9---anye-vyAkaraNa-sambaddha-viShayAH/16---kta-pratyayaH: Difference between revisions
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'''यथा''' - |
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१. मात्रा बालकाय भोजनं |
१. मात्रा बालकाय भोजनं ''दत्तम्'' | |
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'''<big>४. क्त प्रत्ययः भावे कर्मणि च प्रयुक्तः भवति |</big>''' |
'''<big>४. क्त प्रत्ययः भावे कर्मणि च प्रयुक्तः भवति |</big>''' |
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'''यथा''' - |
'''यथा''' - |
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१. <u>कर्मणि प्रयोगे</u> - मात्रा बालकाय भोजनं |
१. <u>कर्मणि प्रयोगे</u> - मात्रा बालकाय भोजनं ''दत्तम्'' | |
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२. <u>भावे प्रयोगे</u> - शिशुना |
२. <u>भावे प्रयोगे</u> - शिशुना ''रुदितम्'' | |
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<big>'''५.''' '''क्त-प्रत्ययान्तरूपस्य प्रातिपदिकसंज्ञा स्यात् |'''</big> |
<big>'''५.''' '''क्त-प्रत्ययान्तरूपस्य प्रातिपदिकसंज्ञा स्यात् |'''</big> |
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|पठितेषु |
|पठितेषु |
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'''६.अ. आदिकर्मणि विहितः क्त-प्रत्ययः कर्तरि अपि स्यात् |''' |
'''६.अ. आदिकर्मणि विहितः क्त-प्रत्ययः कर्तरि अपि स्यात् |''' |
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'''आदिकर्मणि क्तः कर्तरि च''' (३.४.७१) = आदिकर्मणि अर्थे विद्यमानः धातोः परः विहितः क्त-प्रत्ययः कर्मणि, भावे, कर्तरि च भवति | आदिभूतः क्रियाक्षणः आदिकर्म, तस्मिन् आदिकर्मणि | अर्थात् क्रिया आरब्धा परन्तु न समाप्ता, अधुना अपि प्रवर्तमाना, अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते | अतः क्रिया भूता न | आदि च अदः आदिकर्म, तस्मिन् आदिकर्मणि, कर्मधारयः | आदिकर्मणि सप्तम्यन्तं, क्तः प्रथमान्तं, कर्तरि सप्तम्यन्तं, च अव्ययम् | '''प्रत्ययः''' (३.१.१), '''धातोः''' (३.१.९१), '''परश्च''' (३.१.२) इत्येषाम् अधिकारः | अस्मिन् सूत्रे '''च''' इत्यनेन '''लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः''' (३.४.६९) इत्यस्मात् सूत्रात् '''कर्मणि, भावे''' इत्यनयोः ग्रहणम् | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्— '''धातोः परः क्त प्रत्ययः कर्तरि, कर्मणि, भावे च आदिकर्मणि |''' |
'''आदिकर्मणि क्तः कर्तरि च''' (३.४.७१) = आदिकर्मणि अर्थे विद्यमानः धातोः परः विहितः क्त-प्रत्ययः कर्मणि, भावे, कर्तरि च भवति | आदिभूतः क्रियाक्षणः आदिकर्म, तस्मिन् आदिकर्मणि | अर्थात् क्रिया आरब्धा परन्तु न समाप्ता, अधुना अपि प्रवर्तमाना, अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते | अतः क्रिया भूता न | आदि च अदः आदिकर्म, तस्मिन् आदिकर्मणि, कर्मधारयः | आदिकर्मणि सप्तम्यन्तं, क्तः प्रथमान्तं, कर्तरि सप्तम्यन्तं, च अव्ययम् | '''प्रत्ययः''' (३.१.१), '''धातोः''' (३.१.९१), '''परश्च''' (३.१.२) इत्येषाम् अधिकारः | अस्मिन् सूत्रे '''च''' इत्यनेन '''लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः''' (३.४.६९) इत्यस्मात् सूत्रात् '''कर्मणि, भावे''' इत्यनयोः ग्रहणम् | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्— '''धातोः परः क्त प्रत्ययः कर्तरि, कर्मणि, भावे च आदिकर्मणि |''' |
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'''यथा''' - |
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१. <u>कर्तरि</u> - रामः गृहाभ्यासं ''प्रकृतः'' | इत्युक्ते रामः गृहाभ्यासकार्यम् आरब्धवान् | इदानिं प्रवर्तते | अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते | |
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२. <u>कर्मणि</u> - रामेण गृहाभ्यासः ''प्रकृतः'' | इत्युक्ते रामेण गृहाभ्यासकार्यम् आरब्धम् | इदानिं प्रवर्तते | अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते | |
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⚫ | '''अन्यदुदाहरणम्''' - |
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⚫ | '''अन्यदुदाहरणम्''' - ''ज्वलिते अग्नौ जुहोति |'' - ज्वल् धातोः क्त-प्रत्ययान्तरूपम् - ''ज्वलित'' | पुंसि , सप्तम्येकवचने - ज्वलिते | अग्नेः ज्वलनम् आरब्धम् , इदानीमपि ज्वलति , अग्रे अपि ज्वलिष्यति | तस्मिन् अग्नौ एव केनापि यज्ञः क्रियते , न तु भस्मीभूते अग्नौ | अतः अस्मिन् वाक्ये क्तान्तरूपम् आदिकर्मणि न तु भूते | |
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'''६.आ. केभ्यश्चन धातुभ्यः परः विहितः क्त-प्रत्ययः कर्तरि अपि स्यात् |''' |
'''६.आ. केभ्यश्चन धातुभ्यः परः विहितः क्त-प्रत्ययः कर्तरि अपि स्यात् |''' |
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'''गत्यर्थ-अकर्मक-श्लिष-शीङ्-स्था-आस-वस-जन-रुह-जीर्यतिभ्यश्च''' (३.४.७२) = एभ्यः धातुभ्यः क्तः कर्तरि भावकर्मणोः च स्याद् | गतिरर्थः येषां ते गत्यर्थाः, बहुव्रीहिः | न विद्यते कर्म येषां ते अकर्मकाः, बहुव्रीहिः | गत्यर्थाश्च अकर्मकाश्च श्लिषश्च शीङ् च स्थाश्च आसश्च वसश्च जनश्च रुहश्च जीर्यतिश्च तेषाम् इतरेतरयोगद्वन्द्वः गत्यर्थाऽकर्मकश्लिषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतयः तेभ्यः इतरेतरयोगद्वन्द्वः गत्यर्थाऽकर्मकश्लीषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतिभ्यः पञ्चम्यन्तं, च अव्ययम् | '''प्रत्ययः''' (३.१.१), '''धातोः''' (३.१.९१), '''परश्च''' (३.१.२) इत्येषाम् अधिकारः | '''आदिकर्मणि क्तः कर्तरि च''' (३.४.७१) इत्यस्मात् '''कर्तरि''' इत्यस्य अनुवृत्तिः | चकारात् '''लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः''' (३.४.६९) इत्यस्मात् '''कर्मणि, भावे''' इत्यनयोः ग्रहणम् | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्— '''गत्यर्थाऽकर्मकश्लिषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतिभ्यः''' '''धातुभ्यः परः क्त प्रत्ययः कर्तरि, कर्मणि, भावे च''' | उपसर्गपूर्वकाः श्लिष-शीङ्-स्था-आस-वस-जन-रुह-जीर्यतयः सकर्मकाः अतः ते सूत्रे उक्ताः | |
'''गत्यर्थ-अकर्मक-श्लिष-शीङ्-स्था-आस-वस-जन-रुह-जीर्यतिभ्यश्च''' (३.४.७२) = एभ्यः धातुभ्यः क्तः कर्तरि भावकर्मणोः च स्याद् | गतिरर्थः येषां ते गत्यर्थाः, बहुव्रीहिः | न विद्यते कर्म येषां ते अकर्मकाः, बहुव्रीहिः | गत्यर्थाश्च अकर्मकाश्च श्लिषश्च शीङ् च स्थाश्च आसश्च वसश्च जनश्च रुहश्च जीर्यतिश्च तेषाम् इतरेतरयोगद्वन्द्वः गत्यर्थाऽकर्मकश्लिषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतयः तेभ्यः इतरेतरयोगद्वन्द्वः गत्यर्थाऽकर्मकश्लीषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतिभ्यः पञ्चम्यन्तं, च अव्ययम् | '''प्रत्ययः''' (३.१.१), '''धातोः''' (३.१.९१), '''परश्च''' (३.१.२) इत्येषाम् अधिकारः | '''आदिकर्मणि क्तः कर्तरि च''' (३.४.७१) इत्यस्मात् '''कर्तरि''' इत्यस्य अनुवृत्तिः | चकारात् '''लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः''' (३.४.६९) इत्यस्मात् '''कर्मणि, भावे''' इत्यनयोः ग्रहणम् | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्— '''गत्यर्थाऽकर्मकश्लिषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतिभ्यः''' '''धातुभ्यः परः क्त प्रत्ययः कर्तरि, कर्मणि, भावे च''' | उपसर्गपूर्वकाः श्लिष-शीङ्-स्था-आस-वस-जन-रुह-जीर्यतयः सकर्मकाः अतः ते सूत्रे उक्ताः | |
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'''यथा''' - |
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'''यथा''' - १. '''<u>ग</u>म्ऌँ''' (भ्वादिः, गतौ) — २. '''हसेँ''' (भ्वादिः, हसने) — ३. '''शीङ्''' (अदादिः, स्वप्ने)'''<sup>*</sup>''' — ४. '''<u>रु</u>हँ''' (भ्वादिः, बीजजन्मनि प्रादुर्भावे च) — |
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|'''धातुः / प्रयोगः''' |
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<u>'''कर्तरि'''</u> - गोविन्दः नगरं '''''गतः''''' | बालः '''''हसितः''''' | हरिः शेषम् '''''अधिशयितः''''' | कृष्णः रथम् '''''आरूढः''''' | |
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|<u>'''ग'''</u>'''म्ऌँ''' (भ्वादिः, गतौ) |
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|'''हसेँ''' (भ्वादिः, हसने) |
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'''<u>कर्मणि</u>''' - गोविन्देन नगरं '''''गतम्''''' | हरिणा शेषः '''''अधिशयितः''''' | कृष्णेन रथम् '''''आरूढ्म्''''' | |
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|'''शीङ्''' (अदादिः, स्वप्ने)'''<sup>*</sup>''' |
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|<u>'''रु'''</u>'''हँ''' (भ्वादिः, बीजजन्मनि प्रादुर्भावे च) |
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'''<u>भावे</u>''' - गोविन्देन '''''गतम्''''' | बालेन '''''हसितम्''''' | हरिणा '''''अधिशयितम्''''' | कृष्णेन '''''आरूढ्म्''''' | |
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|'''कर्तरि''' |
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|गोविन्दः नगरं ''गतः''<nowiki> | </nowiki> |
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|बालः ''हसितः''<nowiki> |</nowiki> |
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|हरिः शेषम् ''अधिशयितः''<nowiki> |</nowiki> |
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|कृष्णः रथम् ''आरूढः''<nowiki> |</nowiki> |
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|गोविन्देन नगरं ''गतम्''<nowiki> |</nowiki> |
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|हरिणा शेषः ''अधिशयितः''<nowiki> |</nowiki> |
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|कृष्णेन रथम् ''आरूढ्म्''<nowiki> |</nowiki> |
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|'''भावे''' |
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|गोविन्देन ''गतम्''<nowiki> |</nowiki> |
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|बालेन ''हसितम्''<nowiki> |</nowiki> |
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|हरिणा ''अधिशयितम्''<nowiki> |</nowiki> |
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|कृष्णेन ''आरूढ्म्''<nowiki> |</nowiki> |
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'''<sup>*</sup>''' '''अधिशीङ्स्थाऽऽसां कर्म''' (१.४.४६) = अधिपूर्वाणाम् शीङ्-स्था-आस इत्येषां धातूनाम् आधारः कर्मसंज्ञकः स्यात् | शीङ् च स्थाश्च आस च तेषाम् इतरेतरयोगद्वन्द्वः शीङ्स्थाऽऽसः | अधेः शीङ्स्थाऽऽसः अधिशीङ्स्थाऽऽसः , इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भ-पञ्चमीतत्पुरुषः | तेषाम् अधिशीङ्स्थाऽऽसां षष्ठीबहुनचनान्तं, कर्म प्रथमान्तम् | '''कारके''' (१.४.२३) इत्यस्य अधिकारः | '''आधारोऽधिकरणम्''' (१.४.४५) इत्यस्मात् '''आधारः''' इत्यस्य अनुवृत्तिः | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्— '''अधिशीङ्स्थाऽऽसां आधारे कारके कर्म''' | |
'''<sup>*</sup>''' '''अधिशीङ्स्थाऽऽसां कर्म''' (१.४.४६) = अधिपूर्वाणाम् शीङ्-स्था-आस इत्येषां धातूनाम् आधारः कर्मसंज्ञकः स्यात् | शीङ् च स्थाश्च आस च तेषाम् इतरेतरयोगद्वन्द्वः शीङ्स्थाऽऽसः | अधेः शीङ्स्थाऽऽसः अधिशीङ्स्थाऽऽसः , इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भ-पञ्चमीतत्पुरुषः | तेषाम् अधिशीङ्स्थाऽऽसां षष्ठीबहुनचनान्तं, कर्म प्रथमान्तम् | '''कारके''' (१.४.२३) इत्यस्य अधिकारः | '''आधारोऽधिकरणम्''' (१.४.४५) इत्यस्मात् '''आधारः''' इत्यस्य अनुवृत्तिः | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्— '''अधिशीङ्स्थाऽऽसां आधारे कारके कर्म''' | |
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'''यथा''' - |
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'''यथा''' - १. '''शीङ्''' (अदादिः, स्वप्ने) — २. '''<u>ष्ठा</u>''' (भ्वादिः, गतिनिवृत्तौ) — ३. '''आसँ''' (अदादिः, उपवेशने) — |
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|'''धातुः / प्रयोगः''' |
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'''<u>अधिकरणसंज्ञा</u>''' हरिः '''''वैकुण्ठे''''' शेते | हरिः '''''वैकुण्ठे''''' तिष्ठति | हरिः '''''वैकुण्ठे''''' आस्ते | |
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|'''शीङ्''' (अदादिः, स्वप्ने) |
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|<u>'''ष्ठा'''</u> (भ्वादिः, गतिनिवृत्तौ) |
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'''<u>कर्मसंज्ञा</u>''' हरिः '''''वैकुण्ठम्''''' अधिशेते | हरिः '''''वैकुण्ठम्''''' अधितिष्ठति | हरिः '''''वैकुण्ठम्''''' अध्यास्ते | |
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|'''आसँ''' (अदादिः, उपवेशने) |
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|'''अधिकरणसंज्ञा''' |
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|हरिः ''वैकुण्ठे''<nowiki> शेते |</nowiki> |
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|हरिः ''वैकुण्ठे''<nowiki> तिष्ठति |</nowiki> |
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|हरिः ''वैकुण्ठे''<nowiki> आस्ते |</nowiki> |
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|'''कर्मसंज्ञा''' |
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|हरिः ''वैकुण्ठम्''<nowiki> अधिशेते |</nowiki> |
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|हरिः ''वैकुण्ठम्''<nowiki> अधितिष्ठति |</nowiki> |
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|हरिः ''वैकुण्ठम्''<nowiki> अध्यास्ते |</nowiki> |
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Revision as of 21:23, 26 January 2024
१. क्त प्रत्ययः निष्ठा संज्ञकः |
क्तक्तवतू निष्ठा (१.१.२६) = क्त-प्रत्ययः, क्तवतु-प्रत्ययश्च निष्ठा-संज्ञकौ भवतः | क्तश्च क्तवतुश्च तयोरितरेतरयोगद्वन्द्वः क्तक्तवतू | क्तक्तवतू प्रथमान्तं, निष्ठा प्रथमान्तं, द्विपदमिदं सूत्रम् , सूत्रं स्वयं सम्पूर्णम् | अनुवृत्ति-सहित-सूत्रम्— क्तक्तवतू निष्ठा (१.१.२६) | २. अयं कृत् संज्ञकः | २. अयं कृत् संज्ञकः |
२. अयं कृत् संज्ञकः |
कृदतिङ् (३.१.९३) = धातोः परः विहितः तिङ् भिन्नः प्रत्ययः कृत् संज्ञकः स्यात् | क्त प्रत्ययः तिङ्-भिन्न-प्रत्ययः , अपि च धातोः परः विहितः | अतः अयं कृत् संज्ञकः | तिङ् न, अतिङ् नञ्तत्पुरुषः | अतिङ् प्रथमान्तं , कृत् प्रथमान्तं, द्विपदमिदं सूत्रम् | अस्मिन् सूत्रे प्रत्ययः (३.१.१), धातोः (३.१.९१), परश्च (३.१.२) इत्येषाम् अधिकारः | अनुवृत्ति-सहित-सूत्रम्— धातोः परः अतिङ् प्रत्ययः कृत् | ३. क्त प्रत्ययः धातोः परः भूतकालार्थे विहितः स्यात् | ३. क्त प्रत्ययः धातोः परः भूतकालार्थे विहितः स्यात् |
३. क्त प्रत्ययः धातोः परः भूतकालार्थे विहितः स्यात् |
निष्ठा (३.२.१०२) = निष्ठा-संज्ञक-प्रत्ययः धातोः परः भूतकालार्थे विहितः स्यात् | अनेन सूत्रेण क्त क्तवतु च प्रत्यय-संज्ञकौ स्तः | प्रत्ययः (३.१.१), धातोः (३.१.९१), परश्च (३.१.२) इत्येषाम् अधिकारः | भूते (३.२.८४) इत्यस्यापि अधिकारः, अतः क्त क्तवतु प्रत्ययौ धातोः परः भूतकालार्थे भवतः | अनुवृत्ति-सहित-सूत्रम्— धातोः परः निष्ठा प्रत्ययः भूते |
यथा -
१. मात्रा बालकाय भोजनं दत्तम् |
२. बालकेन संस्कृतस्य गृहाभ्यासः कृतः |
३. रामेण पाठशाला गता |
४. क्त प्रत्ययः भावे कर्मणि च प्रयुक्तः भवति |
तयोरेव कृत्यक्तखलर्थाः (३.४.७०) = कृत्य-प्रत्ययाः, क्त प्रत्ययः, खल्-प्रत्ययः भावे कर्मणि च प्रयुक्ताः भवन्ति | खलः अर्थः खलर्थः, षष्ठीतत्पुरुषः | कृत्याश्च क्ताश्च खलर्थाश्च तेषामितरेतरद्वन्द्वः कृत्यक्तखलर्थाः | तयोः सप्तम्यन्तम् , एव अव्ययपदं , कृत्यक्तखलर्थाः प्रथमान्तं , त्रिपदमिदं सूत्रम् | प्रत्ययः (३.१.१), धातोः (३.१.९१), परश्च (३.१.२) इत्येषाम् अधिकारः | अस्मिन् सूत्रे तयोः इत्यनेन लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः (३.४.६९) इत्यस्मात् सूत्रात् कर्मणि, भावे अकर्मकेभ्यः इत्यनयोः ग्रहणम् | अनुवृत्ति-सहित-सूत्रम्— धातोः परः कृत्यक्तखलर्थाः प्रत्ययाः कर्मणि , (अकर्मकेभ्यः धातुभ्यः) भावे |
यथा -
१. कर्मणि प्रयोगे - मात्रा बालकाय भोजनं दत्तम् |
२. भावे प्रयोगे - शिशुना रुदितम् |
५. क्त-प्रत्ययान्तरूपस्य प्रातिपदिकसंज्ञा स्यात् |
कृत्तद्धितसमासाश्च (१.२.४६) = कृदन्ताः, तद्धितान्ताः, समासाः च अपि प्रातिपदिकसंज्ञकाः | कृच्च, तद्धितश्च, समासश्च, कृत्तद्धितसमासाः इतरेतरद्वन्द्वः | कृत्तद्धितसमासाः प्रथमान्तं, च अव्ययपदं, द्विपदमिदं सूत्रम् | अर्थवदधातुरप्रत्ययः प्रातिपदिकम् (१.२.४५) इत्यस्मात् अर्थवत्, प्रातिपदिकम् इत्यनयोः अनुवृत्तिः | अनुवृत्ति-सहित-सूत्रम्— अर्थवन्तः कृत्तद्धितसमासाः च प्रातिपदिकानि |
आहत्य कृदन्त रूपाणि त्रिषु लिङे्गषु , त्रिषु वचनेषु , सप्तसु विभक्तिषु च भवन्ति |
यथा -
लिङ्गम् / वचनम् | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
पुंलिङ्गे | पठितः | पठितौ | पठिताः |
स्त्रीलिङ्गे | पठिता | पठिते | पठिताः |
नपुंसकलिङ्गे | पठितम् | पठिते | पठितानि |
पुंलिङ्गे
विभक्तिः / वचनम् | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्रथमा | पठितः | पठितौ | पठिताः |
द्वतीया | पठितम् | पठितौ | पठितान् |
तृतीया | पठितेन | पठिताभ्याम् | पठितैः |
चतुर्थी | पठिताय | पठिताभ्याम् | पठितेभ्यः |
पञ्चमी | पठितात् | पठिताभ्याम् | पठितेभ्यः |
षष्ठी | पठितस्य | पठितयोः | पठितानाम् |
सप्तमी | पठिते | पठितयोः | पठितेषु |
६.अ. आदिकर्मणि विहितः क्त-प्रत्ययः कर्तरि अपि स्यात् |
आदिकर्मणि क्तः कर्तरि च (३.४.७१) = आदिकर्मणि अर्थे विद्यमानः धातोः परः विहितः क्त-प्रत्ययः कर्मणि, भावे, कर्तरि च भवति | आदिभूतः क्रियाक्षणः आदिकर्म, तस्मिन् आदिकर्मणि | अर्थात् क्रिया आरब्धा परन्तु न समाप्ता, अधुना अपि प्रवर्तमाना, अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते | अतः क्रिया भूता न | आदि च अदः आदिकर्म, तस्मिन् आदिकर्मणि, कर्मधारयः | आदिकर्मणि सप्तम्यन्तं, क्तः प्रथमान्तं, कर्तरि सप्तम्यन्तं, च अव्ययम् | प्रत्ययः (३.१.१), धातोः (३.१.९१), परश्च (३.१.२) इत्येषाम् अधिकारः | अस्मिन् सूत्रे च इत्यनेन लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः (३.४.६९) इत्यस्मात् सूत्रात् कर्मणि, भावे इत्यनयोः ग्रहणम् | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्— धातोः परः क्त प्रत्ययः कर्तरि, कर्मणि, भावे च आदिकर्मणि |
यथा -
१. कर्तरि - रामः गृहाभ्यासं प्रकृतः | इत्युक्ते रामः गृहाभ्यासकार्यम् आरब्धवान् | इदानिं प्रवर्तते | अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते |
२. कर्मणि - रामेण गृहाभ्यासः प्रकृतः | इत्युक्ते रामेण गृहाभ्यासकार्यम् आरब्धम् | इदानिं प्रवर्तते | अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते |
३. भावे - रामेण प्रकृतम् | इत्युक्ते रामेण किञ्चन कार्यम् आरब्धम् | इदानिं प्रवर्तते | अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते |
अन्यदुदाहरणम् - ज्वलिते अग्नौ जुहोति | - ज्वल् धातोः क्त-प्रत्ययान्तरूपम् - ज्वलित | पुंसि , सप्तम्येकवचने - ज्वलिते | अग्नेः ज्वलनम् आरब्धम् , इदानीमपि ज्वलति , अग्रे अपि ज्वलिष्यति | तस्मिन् अग्नौ एव केनापि यज्ञः क्रियते , न तु भस्मीभूते अग्नौ | अतः अस्मिन् वाक्ये क्तान्तरूपम् आदिकर्मणि न तु भूते |
६.आ. केभ्यश्चन धातुभ्यः परः विहितः क्त-प्रत्ययः कर्तरि अपि स्यात् |
गत्यर्थ-अकर्मक-श्लिष-शीङ्-स्था-आस-वस-जन-रुह-जीर्यतिभ्यश्च (३.४.७२) = एभ्यः धातुभ्यः क्तः कर्तरि भावकर्मणोः च स्याद् | गतिरर्थः येषां ते गत्यर्थाः, बहुव्रीहिः | न विद्यते कर्म येषां ते अकर्मकाः, बहुव्रीहिः | गत्यर्थाश्च अकर्मकाश्च श्लिषश्च शीङ् च स्थाश्च आसश्च वसश्च जनश्च रुहश्च जीर्यतिश्च तेषाम् इतरेतरयोगद्वन्द्वः गत्यर्थाऽकर्मकश्लिषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतयः तेभ्यः इतरेतरयोगद्वन्द्वः गत्यर्थाऽकर्मकश्लीषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतिभ्यः पञ्चम्यन्तं, च अव्ययम् | प्रत्ययः (३.१.१), धातोः (३.१.९१), परश्च (३.१.२) इत्येषाम् अधिकारः | आदिकर्मणि क्तः कर्तरि च (३.४.७१) इत्यस्मात् कर्तरि इत्यस्य अनुवृत्तिः | चकारात् लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः (३.४.६९) इत्यस्मात् कर्मणि, भावे इत्यनयोः ग्रहणम् | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्— गत्यर्थाऽकर्मकश्लिषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतिभ्यः धातुभ्यः परः क्त प्रत्ययः कर्तरि, कर्मणि, भावे च | उपसर्गपूर्वकाः श्लिष-शीङ्-स्था-आस-वस-जन-रुह-जीर्यतयः सकर्मकाः अतः ते सूत्रे उक्ताः |
यथा -
धातुः / प्रयोगः | गम्ऌँ (भ्वादिः, गतौ) | हसेँ (भ्वादिः, हसने) | शीङ् (अदादिः, स्वप्ने)* | रुहँ (भ्वादिः, बीजजन्मनि प्रादुर्भावे च) |
कर्तरि | गोविन्दः नगरं गतः | | बालः हसितः | | हरिः शेषम् अधिशयितः | | कृष्णः रथम् आरूढः | |
कर्मणि | गोविन्देन नगरं गतम् | | हरिणा शेषः अधिशयितः | | कृष्णेन रथम् आरूढ्म् | | |
भावे | गोविन्देन गतम् | | बालेन हसितम् | | हरिणा अधिशयितम् | | कृष्णेन आरूढ्म् | |
* अधिशीङ्स्थाऽऽसां कर्म (१.४.४६) = अधिपूर्वाणाम् शीङ्-स्था-आस इत्येषां धातूनाम् आधारः कर्मसंज्ञकः स्यात् | शीङ् च स्थाश्च आस च तेषाम् इतरेतरयोगद्वन्द्वः शीङ्स्थाऽऽसः | अधेः शीङ्स्थाऽऽसः अधिशीङ्स्थाऽऽसः , इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भ-पञ्चमीतत्पुरुषः | तेषाम् अधिशीङ्स्थाऽऽसां षष्ठीबहुनचनान्तं, कर्म प्रथमान्तम् | कारके (१.४.२३) इत्यस्य अधिकारः | आधारोऽधिकरणम् (१.४.४५) इत्यस्मात् आधारः इत्यस्य अनुवृत्तिः | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्— अधिशीङ्स्थाऽऽसां आधारे कारके कर्म |
यथा -
धातुः / प्रयोगः | शीङ् (अदादिः, स्वप्ने) | ष्ठा (भ्वादिः, गतिनिवृत्तौ) | आसँ (अदादिः, उपवेशने) |
अधिकरणसंज्ञा | हरिः वैकुण्ठे शेते | | हरिः वैकुण्ठे तिष्ठति | | हरिः वैकुण्ठे आस्ते | |
कर्मसंज्ञा | हरिः वैकुण्ठम् अधिशेते | | हरिः वैकुण्ठम् अधितिष्ठति | | हरिः वैकुण्ठम् अध्यास्ते | |