big>१५३) तिलामिश्राः =</big> |
|||
<big>१५४) सुवर्णहारः =</big> |
|||
<big>१५५) पादोनं =</big> |
|||
<big>१५६) माषविकलं =</big> |
|||
<big>१५७) अर्धपिप्पली =</big> |
|||
<big>१५८) आचारश्लक्ष्णः =</big> |
|||
<big>१५९) किरिकाणः =</big> |
|||
<big>१६०) ग्रामार्धः =</big> |
|||
<big>१६१) बलिपुष्टः =</big> |
|||
<big>१६२) चोरहतः =</big> |
|||
<big>१६३) अर्थगतः =</big> |
|||
<big>१६४) गोरक्षितम् =</big> |
|||
१६७) कृच्छ्राल्लब्धः = |
|||
<big>१६५) तक्रौदनम् =</big> |
|||
१६८) प्रतिशब्ददीर्घः= |
|||
<big>१६६) पाणिनिप्रणीतम् =</big> |
|||
<big>१६७) कृच्छ्राल्लब्धः =</big> |
|||
१७०) सख्यभिहितम् = |
|||
<big>१६८) प्रतिशब्ददीर्घः=</big> |
|||
१७१) द्व्यूनम् = |
|||
<big>१६९) अभ्यासपटुः =</big> |
|||
<big>१७०) सख्यभिहितम् =</big> |
|||
<big>१७१) द्व्यूनम् =</big> |
|||
१७४) वचस्सन्तुष्टा/वचःसन्तुष्टा = |
|||
<big>१७२) मनोनिर्मितम् =</big> |
|||
<big>१७३) धनवत्तुल्या =</big> |
|||
<big>१७४) वचस्सन्तुष्टा/वचःसन्तुष्टा =</big> |
|||
१७७) कुण्डलहिरण्यम् = |
|||
<big>१७५) घटमृत्तिका =</big> |
|||
<big>१७६) मूर्तिपाषाणः =</big> |
|||
<big>१७७) कुण्डलहिरण्यम् =</big> |
|||
<big>१७८) सुखार्थः =</big> |
|||
<big>१७९) सुखार्था =</big> |
|||
<big>१८०) सुखार्थम् =</big> |
|||
<big>१८१) भूतबलिः =</big> |
|||
<big>१८२) जनहितम् =</big> |
|||
१८५) शर्करामिश्रितः = |
|||
<big>१८३) धेनुरक्षितम् =</big> |
|||
<big>१८४) दैवरक्षितः =</big> |
|||
<big>१८५) शर्करामिश्रितः</big> <big>=</big> |
|||
<big>१८६) ऊर्ध्वदेहः =</big> |
|||
<big>१८७) सितेतरः =</big> |
|||
<big>१८८) कन्याप्रियः =</big> |
|||
<big>१८९) ग्रामनिर्गतः =</big> |
|||
<big>१९०) परश्शताः =</big> |
|||
<big>१९१) परस्सहस्राः पुरुषाः =</big> |
|||
<big>१९२) खड्गहतः =</big> |
|||
<big>१९३) तत्पुरुषः =</big> |
|||
<big>१९४) मासपूर्वः =</big> |
|||
<big>१९५) राजधानी =</big> |
|||
<big>१९६) सक्तुधानी =</big> |
|||
<big>१९७) भिक्षामात्रम् =</big> |
|||
<big>१९८) छात्रप्रियः =</big> |
|||
<big>१९९) मषीधानी =</big> |
|||
<big>२००) गोलवणम् =</big> |
|||
<big>२०१) अश्वलवणम् =</big> |
|||
<big>२०२) शोकवशः =</big> |
|||
<big>२०३) विद्यायुक्तः =</big> |
|||
<big>२०४) अश्वघासः =</big> |
|||
<big>२०५) वासभवनम् =</big> |
|||
<big>२०६) शयनागारम् =</big> |
|||
<big>२०७) लीलाम्बुजम् =</big> |
|||
<big>२०८) बुद्धिहीनः =</big> |
|||
<big>२०९) गुरुसमः =</big> |
|||
<big>२१०) पितृतुल्यः =</big> |
|||
<big>२११) कृष्णाश्रितः =</big> |
|||
<big>२१२) सुखापन्नः =</big> |
|||
<big>२१३) कल्पनातीतः =</big> |
|||
<big>२१४) यानप्राप्तः =</big> |
|||
<big>२१५) गृहगतः =</big> |
|||
<big>२१६) जलपतिता =</big> |
|||
<big>२१७) देवमित्रम् =</big> |
|||
<big>२१८) निद्राबाधितः =</big> |
|||
<big>२१९) नृपहतः =</big> |
|||
<big>२२०) मरणभयम् =</big> |
|||
<big>२२१) वनवासः =</big> |
|||
<big>२२२) जलक्रीडा =</big> |
|||
<big>२२३) पादोदकम् =</big> |
|||
<big>२२४) स्वर्गगतः =</big> |
|||
<big>२२५) नृपवचनम् =</big> |
|||
<big>२२६) नृपोक्तम् =</big> |
|||
<big>२२७) हनुमत्सन्देशः =</big> |
|||
<big>२२८) रामहतः =</big> |
|||
<big>२२९) भगवद्गीता =</big> |
|||
<big>२३०) मन्मनः =</big> |
|||
<big>२३१) तत्पतिः =</big> |
|||
<big>२३२) तद्रतः =</big> |
|||
<big>२३३) अस्मद्वियोगः =</big> |
|||
<big>२३४) युष्मन्मित्रम् =</big> |
|||
<big>२३५) त्वत्कृते =</big> |
|||
<big>२३६) त्वत्स्नेहः =</big> |
|||
<big>२३७) राजशत्रवः =</big> |
|||
<big>२३८) आत्मनः ज्ञानम् =</big> |
|||
<big>२३९) रामरतः =</big> |
|||
<big>२४०) तत्वचनम् =</big> |
|||
<big>२४१) जनकतनयास्नानपुण्योदकम् =</big> |
|||
<big>२४२) हस्तिनासा =</big> |
|||
<big>२४३) राजराजः =</big> |
|||
<big>२४४) तत्पुरुषः =</big> |
|||
<big>२४५) सङ्कटात्यस्तः =</big> |
|||
<big>२४६) शस्त्रच्छिन्नः =</big> |
|||
<big>२४७) क्रममुक्तः =</big> |
|||
<big>२४८) क्रोधसमः =</big> |
|||
<big>२४९) वाक्कलहः =</big> |
|||
<big>२५०) जलमिश्रितः =</big> |
|||
<big>२५१) ज्ञानशून्यः=</big> |
|||
<big>२५२) अग्निदग्धः =</big> |
|||
<big>२५३) धनहीनः =</big> |
|||
<big>२५४) आत्मपरित्यक्तः =</big> |
|||
<big>२५५) बुद्धिरहितः =</big> |
|||
<big>२५६) चौरहृतम् =</big> |
|||
<big>२५७) सर्पदृष्टः =</big> |
|||
<big>२५८) चन्दनयुक्तः =</big> |
|||
<big>२५९) विद्यानिपुणः =</big> |
|||
<big>२६०) कालिदासेन कृतम् =</big> |
|||
<big>२६१) वस्त्रावृतः =</big> |
|||
<big>२६२) मेघाच्छन्नः =</big> |
|||
<big>२६३) गुरुदक्षिणा =</big> |
|||
<big>२६४) कुण्डलहिरण्यम् =</big> |
|||
<big>२६५) राजपुरुषागमनम् =</big> |
|||
<big>२६६) जन्मजातः =</big> |
|||
<big>२६७) देशभक्तिः =</big> |
|||
<big>२६८) युद्धभूमिः =</big> |
|||
<big>२६९) मदान्धः =</big> |
|||
<big>२७०) अन्नदाता =</big> |
|||
<big>२७१) नीतिनिपुणः =</big> |
|||
<big>२७२) आत्मविश्वासः =</big> |
|||
<big>२७३) पुरुषोत्तमः =</big> |
|||
<big>२७४) पापविमुक्तः =</big> |
|||
<big>२७५) रामकृतः =</big> |
|||
<big>२७६) स्वकार्यकुशलाः =</big> |
|||
<big>२४४ ) यथासुखम् =</big> |
|||
<big>'''अस्मिन् श्लोके समासानां विग्रहवाक्यं, समासस्य नाम च वक्तव्यम् ।'''</big> |
|||
<big>जयन्ति ते सुकृतिनो रससिद्धाः कवीश्वराः ।</big> |
|||
<big>नास्ति येषां यशःकाये जरामरणजं भयम् ।।</big> |
|||
<big>'''अस्मिन् परिच्छेदे समासानां विग्रहवाक्यं, समासस्य नाम च वक्तव्यम् ।'''</big> |
|||
<big>सत्स्वपि महाभाष्यकैयटाद्याकरग्रन्थेषु परिभाषार्थतत्त्वप्रतिपादकेषु प्रतिपित्सूनां प्रतिपत्तिसौकर्यायेमं ग्रन्थमारभमाणोत्र श्रोत्रॄणां प्रवृत्तये अनुबन्धचतुष्ट्यं प्रदर्शयन् विघ्नोच्छेदपूर्वकसमाप्तये कृतं शिष्टाचारनुमितश्रुतिभाष्यादिबोधितेतिकर्तव्यताकं मङ्गलं शिष्यशिक्षायै अभ्यासशालिनामनुषङ्गतो मङ्गलाय च रचयति ।</big> |
|||
<big><br /> |
|||
सत्सु अपि महाभाष्य-कैयटादि-आकर-ग्रन्थेषु परिभाषा-अर्थ-तत्त्व-प्रतिपादकेषु प्रतिपित्सूनां प्रतिपत्ति-सौकर्याय इमं ग्रन्थम् आरभमाणः अत्र श्रोत्रॄणां प्रवृत्तये अनुबन्ध-चतुष्ट्यं प्रदर्शयन् विघ्न-उच्छेद-पूर्वक-समाप्तये कृतं शिष्टाचार-अनुमित-श्रुति-भाष्यादि-बोधित-इतिकर्तव्यताकं मङ्गलं शिष्य-शिक्षायै अभ्यासशालिनाम् अनुषङ्गतः मङ्गलाय च रचयति ।</big> |
Latest revision as of 08:55, 30 September 2023
एतेषां समस्तपदानां विग्रहवाक्यं विलिख्य, समासनाम, सूत्रञ्च निर्दिशत –
१) मन्दिरगता बालिका भोजनम् अकरोत् |
२) पुत्रीप्राप्तं पारितोषिकं माता च पिता च अभिनन्दतः |
३) पुत्रीसमा छात्रा गुरुं नमति |
४) कृष्णश्रितः भक्तः सन्तुष्टः जातः |
५) मध्याह्ने सूर्यस्य आतपः तीक्ष्णः |
६) अनुजा शालाप्राप्ताभिः सखीभिः सह क्रीडति |
७) उत्तमा बालिका गृहपाठं पूर्वाह्णे एव कृतवान् |
८) चोराः मध्यरात्रे आगच्छन्ति |
९) कष्टातीतस्य जनस्य सुखं मधुरतरं भाति |
१०) विषादयुक्तः अर्जुनः युद्धं कर्तुं नोत्सहते |
११) नगरप्राप्तः ग्रामीणः विस्मयान्वितोऽभवत् |
१२) अपराह्ने वयं क्रीडाम |
१३) संशयापन्ना छात्रा अध्यापकं पृष्टवती |
१४) लक्षमणप्रयुक्तः बाणः मेघनादं व्यदारयत् |
१५) सीता रामस्य प्राणसमा आसीत् |
१६) मध्याह्नस्य भोजनं सम्यगासीत् |
१७) सर्वाः महिलाः मातृसदृश्यः माननीयाः |
१८) विद्याविहीनः पशुः इति सुभाषितं सूचयति |
१९) रज्जुबद्धान् काष्ठान् ग्रामम् आनय |
२०) सीतानुगतः रामः वनं प्राविशत् |
२१) लक्ष्मीसहितायाः नारायणाय नमः |
२२) अर्जुनः युद्धे शिवदत्तस्य अस्त्रस्य प्रयोगं कृतवान् |
२३) दुःखातीतः वृद्धा ततः निर्गता |
२४) विष्णुप्रयुक्तं चक्रं राक्षसं समहरत् |
२५) दण्डताडितः सर्पः निर्गच्छति |
२६) पुरुषोत्तमः रामः अयोध्यायाः राज्यम् अपालयत् |
२७) पुस्तकपठनादौ अनुच्चरितमपि तत् ज्ञातं सत् बोधयति इति अनुभवः |
२८) मातृसदृशी शिक्षिका छात्रान् पाठयति |
२९) दुर्योधनः अहं युधिष्ठिरम् अर्धराज्यं/ राज्यार्धं न दास्यामि इति उक्तवान् |
३०) हरित्रातः भक्तः नमस्कृतवान् |
३१) रोगतप्तः औषधं स्वीकरोति |
३२) तस्य अर्धकायस्य स्रसाः बृहत्यः सन्ति |
३३) गर्तपतिता बालिका उच्चैः नर्दति |
३४) कार्यालप्राप्तः कर्मकरः कार्यम् अकरोत् |
३५) कालिदासविरचितानि काव्यानि सर्वे पठेयुः |
३६) छात्राः व्यासरचितं महाभारतं पठान्ति |
३७) गुरुदेवाय नमः |
३८) न सुखप्रति संसारे |
३९) तारकः ब्रह्मदत्तेन वरेण देवान् पराजितवान् |
४०) शबरी दशरथपुत्रस्य रामस्य भक्ता आसीत् |
४१) प्रेमपूर्णे परिसरे संभाषणस्य अभ्यासं करवाम |
४२) गुडमिश्रितं भोजनं सम्यग्भवति |
४३) अश्वपतितः सैनिकः व्रणयुक्तः अभवत् |
४४) भगवदधीनं जगत् वर्तते |
४५) यत् प्रमाणसिद्धं वर्तते तत्र इदम् इति वदामः |
४६) शरणम् आगतः तु सदैव रक्षणीयः |
४७) ग्रामं गमी बालकः शालां प्रविशति |
४८) तस्मै इदं पुस्तकं दातव्यम् |
४९) धनाशा त्यक्ता चेत् पुरुषः वैराग्यं प्राप्नोति |
५०) विद्यया हीनः छात्रः न शोभते |
५१) न दोषप्रति वेदान्तदर्शने |
५२) भवतः कार्यं निर्विघ्नं समापयेत् |
५३) शरविद्धः हंसः भूमौ पतितः |
५४) गङ्गाजलं सर्वपापं हरति |
५५) सिंहात् भीतः व्याधः अरण्यात् पलायते |
५६) सभायां पण्डितः कार्यक्रमे सम्भाषाणं करोति |
५७) शङ्कराचार्यः बाल्यकाले एव शास्त्रेषु प्रवीणः आसीत् |
५८) माता मन्दिरं गतवती पूजार्थम् |
५९) धनहीनाः जनाः बहुदुखम् अनुभवन्ति अस्मिन् लोके |
६०) शिवेन मन्मतः अग्निना दग्धः|
६१) माया ईश्वराधीना वर्तते इति अद्वैतिनः मतम् |
६२) अध्यापकाधीनाः छात्राः वर्तन्ते |
६३) स्नानाय इदं चूर्णम् अस्ति |
६४) सर्पदृष्टः मूषकः |
६५) ज्ञानव्यवधाने ज्ञानं न जायते |
६६) दशरथः युद्धे निपुणः आसीत् |
६७) आकाङ्क्षा तु पदधर्मः ज्ञातव्यः भवति |
६८) महाभारते युद्धे अन्ते दुर्योधनः जले मग्नः आसीत् |
६९) रोगान्मुक्तः वृद्धः अत्यन्तं सन्तुष्टः आसीत् |
७०) सुखप्राप्ताः जनाः मन्दिरात् गच्छन्ति |
७१) हरिः लतयाः वर्षेण पूर्वः |
७२) भूतेभ्यः बलिः सर्वैः दातव्यः |
७३) गुडेन सम्मिश्रिताः धानाः सर्वैः इच्छन्ति |
७४) गुर्वाधीनः छात्रः गुरुकुले पठति स्म |
७५) भूतपूर्वः प्रधानमन्त्री विदेशं गतवान् |
७६) सामिकृतात् अध्ययनात् न कोपि फलं भवति |
७७) सर्वैः प्रजाहितं करणीयम् |
७८) छात्राः परीक्षाभयं प्राप्नुवन्ति |
७९) मध्याह्ने सूर्यस्य तापः अधिकः भवति |
८०) भवदर्था समासकक्षा प्रवर्तमाना अस्ति |
८१) स्थालीपक्वेभ्यः फलेभ्यः रसं अनुभूतवान् बालकः |
८२) अधरहिमालये बहवः योगिनः वसन्ति |
८३) दुष्टजनानां कुकर्मभ्यः भीतिः नास्ति कलियुगे |
८४) गुरुसुश्रुषाम् अकृत्वा एव विद्यानदीं पारयितुं न शक्यते |
८५) मन्दिरे देवार्थं नैवेद्यम् अस्ति |
८६) अन्तिकात् आगता राजकुमारी सभायाम् उपविष्टान् सर्वान् अपश्यत् |
८७) गोविन्दात् रामः मासावरः |
८८) वातेन छेद्यं तृणं गृहीत्वा ऋषिः गच्छति यागार्थम् |
८९) हरित्रातः भक्तः संसारसागरं पारयति |
९०) तिरुपत्यां देवालये दध्योदनं प्रसादरूपेण दीयते |
९१) गङ्गात्यस्ताः सीतारामलक्ष्मणाः भरद्वाजाश्रमं प्राप्तवन्तः |
९२) राजधानीप्राप्तः मन्त्रिगणः प्रधानमन्त्रिणा अमिलत् |
९३) अधरहिमालये कस्मिंश्चित् आश्रमे अयं योगी वसति |
९४) प्रीतिबन्धः ईश्वरः भक्तानां साहाय्यं करोति |
९५) दूरादागतः योगी ग्रामम् अप्रविशत् |
९६) पुरुषाधीना प्रकृतिः जगत्कारणं नास्ति इति वेदान्तिनां मतम् |
९७) जन्ममरणचक्रात् बहिर्गमनं मोक्षः |
९८) एकः छात्रः तीर्थे वायसः इव गच्छन् आसीत् |
९९) रमेशः सुरेशात् मासपूर्वः|
१००) उत्तरभारते बहूनि सुन्दराणि मन्दिराणि सन्ति |
१०१) तेन यत् न साधितं, तत् अस्माभिः अर्धवर्षेण साधितम् |
१०२) कालः सर्वोपि सूर्याधीनः एव इति भाति |
१०३) अस्मद्पिता अस्य नगरस्य अधिकारी इति उक्तं कैश्चित् बालकैः|
१०४) गोहितार्थं यजमानः नितरां कार्यं करोति |
१०५) बालकेन स्वयंकृतं कार्यं दृष्ट्वा माता सुन्तुष्टा जाता |
१०६) अक्षक्षौण्डः शकुनिः पाण्डवान् धूर्तेन पराजितवान् |
१०७) बालकार्थं माता अन्नं परिवेषितवती |
१०८) स्वर्गपतितः त्रिशङ्कुः भूमौ अपि स्थातुम् अशक्तः आसीत् |
१०९) मूर्खशतम् जनाः तस्यां सम्भायाम् आसन् |
११०) युधिष्ठिरः पाण्डवेषु ज्येष्ठः आसीत् |
१११) दासीपुत्रः विदुरः नीतिनिपुणः आसीत् |
११२) दूरादागतः यात्रिकः रमेशगृहं प्रविष्टवान् |
११३) देवालये मन्त्राः हृदि स्पृशन्ति |
११४) अभिवृक्षं ( वृक्षम् अभि) गच्छति |
११५) पूर्वाह्णे आरब्धं कार्यं दिनस्य अन्ते अपि न समापितम् |
११६) केचन पूर्वसंस्कारात् स्तोकात् मुक्ताः भवन्ति |
११७) अनुज्येष्ठं प्रविशन्तु भवन्तः |
११८) आतपे शुष्कानि वस्त्राणि ग्रहीत्वा माता गृहे गतवती |
११९) काराबन्धः पुरुषः दुःखेन जीवनं अयापयत् |
१२०) तस्मात्ते वितराम्यद्य पुत्रमात्मसमं गुणैः |
१२१) तत्र लङ्कां समासाद्य पुरीं रावणपालिताम् |
१२२) श्रुत्वा तु तं वानरसैन्यशब्दं लङ्कागता राक्षसराजभृत्याः |
१२३) क्षीरौदनेन साज्येन सम्पूज्य च भवं प्रभुम् |
१२४) पश्चार्धेन प्रविष्टः शरपतनभयाद्भूयसा पूर्वकायम् |
१२५) ज्येष्ठो भ्राता पितृतुल्यो मृते पितरि शौनकः |
१२६) ईश्वरः कालातीतः अस्ति |
१२७) अपूर्वः कोऽपि कामान्धः दिवा नक्तं न पश्यति |
१२८) रामबाणहतो वीरश्चचाल च मुमोह च |
१२९) लोकहितं मम करणीयम् |
१३०) प्रजानामेव भूत्यर्थं स ताभ्यो बलिमग्रहीत् |
१३१) न दोषप्रति बौद्धदर्शने |
१३२) ब्रह्मविद्या किमर्थेयं नान्यन्मुक्ते फलं ततः |
१३३) रक्षिता भवभीतानां भवः परमपावनः |
१३४) दुष्टभीति-महाभीति भञ्जनायै नमो नमः |
१३५) नृपहतपुत्रं पश्यति क्रुद्धब्राह्मणः |
१३६) शिष्यपठितपुस्तकानि न कदापि पठ्यन्ते अन्यैः जनैः |
१३७) अद्यत्वे बहवः युवकाः आत्महत्यां कुर्वन्ति |
१३८) मूर्खराजा एकदा राज्यं अपालयत् |
१३९) उपजरसं भवन्ति रोगाः|
१४०) अध्युपानहं ( inside the shoe) सूक्ष्मः कण्टकः तुदति पादम् | A little thorn inside the shoe pricks the foot.
१४१) ब्रह्मवित् गुणातीतः भवति |
१४२) मध्येगङ्गात् आनय| गङ्गामध्यात् आनय|
१४३) वाक्यं वक्त्राधीनम् एव |
१४४) आमूलाच्छ्रोतुमिच्छामि |
१४५) मौल्ययुक्ता माला ग्रीवायाः अपगच्छति |
१४६) चुल्लीपक्वं वृन्ताकं पश्य |
१४७) तत्त्वम् अंशः असि |
१४८) त्वदधीना हि सिद्धयः |
१४९) देवदत्तः विष्णुमित्रात् मासावरः |
१५०) जीवन्मुक्तः यः सः बन्धमुक्तः भवति |
१५१) न सुखप्रति संसारे |
१५२) विकारहेतौ सति ये बहिर्विकारं समासते ते यमिनः | Those who remain unruffled even in the presence of temptations are the self restrained.
१५३) दुहितरः मातृसदृश्यो जायन्ते, पुत्राश्च पितृसदृशा इति प्रायिकम् |
१५४) वणिजां प्रायेण वाक्कलहाः भवन्ति |
१५५) अपराह्णकृतं कार्यं दृष्ट्वा अधिकारी सन्तुष्टः |
१५६) तिलमिश्रिताः तण्डुलाः श्राद्धे प्रयुज्यन्ते |
१५७) आचारणश्लक्ष्णान् सर्वे इच्छन्ति |
१५८) समुद्रमात्रं न सरो अस्ति किञ्चन |
१५९) विश्वनाथः सर्वान् रक्षति |
१६०) घटेन वयं जलाहरणं कुर्मः |
१६१) देवदत्तः रामान्मासपूर्वः, विष्णुमित्रात् |
१६२) वणीजां प्रायेण वाक्कलहा भवन्ति नासिकलहाः |
१६३) रावणनीतायाः सीतायाः अन्वेषणं हनूमान् कृतवान् |
१६४) प्रतिप्रश्नस्योत्तरे द्वे संभवतः पक्षविपक्षसमाश्रयेण |
१६५) प्रेम्णा शरीरार्धहरां हरस्य |
समस्तपदं विलिख्य समासनाम, सूत्रञ्च निर्दिशत -
१) भवते इयम् =
२) बलिभिः पुष्टः =
३) निसर्गेण निपुणः =
४) वेदे पण्डितः =
५) अहिना हतः =
६) गुरुणा ईक्षिता =
७) अन्यैः पुष्टाः =
८) राज्यात् भ्रष्टः =
९) कार्ये रतः =
१०) पराभवात् भीतिः =
११) गिरेः नदी =
१२) नित्यं प्रहसितः =
१३) आत्मनः संयमः =
१४) गोभ्यः बलिः =
१५) रणे संवितः =
१६) सूर्येण ऊढः =
१७) देवेन खातः =
१८) मम पुस्तकम् =
१९) गुहं निर्गतः =
२०) सर्वेभ्यः इयम् =
२१) खट्वाम् आरूढः =
२२) त्वां श्रितः =
२३) चौरैः हृतः =
२४) संस्कृतस्य अध्यापकः =
२५) तव अपेक्षा =
२६) भवता श्रुतम् =
२७) धर्मस्य क्षेत्रम् =
२८) दन्तानां राजा =
२९) कस्मै इदम् =
३०) मम पुत्रः
३१) रोगात् मुक्तः =
३२) देवेन खातः =
३३) पाण्डवानाम् अनीकम् =
३४) तव दासः =
३५) ब्राह्मणानां याजकः =
३६) देवानां पूजकः =
३७) कूपं पतितः =
३८) स्वस्य जनाः =
३९) वृकात् भयम् =
४०) दाने शौण्डः =
४१) सुहृद्भ्यः अयम् =
४२) गवे हितम् =
४३) कुलस्य क्षयः =
४४) व्यवहारे पटुः =
४५) वनेऽन्तर् =
४६) द्विजाय अयम् =
४७) वृकात् त्रासः =
४८) सर्वश्वेतः =
४९) सर्वमहान् =
५०) सुखात् आपेतः =
५१) अक्षेषु कितवः
५२) पित्रे सुखम् =
५३) प्रसादात् पतितः =
५४) पूर्वः कायस्य =
५५) खट्वाम् आरूढः =
५६) मूहूर्तं सुखम् =
५७) वाचि पटुः=
५८) गवां कृष्णा सम्पन्नक्षीरतमा =
५९) भगवता गीता =
६०) शास्त्रे निपुणः =
६१) अस्मभ्यं भीतः =
६२) युष्माकम् अपेक्षा =
६३) युष्माभिः भुक्तम् =
६४) वाक्निपुणः =
६५) योगे रतः =
६६) मम निवासः =
६७) काव्ये कुशलः =
६८) अक्षेषु शौण्डः =
६९) धर्मे प्रवीणः =
७०) धर्मात् च्युतः =
७१) कार्ये कुशलः =
७२) परशुना छिन्नवान् =
७३) अस्माकं कर्तव्यम् =
७४) मम कर्तव्यम् =
७५) मनुष्याणां क्षत्रियः शूरतमः =
७६) द्यूते कितवः =
७७) आवयोः मैत्री =
७८) वृक्षात् पतितः =
७९) शास्त्रे धूर्तः =
८०) योगे सिद्धः =
८१) आतपे शुष्कः =
८२) क्रियायां धूर्तः =
८३) ग्रामाद् आगतः =
८४) देवैश्वर्यम् =
८५) स्थाल्यां पक्वः =
८६) योगे सिद्धः =
८७) शास्त्रे पण्डितः =
८८) धर्मकुशलः =
८९) चक्रमुक्तः =
९०) दाने शौण्डः =
विग्रहवाक्यं विलिख्य समासनाम, सूत्रञ्च निर्दिशत -
९१) लक्ष्मीच्छाया =
९२) अहिहतः =
९३) मरुद्गणः =
९४) अर्धग्रामः =
९५) मरुत्पतिः =
९६) आस्यप्रत्यनः =
९७) मनोगतम् =
९८) स्वर्गपतितः =
९९) राजेश्वरः =
१००) सर्पिष्कुण्डिका =
१०१) श्रीशः =
१०२) सुखापेतः =
१०३) गङ्गोदकम् =
१०४) गवाग्रम् =
१०५) वाङ्मुखम् =
१०६) वाक्पारुष्यम् =
१०७) नृत्यकुशलः =
१०८) व्याघ्रभीतः =
१०९) नखभिन्नः =
११०) वृश्चिकात् भीतिः =
१११) गवे सुखम् =
११२) कल्पनापोढः =
११३) विद्याविहीनः =
११४) एकोन =
११५) मद्भक्तः =
११६) त्वद्भयम् =
११७) दैत्यारिः =
११८) तत्कृतम् =
११९) भूतबलिः =
१२०) लोकहितम् =
१२१) वृक्षच्छाया =
१२२) मध्वरिः =
१२३) वृक्षमूलम् =
१२४) वनगतः =
१२५) गृहरक्षणम् =
१२६) रणशूरः =
१२७) परभृतः =
१२८) अस्मिन्मित्रम् =
१२९) युष्मद्धितम् =
१३०) भवन्नाम =
१३१) कष्टाश्रतः =
१३२) स्वर्गगता =
१३३) भार्यासदृशः =
१३४) सुखप्रातः =
१३५) श्वलेह्यः कूपः =
१३६) गोशाला =
१३७) वचःसन्तुष्टः =
१३८) यूपदारुः =
१३९) राष्ट्रहितम् =
१४०) शूर्पनिष्पावः =
१४१) काकबलि =
१४२) परशुच्छिन्नः =
१४३) सर्वोदयः =
१४४) तत्रभुक्तम् =
१४५) देवपरिचारकः =
१४६) दुःखापन्नः =
१४७) वैदेहीभर्ता =
१४८) अभ्यासपटुः =
१४९) रात्रिसङ्क्रान्ताः मूहूर्ताः =
१५०) हिमलयङ्गतः =
१५१) अहः सङ्क्रान्ताः मूहूर्ताः =
१५२) मन्दिरगतः =
१५३) तिलामिश्राः =
१५४) सुवर्णहारः =
१५५) पादोनं =
१५६) माषविकलं =
१५७) अर्धपिप्पली =
१५८) आचारश्लक्ष्णः =
१५९) किरिकाणः =
१६०) ग्रामार्धः =
१६१) बलिपुष्टः =
१६२) चोरहतः =
१६३) अर्थगतः =
१६४) गोरक्षितम् =
१६५) तक्रौदनम् =
१६६) पाणिनिप्रणीतम् =
१६७) कृच्छ्राल्लब्धः =
१६८) प्रतिशब्ददीर्घः=
१६९) अभ्यासपटुः =
१७०) सख्यभिहितम् =
१७१) द्व्यूनम् =
१७२) मनोनिर्मितम् =
१७३) धनवत्तुल्या =
१७४) वचस्सन्तुष्टा/वचःसन्तुष्टा =
१७५) घटमृत्तिका =
१७६) मूर्तिपाषाणः =
१७७) कुण्डलहिरण्यम् =
१७८) सुखार्थः =
१७९) सुखार्था =
१८०) सुखार्थम् =
१८१) भूतबलिः =
१८२) जनहितम् =
१८३) धेनुरक्षितम् =
१८४) दैवरक्षितः =
१८५) शर्करामिश्रितः =
१८६) ऊर्ध्वदेहः =
१८७) सितेतरः =
१८८) कन्याप्रियः =
१८९) ग्रामनिर्गतः =
१९०) परश्शताः =
१९१) परस्सहस्राः पुरुषाः =
१९२) खड्गहतः =
१९३) तत्पुरुषः =
१९४) मासपूर्वः =
१९५) राजधानी =
१९६) सक्तुधानी =
१९७) भिक्षामात्रम् =
१९८) छात्रप्रियः =
१९९) मषीधानी =
२००) गोलवणम् =
२०१) अश्वलवणम् =
२०२) शोकवशः =
२०३) विद्यायुक्तः =
२०४) अश्वघासः =
२०५) वासभवनम् =
२०६) शयनागारम् =
२०७) लीलाम्बुजम् =
२०८) बुद्धिहीनः =
२०९) गुरुसमः =
२१०) पितृतुल्यः =
२११) कृष्णाश्रितः =
२१२) सुखापन्नः =
२१३) कल्पनातीतः =
२१४) यानप्राप्तः =
२१५) गृहगतः =
२१६) जलपतिता =
२१७) देवमित्रम् =
२१८) निद्राबाधितः =
२१९) नृपहतः =
२२०) मरणभयम् =
२२१) वनवासः =
२२२) जलक्रीडा =
२२३) पादोदकम् =
२२४) स्वर्गगतः =
२२५) नृपवचनम् =
२२६) नृपोक्तम् =
२२७) हनुमत्सन्देशः =
२२८) रामहतः =
२२९) भगवद्गीता =
२३०) मन्मनः =
२३१) तत्पतिः =
२३२) तद्रतः =
२३३) अस्मद्वियोगः =
२३४) युष्मन्मित्रम् =
२३५) त्वत्कृते =
२३६) त्वत्स्नेहः =
२३७) राजशत्रवः =
२३८) आत्मनः ज्ञानम् =
२३९) रामरतः =
२४०) तत्वचनम् =
२४१) जनकतनयास्नानपुण्योदकम् =
२४२) हस्तिनासा =
२४३) राजराजः =
२४४) तत्पुरुषः =
२४५) सङ्कटात्यस्तः =
२४६) शस्त्रच्छिन्नः =
२४७) क्रममुक्तः =
२४८) क्रोधसमः =
२४९) वाक्कलहः =
२५०) जलमिश्रितः =
२५१) ज्ञानशून्यः=
२५२) अग्निदग्धः =
२५३) धनहीनः =
२५४) आत्मपरित्यक्तः =
२५५) बुद्धिरहितः =
२५६) चौरहृतम् =
२५७) सर्पदृष्टः =
२५८) चन्दनयुक्तः =
२५९) विद्यानिपुणः =
२६०) कालिदासेन कृतम् =
२६१) वस्त्रावृतः =
२६२) मेघाच्छन्नः =
२६३) गुरुदक्षिणा =
२६४) कुण्डलहिरण्यम् =
२६५) राजपुरुषागमनम् =
२६६) जन्मजातः =
२६७) देशभक्तिः =
२६८) युद्धभूमिः =
२६९) मदान्धः =
२७०) अन्नदाता =
२७१) नीतिनिपुणः =
२७२) आत्मविश्वासः =
२७३) पुरुषोत्तमः =
२७४) पापविमुक्तः =
२७५) रामकृतः =
२७६) स्वकार्यकुशलाः =
२४४ ) यथासुखम् =
अस्मिन् श्लोके समासानां विग्रहवाक्यं, समासस्य नाम च वक्तव्यम् ।
जयन्ति ते सुकृतिनो रससिद्धाः कवीश्वराः ।
नास्ति येषां यशःकाये जरामरणजं भयम् ।।
अस्मिन् परिच्छेदे समासानां विग्रहवाक्यं, समासस्य नाम च वक्तव्यम् ।
सत्स्वपि महाभाष्यकैयटाद्याकरग्रन्थेषु परिभाषार्थतत्त्वप्रतिपादकेषु प्रतिपित्सूनां प्रतिपत्तिसौकर्यायेमं ग्रन्थमारभमाणोत्र श्रोत्रॄणां प्रवृत्तये अनुबन्धचतुष्ट्यं प्रदर्शयन् विघ्नोच्छेदपूर्वकसमाप्तये कृतं शिष्टाचारनुमितश्रुतिभाष्यादिबोधितेतिकर्तव्यताकं मङ्गलं शिष्यशिक्षायै अभ्यासशालिनामनुषङ्गतो मङ्गलाय च रचयति ।
सत्सु अपि महाभाष्य-कैयटादि-आकर-ग्रन्थेषु परिभाषा-अर्थ-तत्त्व-प्रतिपादकेषु प्रतिपित्सूनां प्रतिपत्ति-सौकर्याय इमं ग्रन्थम् आरभमाणः अत्र श्रोत्रॄणां प्रवृत्तये अनुबन्ध-चतुष्ट्यं प्रदर्शयन् विघ्न-उच्छेद-पूर्वक-समाप्तये कृतं शिष्टाचार-अनुमित-श्रुति-भाष्यादि-बोधित-इतिकर्तव्यताकं मङ्गलं शिष्य-शिक्षायै अभ्यासशालिनाम् अनुषङ्गतः मङ्गलाय च रचयति ।