9---anye-vyAkaraNa-sambaddha-viShayAH/12---ChAtraiH-viracitAni-karapatrANi/02---siddha-ting-pratyayAnAM-niShpAdanam: Difference between revisions
(8 rows) |
(Completed copy-formatting left) |
||
Line 70: | Line 70: | ||
यञि सार्वधातुके | |
यञि सार्वधातुके | |
||
|- |
|- |
||
|<nowiki>-</nowiki> |
|||
| |
|||
|- |
|- |
||
! colspan="9" |<big>परस्मैपदि लोट्</big> |
! colspan="9" |<big>परस्मैपदि लोट्</big> |
||
Line 81: | Line 81: | ||
| rowspan="2" |तिप् |
| rowspan="2" |तिप् |
||
| rowspan="2" |इतश्च (३.४.१००) प्रबाध्य > एरुः |
| rowspan="2" |इतश्च (३.४.१००) प्रबाध्य > एरुः |
||
(३.४.८६) |
(३.४.८६) |
||
तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् |
तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् |
||
Line 116: | Line 117: | ||
(३.४.८७) > अतो हेः (६.४.१०५) |
(३.४.८७) > अतो हेः (६.४.१०५) |
||
तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् |
तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् |
||
(७.१.३५) |
|||
|0/ तात् |
|0/ तात् |
||
| rowspan="2" |थस् |
| rowspan="2" |थस् |
||
Line 129: | Line 132: | ||
|- |
|- |
||
|इतश्च (३.४.१००), एरुः (३.४.८६) |
|इतश्च (३.४.१००), एरुः (३.४.८६) |
||
प्रबध्य > सेर्ह्यपिच्च (३.४.८७) |
प्रबध्य > सेर्ह्यपिच्च (३.४.८७) |
||
तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् |
तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् |
||
Line 173: | Line 177: | ||
| |
| |
||
|- |
|- |
||
| rowspan="2" |तिप् |
|||
| rowspan="2" |इतश्च (३.४.१००) |
|||
| rowspan="2" |त् |
|||
| rowspan="2" |तस् |
|||
| rowspan="2" |तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) |
|||
! rowspan="2" | |
|||
| rowspan="2" |ताम् |
|||
| rowspan="2" |झि |
|||
| rowspan="2" |इतश्च (३.४.१००) > झ् > झोऽन्तः |
|||
! rowspan="2" | |
|||
! rowspan="2" | |
|||
(७.१.३) > अन्त् > संयोगान्तस्य |
|||
लोपः (८.२.२३) |
|||
| rowspan="2" |अन् |
|||
|इतश्च (३.४.१००) — ङितः लस्य इतः परस्मैपदस्य |
|||
लोपः | |
|||
|- |
|||
|तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१)— ङितः लस्य |
|||
तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः | |
|||
|- |
|||
| rowspan="2" |सिप् |
|||
| rowspan="2" |इतश्च (३.४.१००) |
|||
| rowspan="2" |स् |
|||
| rowspan="2" |थस् |
|||
| rowspan="2" |तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) |
|||
| rowspan="2" |तम् |
|||
| rowspan="2" |थ |
|||
| rowspan="2" |तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः |
|||
(३.४.१०१) |
|||
| rowspan="2" |त |
|||
|नित्यं ङितः (३.४.९९) — ङितः लस्य सः उत्तमस्य |
|||
नित्यं लोपः | न विभक्तौ तुस्मा: - प्रबाध्य । |
|||
|- |
|||
|संयोगान्तस्य लोपः (८.२.२३) - संयोगान्तस्य पदस्य |
|||
लोपः| |
|||
|- |
|||
| rowspan="2" |मिप् |
|||
| rowspan="2" |इतश्च (३.४.१००) प्रबध्य > |
|||
तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) |
|||
| rowspan="2" |अम् |
|||
| rowspan="2" |वस् |
|||
| rowspan="2" |नित्यं ङितः (३.४.९९) |
|||
| rowspan="2" |व |
|||
| rowspan="2" |मस् |
|||
| rowspan="2" |नित्यं ङितः (३.४.९९) |
|||
| rowspan="2" |म |
|||
| |
| |
||
|- |
|- |
||
| |
|||
|- |
|||
| rowspan="2" |तिप् |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + ति > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + ति > इतश्च (३.४.१००)> या+ त् > अतो येयः (७.२.८०) > इय् + त् > लोपो व्योर्वलि (६.१.६६) > इ + त् |
|||
|इत् |
|||
| rowspan="2" |तस् |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + तस् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + तस् > तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) > या + ताम् > अतो येयः ७.२.८०) > इय् + ताम् > लोपो व्योर्वलि (६.१.६६) > इ + ताम् |
|||
|इताम् |
|||
| rowspan="2" |झि |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + झि > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + झि > झेर्जुस् (३.४.१०८) > या + उस् > अतो येयः ७.२.८०) > इय् + उस् > इयुस् > ससजुषो रुः (८.२.६६), खरवसानयोर्विसर्जनीयः (८.३.१५) > इयुः |
|||
|इयुः |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) - लिङः लस्य सीयुट् |
|||
|- |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + ति > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + ति > इतश्च (३.४.१००)> या+ त् |
|||
|यात् |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + तस् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + तस् > तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) > या + ताम् |
|||
|याताम् |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + झि > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + झि > झेर्जुस् (३.४.१०८) > या + उस् > उस्यपदान्तात् (६.१.९५) > युस् > ससजुषो रुः (८.२.६६), खरवसानयोर्विसर्जनीयः (८.३.१५) > युः |
|||
|युः |
|||
|<nowiki>यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३)— लिङः लस्य परस्मैपदानां यासुट् उदात्तः ङित् च |</nowiki> |
|||
|- |
|||
| rowspan="2" |सिप् |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + सि > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + सि > इतश्च (३.४.१००)> या + स् > अतो येयः ७.२.८०) > इय् + स् > लोपो व्योर्वलि (६.१.६६) > इ + स् > ससजुषो रुः (८.२.६६), खरवसानयोर्विसर्जनीयः (८.३.१५) > इः |
|||
|इः |
|||
| rowspan="2" |थस् |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + थस् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + थस् > तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) > या + तम् > अतो येयः ७.२.८०) > इय् + तम् > लोपो व्योर्वलि (६.१.६६) > इ + तम् |
|||
|इतम् |
|||
| rowspan="2" |थ |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + थ > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + थ > तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) > या + त > अतो येयः ७.२.८०) > इय् + त > लोपो व्योर्वलि (६.१.६६) > इ + त |
|||
|इत |
|||
|<nowiki>लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९)— अङ्गात् सार्वधातुकस्य लिङः अनन्तस्य सः लोपः |</nowiki> |
|||
|- |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + सि > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + सि > इतश्च (३.४.१००)> या + स् > ससजुषो रुः (८.२.६६), खरवसानयोर्विसर्जनीयः (८.३.१५) > याः |
|||
|याः |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + थस् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + थस् > तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) > या + तम् |
|||
|यातम् |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + थ > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + थ > तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) > या + त |
|||
|यात |
|||
|<nowiki>अतो येयः (७.२.८०)— अतः अङ्गात् सार्वधातुकस्य या (इति स्थाने) इयः |</nowiki> |
|||
|- |
|||
| rowspan="2" |मिप् |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + मिप् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + मिप् > इतश्च (३.४.१००) प्रबाध्य > तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) > या + अम् > अतो येयः ७.२.८०) > इय् + अम् |
|||
|इयम् |
|||
| rowspan="2" |वस् |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + वस् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + वस् > नित्यं ङितः (३.४.९९) > या + व > अतो येयः ७.२.८०) > इय् + व > लोपो व्योर्वलि (६.१.६६) > इ + व |
|||
|इव |
|||
| rowspan="2" |मस् |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + मस् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + मस् > नित्यं ङितः (३.४.९९) > या + म > अतो येयः ७.२.८०) > इय् + म > लोपो व्योर्वलि (६.१.६६) > इ + म |
|||
|इम |
|||
|<nowiki>झेर्जुस् (३.४.१०८)— लिङः लस्य झेः जुस् |</nowiki> |
|||
|- |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + मिप् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + मिप् > इतश्च (३.४.१००) प्रबाध्य > तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) > या + अम् |
|||
|य़ाम् |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + वस् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + वस् > नित्यं ङितः (३.४.९९) > या + व |
|||
|याव |
|||
|लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + मस् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + मस् > नित्यं ङितः (३.४.९९) > या + म |
|||
|याम |
|||
|<nowiki>उस्यपदान्तात् (६.१.९५)— उसि अचि अपदान्तात् आत् एकः पूर्वपरयोः पररूपं संहितायाम् |</nowiki> |
|||
|} |
|||
{| class="wikitable" |
|||
| rowspan="2" | |
|||
| |
|||
| |
|||
| rowspan="2" | |
|||
| |
|||
| |
|||
| rowspan="2" | |
|||
| |
|||
| |
|||
| |
|||
|- |
|||
| |
|||
| |
|||
| |
|||
| |
|||
| |
|||
| |
|||
| |
| |
||
|} |
|} |
Revision as of 06:18, 19 May 2021
सिद्ध-तिङ्प्रत्ययाः - भव्या रामस्वामी | |||||||||
परस्मैपदि लट् | सूत्राणि | ||||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
तिप् | हलन्त्यम् (१.३.३) | ति | तस् | न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) >
ससजुषो रुः (८.२.६६), खरवसानयोर्विसर्जनीयः (८.३.१५) |
तः | झि | झोऽन्तः > अन्त् + इ
जुहोत्यादिगणे अदभ्यास्तात् (७.१.४) > अत् + इ |
अन्ति
(अति ) |
झोऽन्तः (७.१.३) — अङ्गस्य प्रत्ययस्य झः अन्तः | |
सिप् | हलन्त्यम् (१.३.३) | सि | थस् | न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) >
ससजुषो रुः (८.२.६६), खरवसानयोर्विसर्जनीयः (८.३.१५) |
थः | थ | थ | ||
मिप् | हलन्त्यम् (१.३.३) | मि | वस् | न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) >
ससजुषो रुः (८.२.६६), खरवसानयोर्विसर्जनीयः (८.३.१५) |
वः | मस् | न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) >
ससजुषो रुः (८.२.६६), खरवसानयोर्विसर्जनीयः (८.३.१५) |
मः | अतो दीर्घो यञि (७.३.१०१) — अतः अङ्गस्य दीर्घः
यञि सार्वधातुके | |
- | |||||||||
परस्मैपदि लोट्
(लोटो लङ्वत् (३.४.८५), इतश्च (३.४.१००) ) |
लोटो लङ्वत् (३.४.८५) —
लोटः लङ्वत् | | ||||||||
तिप् | इतश्च (३.४.१००) प्रबाध्य > एरुः
(३.४.८६) तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् (७.१.३५) |
तु/ तात् | तस् | न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) प्रबाध्य >
तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) |
ताम् | झि | झोऽन्तः > अन्त् + इ > इतश्च
(३.४.१००) प्रबाध्य अपवादेन > एरुः (३.४.८६) > अन्त् + उ जुहोत्यादिगणे अदभ्यास्तात् (७.१.४) > अत् + इ > इतश्च (३.४.१००) प्रबाध्य अपवादेन > एरुः (३.४.८६) > अत् + उ |
अन्तु
(अतु ) |
एरुः (३.४.८६) — लोटः लस्य एः उः | |
सेर्ह्यपिच्च (३.४.८७) — लोटः लस्य सेः हि अपित् च | |||||||||
सिप् | इतश्च (३.४.१००) प्रबाध्य > एरुः
(३.४.८६) प्रबाध्य> सेर्ह्यपिच्च (३.४.८७) > अतो हेः (६.४.१०५) तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् (७.१.३५) |
0/ तात् | थस् | न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) प्रबाध्य >
तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) |
तम् | थ | तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः
(३.४.१०१) |
त | अतो हेः (६.४.१०५) — अतः अङ्गात् हेः लुक् | |
इतश्च (३.४.१००), एरुः (३.४.८६)
प्रबध्य > सेर्ह्यपिच्च (३.४.८७) तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् (७.१.३५) |
हि/ तात् | मेर्निः (३.४.८९) — लोटः लस्य मेः निः | | |||||||
मिप् | आडुत्तमस्य पिच्च (३.४.९२) > आ + /
> इतश्च (३.४.१००) प्रबाध्य> तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) प्रबाध्य > एरुः (३.४.८६) प्रबाध्य > मेर्निः (३.४.८९) > नि > आडुत्तमस्य पिच्च (३.४.९२) > आ + नि |
आनि | वस् | आडुत्तमस्य पिच्च (३.४.९२) > आ +
/ > न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) प्रबाध्य अपवादेन > नित्यंङितः (३.४.९९) > आ + व |
आव | मस् | आडुत्तमस्य पिच्च (३.४.९२) आ +
/ > न विभक्तौ तुस्माः (१.३.४) प्रबाध्य अपवादेन > नित्यं ङितः (३.४.९९) > आ + म |
आम | आडुत्तमस्य पिच्च (३.४.९२) — लोटः लस्य
उत्तमस्य आट् पित् च | |
तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् (७.१.३५) —
अङ्गस्य तुह्योः तातङ् आशिषि अन्यतरस्याम् | | |||||||||
परस्मैपदि लङ्(इतश्च (३.४.१००) ) | |||||||||
तिप् | इतश्च (३.४.१००) | त् | तस् | तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) | ताम् | झि | इतश्च (३.४.१००) > झ् > झोऽन्तः
(७.१.३) > अन्त् > संयोगान्तस्य लोपः (८.२.२३) |
अन् | इतश्च (३.४.१००) — ङितः लस्य इतः परस्मैपदस्य
लोपः | |
तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१)— ङितः लस्य
तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः | | |||||||||
सिप् | इतश्च (३.४.१००) | स् | थस् | तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) | तम् | थ | तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः
(३.४.१०१) |
त | नित्यं ङितः (३.४.९९) — ङितः लस्य सः उत्तमस्य
नित्यं लोपः | न विभक्तौ तुस्मा: - प्रबाध्य । |
संयोगान्तस्य लोपः (८.२.२३) - संयोगान्तस्य पदस्य
लोपः| | |||||||||
मिप् | इतश्च (३.४.१००) प्रबध्य >
तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) |
अम् | वस् | नित्यं ङितः (३.४.९९) | व | मस् | नित्यं ङितः (३.४.९९) | म | |
तिप् | लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + ति > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + ति > इतश्च (३.४.१००)> या+ त् > अतो येयः (७.२.८०) > इय् + त् > लोपो व्योर्वलि (६.१.६६) > इ + त् | इत् | तस् | लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + तस् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + तस् > तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) > या + ताम् > अतो येयः ७.२.८०) > इय् + ताम् > लोपो व्योर्वलि (६.१.६६) > इ + ताम् | इताम् | झि | लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + झि > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + झि > झेर्जुस् (३.४.१०८) > या + उस् > अतो येयः ७.२.८०) > इय् + उस् > इयुस् > ससजुषो रुः (८.२.६६), खरवसानयोर्विसर्जनीयः (८.३.१५) > इयुः | इयुः | लिङः सीयुट् (३.४.१०२) - लिङः लस्य सीयुट् |
लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + ति > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + ति > इतश्च (३.४.१००)> या+ त् | यात् | लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + तस् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + तस् > तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) > या + ताम् | याताम् | लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + झि > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + झि > झेर्जुस् (३.४.१०८) > या + उस् > उस्यपदान्तात् (६.१.९५) > युस् > ससजुषो रुः (८.२.६६), खरवसानयोर्विसर्जनीयः (८.३.१५) > युः | युः | यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३)— लिङः लस्य परस्मैपदानां यासुट् उदात्तः ङित् च | | |||
सिप् | लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + सि > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + सि > इतश्च (३.४.१००)> या + स् > अतो येयः ७.२.८०) > इय् + स् > लोपो व्योर्वलि (६.१.६६) > इ + स् > ससजुषो रुः (८.२.६६), खरवसानयोर्विसर्जनीयः (८.३.१५) > इः | इः | थस् | लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + थस् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + थस् > तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) > या + तम् > अतो येयः ७.२.८०) > इय् + तम् > लोपो व्योर्वलि (६.१.६६) > इ + तम् | इतम् | थ | लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + थ > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + थ > तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) > या + त > अतो येयः ७.२.८०) > इय् + त > लोपो व्योर्वलि (६.१.६६) > इ + त | इत | लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९)— अङ्गात् सार्वधातुकस्य लिङः अनन्तस्य सः लोपः | |
लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + सि > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + सि > इतश्च (३.४.१००)> या + स् > ससजुषो रुः (८.२.६६), खरवसानयोर्विसर्जनीयः (८.३.१५) > याः | याः | लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + थस् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + थस् > तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) > या + तम् | यातम् | लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + थ > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + थ > तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) > या + त | यात | अतो येयः (७.२.८०)— अतः अङ्गात् सार्वधातुकस्य या (इति स्थाने) इयः | | |||
मिप् | लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + मिप् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + मिप् > इतश्च (३.४.१००) प्रबाध्य > तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) > या + अम् > अतो येयः ७.२.८०) > इय् + अम् | इयम् | वस् | लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + वस् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + वस् > नित्यं ङितः (३.४.९९) > या + व > अतो येयः ७.२.८०) > इय् + व > लोपो व्योर्वलि (६.१.६६) > इ + व | इव | मस् | लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + मस् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + मस् > नित्यं ङितः (३.४.९९) > या + म > अतो येयः ७.२.८०) > इय् + म > लोपो व्योर्वलि (६.१.६६) > इ + म | इम | झेर्जुस् (३.४.१०८)— लिङः लस्य झेः जुस् | |
लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + मिप् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + मिप् > इतश्च (३.४.१००) प्रबाध्य > तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः (३.४.१०१) > या + अम् | य़ाम् | लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + वस् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + वस् > नित्यं ङितः (३.४.९९) > या + व | याव | लिङः सीयुट् (३.४.१०२) प्रबाध्य > यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३.४.१०३) > यास् + मस् > लिङः सलोपोऽनन्तस्य (७.२.७९) > या + मस् > नित्यं ङितः (३.४.९९) > या + म | याम | उस्यपदान्तात् (६.१.९५)— उसि अचि अपदान्तात् आत् एकः पूर्वपरयोः पररूपं संहितायाम् | |