9---anye-vyAkaraNa-sambaddha-viShayAH/16---kta-pratyayaH: Difference between revisions

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'''यथा''' - 
'''यथा''' - 


१.  मात्रा बालकाय भोजनं '''दत्तम्''' |
१.  मात्रा बालकाय भोजनं ''दत्तम्'' |

२.  बालकेन संस्कृतस्य गृहाभ्यासः '''कृतः''' |

३.  रामेण पाठशाला '''गता''' |


२.  बालकेन संस्कृतस्य गृहाभ्यासः ''कृतः'' |


३.  रामेण पाठशाला ''गता'' |


'''<big>४.  क्त प्रत्ययः भावे कर्मणि च प्रयुक्तः भवति |</big>'''
'''<big>४.  क्त प्रत्ययः भावे कर्मणि च प्रयुक्तः भवति |</big>'''
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'''यथा''' - 
'''यथा''' - 


१.  <u>कर्मणि प्रयोगे</u>  - मात्रा बालकाय भोजनं '''दत्तम्''' |
१.  <u>कर्मणि प्रयोगे</u>  - मात्रा बालकाय भोजनं ''दत्तम्'' |


२.  <u>भावे प्रयोगे</u> - शिशुना '''रुदितम्''' |
२.  <u>भावे प्रयोगे</u> - शिशुना ''रुदितम्'' |


<big>'''५.'''   '''क्त-प्रत्ययान्तरूपस्य प्रातिपदिकसंज्ञा स्यात् |'''</big>
<big>'''५.'''   '''क्त-प्रत्ययान्तरूपस्य प्रातिपदिकसंज्ञा स्यात् |'''</big>
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|पठितेषु
|पठितेषु
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'''६.अ.   आदिकर्मणि विहितः क्त-प्रत्ययः कर्तरि अपि स्यात् |'''
'''६.अ.   आदिकर्मणि विहितः क्त-प्रत्ययः कर्तरि अपि स्यात् |'''
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'''आदिकर्मणि क्तः कर्तरि च''' (३.४.७१) = आदिकर्मणि अर्थे विद्यमानः धातोः परः विहितः क्त-प्रत्ययः कर्मणि, भावे, कर्तरि च भवति | आदिभूतः क्रियाक्षणः आदिकर्म, तस्मिन् आदिकर्मणि | अर्थात् क्रिया आरब्धा परन्तु न समाप्ता, अधुना अपि प्रवर्तमाना, अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते | अतः क्रिया भूता न | आदि च अदः आदिकर्म, तस्मिन् आदिकर्मणि, कर्मधारयः | आदिकर्मणि सप्तम्यन्तं, क्तः प्रथमान्तं, कर्तरि सप्तम्यन्तं, च अव्ययम् | '''प्रत्ययः''' (३.१.१), '''धातोः''' (३.१.९१), '''परश्च''' (३.१.२) इत्येषाम्‌ अधिकारः | अस्मिन् सूत्रे '''च''' इत्यनेन '''लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः''' (३.४.६९) इत्यस्मात् सूत्रात् '''कर्मणि, भावे''' इत्यनयोः ग्रहणम् | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्‌— '''धातोः परः क्त प्रत्ययः कर्तरि, कर्मणि, भावे च आदिकर्मणि |'''
'''आदिकर्मणि क्तः कर्तरि च''' (३.४.७१) = आदिकर्मणि अर्थे विद्यमानः धातोः परः विहितः क्त-प्रत्ययः कर्मणि, भावे, कर्तरि च भवति | आदिभूतः क्रियाक्षणः आदिकर्म, तस्मिन् आदिकर्मणि | अर्थात् क्रिया आरब्धा परन्तु न समाप्ता, अधुना अपि प्रवर्तमाना, अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते | अतः क्रिया भूता न | आदि च अदः आदिकर्म, तस्मिन् आदिकर्मणि, कर्मधारयः | आदिकर्मणि सप्तम्यन्तं, क्तः प्रथमान्तं, कर्तरि सप्तम्यन्तं, च अव्ययम् | '''प्रत्ययः''' (३.१.१), '''धातोः''' (३.१.९१), '''परश्च''' (३.१.२) इत्येषाम्‌ अधिकारः | अस्मिन् सूत्रे '''च''' इत्यनेन '''लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः''' (३.४.६९) इत्यस्मात् सूत्रात् '''कर्मणि, भावे''' इत्यनयोः ग्रहणम् | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्‌— '''धातोः परः क्त प्रत्ययः कर्तरि, कर्मणि, भावे च आदिकर्मणि |'''


'''यथा''' -
'''यथा''' - १. <u>कर्तरि</u> - रामः गृहाभ्यासं प्रकृतः |  इत्युक्ते रामः गृहाभ्यासकार्यम् आरब्धवान् | इदानिं प्रवर्तते | अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते |


. <u>कर्मणि</u> - रामेण गृहाभ्यासः प्रकृतः |   इत्युक्ते रामेण गृहाभ्यासकार्यम् आरब्धम् | इदानिं प्रवर्तते | अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते |
. <u>कर्तरि</u> - रामः गृहाभ्यासं ''प्रकृतः'' |  इत्युक्ते रामः गृहाभ्यासकार्यम् आरब्धवान् | इदानिं प्रवर्तते | अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते |


. <u>भावे</u> - रामेण प्रकृतम् | इत्युक्ते रामेण किञ्चन कार्यम् आरब्धम् | इदानिं प्रवर्तते | अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते |
. <u>कर्मणि</u> - रामेण गृहाभ्यासः ''प्रकृतः'' |   इत्युक्ते रामेण गृहाभ्यासकार्यम् आरब्धम् | इदानिं प्रवर्तते | अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते |


. <u>भावे</u> - रामेण ''प्रकृतम्'' | इत्युक्ते रामेण किञ्चन कार्यम् आरब्धम् | इदानिं प्रवर्तते | अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते |
'''अन्यदुदाहरणम्''' - '''''ज्वलिते अग्नौ जुहोति |''''' - ज्वल् धातोः क्त-प्रत्ययान्तरूपम् - '''ज्वलित''' | पुंसि , सप्तम्येकवचने - ज्वलिते | अग्नेः ज्वलनम् आरब्धम् , इदानीमपि ज्वलति , अग्रे अपि ज्वलिष्यति | तस्मिन् अग्नौ एव केनापि यज्ञः क्रियते , न तु भस्मीभूते अग्नौ | अतः अस्मिन् वाक्ये क्तान्तरूपम् आदिकर्मणि न तु भूते |

'''अन्यदुदाहरणम्''' - ''ज्वलिते अग्नौ जुहोति |'' - ज्वल् धातोः क्त-प्रत्ययान्तरूपम् - ''ज्वलित'' | पुंसि , सप्तम्येकवचने - ज्वलिते | अग्नेः ज्वलनम् आरब्धम् , इदानीमपि ज्वलति , अग्रे अपि ज्वलिष्यति | तस्मिन् अग्नौ एव केनापि यज्ञः क्रियते , न तु भस्मीभूते अग्नौ | अतः अस्मिन् वाक्ये क्तान्तरूपम् आदिकर्मणि न तु भूते |


'''६.आ.   केभ्यश्चन धातुभ्यः परः विहितः क्त-प्रत्ययः कर्तरि अपि स्यात् |'''
'''६.आ.   केभ्यश्चन धातुभ्यः परः विहितः क्त-प्रत्ययः कर्तरि अपि स्यात् |'''
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'''गत्यर्थ-अकर्मक-श्लिष-शीङ्-स्था-आस-वस-जन-रुह-जीर्यतिभ्यश्च''' (३.४.७२) = एभ्यः धातुभ्यः क्तः कर्तरि भावकर्मणोः च स्याद् | गतिरर्थः येषां ते गत्यर्थाः, बहुव्रीहिः | न विद्यते कर्म येषां ते अकर्मकाः, बहुव्रीहिः | गत्यर्थाश्च अकर्मकाश्च श्लिषश्च शीङ् च स्थाश्च आसश्च वसश्च जनश्च रुहश्च जीर्यतिश्च तेषाम् इतरेतरयोगद्वन्द्वः गत्यर्थाऽकर्मकश्लिषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतयः तेभ्यः इतरेतरयोगद्वन्द्वः गत्यर्थाऽकर्मकश्लीषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतिभ्यः पञ्चम्यन्तं, च अव्ययम् | '''प्रत्ययः''' (३.१.१), '''धातोः''' (३.१.९१), '''परश्च''' (३.१.२) इत्येषाम्‌ अधिकारः | '''आदिकर्मणि क्तः कर्तरि च''' (३.४.७१) इत्यस्मात् '''कर्तरि''' इत्यस्य अनुवृत्तिः | चकारात् '''लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः''' (३.४.६९) इत्यस्मात् '''कर्मणि, भावे''' इत्यनयोः ग्रहणम् | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्‌— '''गत्यर्थाऽकर्मकश्लिषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतिभ्यः''' '''धातुभ्यः परः क्त प्रत्ययः कर्तरि, कर्मणि, भावे च''' | उपसर्गपूर्वकाः श्लिष-शीङ्-स्था-आस-वस-जन-रुह-जीर्यतयः सकर्मकाः अतः ते सूत्रे उक्ताः |
'''गत्यर्थ-अकर्मक-श्लिष-शीङ्-स्था-आस-वस-जन-रुह-जीर्यतिभ्यश्च''' (३.४.७२) = एभ्यः धातुभ्यः क्तः कर्तरि भावकर्मणोः च स्याद् | गतिरर्थः येषां ते गत्यर्थाः, बहुव्रीहिः | न विद्यते कर्म येषां ते अकर्मकाः, बहुव्रीहिः | गत्यर्थाश्च अकर्मकाश्च श्लिषश्च शीङ् च स्थाश्च आसश्च वसश्च जनश्च रुहश्च जीर्यतिश्च तेषाम् इतरेतरयोगद्वन्द्वः गत्यर्थाऽकर्मकश्लिषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतयः तेभ्यः इतरेतरयोगद्वन्द्वः गत्यर्थाऽकर्मकश्लीषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतिभ्यः पञ्चम्यन्तं, च अव्ययम् | '''प्रत्ययः''' (३.१.१), '''धातोः''' (३.१.९१), '''परश्च''' (३.१.२) इत्येषाम्‌ अधिकारः | '''आदिकर्मणि क्तः कर्तरि च''' (३.४.७१) इत्यस्मात् '''कर्तरि''' इत्यस्य अनुवृत्तिः | चकारात् '''लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः''' (३.४.६९) इत्यस्मात् '''कर्मणि, भावे''' इत्यनयोः ग्रहणम् | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्‌— '''गत्यर्थाऽकर्मकश्लिषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतिभ्यः''' '''धातुभ्यः परः क्त प्रत्ययः कर्तरि, कर्मणि, भावे च''' | उपसर्गपूर्वकाः श्लिष-शीङ्-स्था-आस-वस-जन-रुह-जीर्यतयः सकर्मकाः अतः ते सूत्रे उक्ताः |


'''यथा''' - 
'''यथा''' -  १.  '''<u>ग</u>म्ऌँ''' (भ्वादिः, गतौ) — २. '''हसेँ''' (भ्वादिः, हसने) — ३. '''शीङ्''' (अदादिः, स्वप्ने)'''<sup>*</sup>''' — ४. '''<u>रु</u>हँ''' (भ्वादिः, बीजजन्मनि प्रादुर्भावे च) —
{| class="wikitable"

|'''धातुः / प्रयोगः'''
<u>'''कर्तरि'''</u> - गोविन्दः नगरं '''''गतः''''' | बालः '''''हसितः''''' | हरिः शेषम् '''''अधिशयितः''''' | कृष्णः रथम् '''''आरूढः''''' |
|<u>'''ग'''</u>'''म्ऌँ''' (भ्वादिः, गतौ)

|'''हसेँ''' (भ्वादिः, हसने)
'''<u>कर्मणि</u>''' - गोविन्देन नगरं '''''गतम्''''' | हरिणा शेषः '''''अधिशयितः''''' | कृष्णेन रथम् '''''आरूढ्म्''''' |
|'''शीङ्''' (अदादिः, स्वप्ने)'''<sup>*</sup>'''

|<u>'''रु'''</u>'''हँ''' (भ्वादिः, बीजजन्मनि प्रादुर्भावे च)
'''<u>भावे</u>''' - गोविन्देन '''''गतम्''''' | बालेन '''''हसितम्''''' | हरिणा '''''अधिशयितम्''''' | कृष्णेन '''''आरूढ्म्''''' |
|-

|'''कर्तरि'''
|गोविन्दः नगरं ''गतः''<nowiki> | </nowiki>
|बालः ''हसितः''<nowiki> |</nowiki>
|हरिः शेषम् ''अधिशयितः''<nowiki> |</nowiki>
|कृष्णः रथम् ''आरूढः''<nowiki> |</nowiki>
|-
|'''कर्मणि'''
|गोविन्देन नगरं ''गतम्''<nowiki> |</nowiki>
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|हरिणा शेषः ''अधिशयितः''<nowiki> |</nowiki>
|कृष्णेन रथम् ''आरूढ्म्''<nowiki> |</nowiki>
|-
|'''भावे'''
|गोविन्देन ''गतम्''<nowiki> |</nowiki>
|बालेन ''हसितम्''<nowiki> |</nowiki>
|हरिणा ''अधिशयितम्''<nowiki> |</nowiki>
|कृष्णेन ''आरूढ्म्''<nowiki> |</nowiki>
|}
'''<sup>*</sup>''' '''अधिशीङ्स्थाऽऽसां कर्म''' (१.४.४६) = अधिपूर्वाणाम् शीङ्-स्था-आस इत्येषां धातूनाम् आधारः कर्मसंज्ञकः स्यात् | शीङ् च स्थाश्च आस च तेषाम् इतरेतरयोगद्वन्द्वः शीङ्स्थाऽऽसः | अधेः शीङ्स्थाऽऽसः अधिशीङ्स्थाऽऽसः , इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भ-पञ्चमीतत्पुरुषः | तेषाम् अधिशीङ्स्थाऽऽसां षष्ठीबहुनचनान्तं, कर्म प्रथमान्तम् | '''कारके''' (१.४.२३) इत्यस्य अधिकारः |  '''आधारोऽधिकरणम्''' (१.४.४५) इत्यस्मात् '''आधारः''' इत्यस्य अनुवृत्तिः | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्‌— '''अधिशीङ्स्थाऽऽसां आधारे कारके कर्म''' |
'''<sup>*</sup>''' '''अधिशीङ्स्थाऽऽसां कर्म''' (१.४.४६) = अधिपूर्वाणाम् शीङ्-स्था-आस इत्येषां धातूनाम् आधारः कर्मसंज्ञकः स्यात् | शीङ् च स्थाश्च आस च तेषाम् इतरेतरयोगद्वन्द्वः शीङ्स्थाऽऽसः | अधेः शीङ्स्थाऽऽसः अधिशीङ्स्थाऽऽसः , इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भ-पञ्चमीतत्पुरुषः | तेषाम् अधिशीङ्स्थाऽऽसां षष्ठीबहुनचनान्तं, कर्म प्रथमान्तम् | '''कारके''' (१.४.२३) इत्यस्य अधिकारः |  '''आधारोऽधिकरणम्''' (१.४.४५) इत्यस्मात् '''आधारः''' इत्यस्य अनुवृत्तिः | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्‌— '''अधिशीङ्स्थाऽऽसां आधारे कारके कर्म''' |


'''यथा''' - 
'''यथा''' -  १. '''शीङ्''' (अदादिः, स्वप्ने) — २. '''<u>ष्ठा</u>''' (भ्वादिः, गतिनिवृत्तौ) — ३.  '''आसँ''' (अदादिः, उपवेशने) —
{| class="wikitable"

|'''धातुः / प्रयोगः'''
'''<u>अधिकरणसंज्ञा</u>''' हरिः '''''वैकुण्ठे''''' शेते | हरिः '''''वैकुण्ठे''''' तिष्ठति | हरिः '''''वैकुण्ठे''''' आस्ते |
|'''शीङ्''' (अदादिः, स्वप्ने)

|<u>'''ष्ठा'''</u> (भ्वादिः, गतिनिवृत्तौ)
'''<u>कर्मसंज्ञा</u>''' हरिः '''''वैकुण्ठम्''''' अधिशेते | हरिः '''''वैकुण्ठम्''''' अधितिष्ठति | हरिः '''''वैकुण्ठम्''''' अध्यास्ते |
|'''आसँ''' (अदादिः, उपवेशने)
|-
|'''अधिकरणसंज्ञा'''
|हरिः ''वैकुण्ठे''<nowiki> शेते |</nowiki>
|हरिः ''वैकुण्ठे''<nowiki> तिष्ठति |</nowiki>
|हरिः ''वैकुण्ठे''<nowiki> आस्ते |</nowiki>
|-
|'''कर्मसंज्ञा'''
|हरिः ''वैकुण्ठम्''<nowiki> अधिशेते |</nowiki>
|हरिः ''वैकुण्ठम्''<nowiki> अधितिष्ठति |</nowiki>
|हरिः ''वैकुण्ठम्''<nowiki> अध्यास्ते |</nowiki>
|}

Revision as of 21:23, 26 January 2024


१.  क्त प्रत्ययः निष्ठा संज्ञकः |

क्तक्तवतू निष्ठा (१.१.२६) = क्त-प्रत्ययः, क्तवतु-प्रत्ययश्च निष्ठा-संज्ञकौ भवतः | क्तश्च क्तवतुश्च तयोरितरेतरयोगद्वन्द्वः क्तक्तवतू | क्तक्तवतू प्रथमान्तं, निष्ठा प्रथमान्तं, द्विपदमिदं सूत्रम् , सूत्रं स्वयं सम्पूर्णम् | अनुवृत्ति-सहित-सूत्रम्‌— क्तक्तवतू निष्ठा (१.१.२६) | २.  अयं कृत् संज्ञकः | २.  अयं कृत् संज्ञकः |

२.  अयं कृत् संज्ञकः |

कृदतिङ् (३.१.९३) = धातोः परः विहितः तिङ् भिन्नः प्रत्ययः कृत् संज्ञकः स्यात् | क्त प्रत्ययः तिङ्-भिन्न-प्रत्ययः , अपि च धातोः परः विहितः | अतः अयं कृत् संज्ञकः | तिङ् न, अतिङ् नञ्तत्पुरुषः | अतिङ् प्रथमान्तं , कृत् प्रथमान्तं, द्विपदमिदं सूत्रम् | अस्मिन्‌ सूत्रे प्रत्ययः (३.१.१), धातोः (३.१.९१), परश्च (३.१.२) इत्येषाम्‌ अधिकारः | अनुवृत्ति-सहित-सूत्रम्‌— धातोः परः अतिङ् प्रत्ययः कृत् | ३.  क्त प्रत्ययः धातोः परः भूतकालार्थे विहितः स्यात् | ३.  क्त प्रत्ययः धातोः परः भूतकालार्थे विहितः स्यात् |

३.  क्त प्रत्ययः धातोः परः भूतकालार्थे विहितः स्यात् |

निष्ठा (३.२.१०२) = निष्ठा-संज्ञक-प्रत्ययः धातोः परः भूतकालार्थे विहितः स्यात् | अनेन सूत्रेण क्त क्तवतु च प्रत्यय-संज्ञकौ स्तः |  प्रत्ययः (३.१.१), धातोः (३.१.९१), परश्च (३.१.२) इत्येषाम्‌ अधिकारः | भूते (३.२.८४) इत्यस्यापि अधिकारः, अतः क्त क्तवतु प्रत्ययौ धातोः परः भूतकालार्थे भवतः | अनुवृत्ति-सहित-सूत्रम्‌— धातोः परः निष्ठा प्रत्ययः भूते |

यथा

१.  मात्रा बालकाय भोजनं दत्तम् |

२.  बालकेन संस्कृतस्य गृहाभ्यासः कृतः |

३.  रामेण पाठशाला गता |

४.  क्त प्रत्ययः भावे कर्मणि च प्रयुक्तः भवति |

तयोरेव कृत्यक्तखलर्थाः (३.४.७०) = कृत्य-प्रत्ययाः, क्त प्रत्ययः, खल्-प्रत्ययः भावे कर्मणि च प्रयुक्ताः भवन्ति | खलः अर्थः खलर्थः,  षष्ठीतत्पुरुषः | कृत्याश्च क्ताश्च खलर्थाश्च तेषामितरेतरद्वन्द्वः कृत्यक्तखलर्थाः | तयोः सप्तम्यन्तम् , एव अव्ययपदं , कृत्यक्तखलर्थाः प्रथमान्तं , त्रिपदमिदं सूत्रम् | प्रत्ययः (३.१.१), धातोः (३.१.९१), परश्च (३.१.२) इत्येषाम्‌ अधिकारः | अस्मिन् सूत्रे तयोः इत्यनेन लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः (३.४.६९) इत्यस्मात् सूत्रात् कर्मणि, भावे अकर्मकेभ्यः इत्यनयोः ग्रहणम् | अनुवृत्ति-सहित-सूत्रम्‌— धातोः  परः कृत्यक्तखलर्थाः प्रत्ययाः कर्मणि , (अकर्मकेभ्यः धातुभ्यः) भावे |

यथा

१.  कर्मणि प्रयोगे  - मात्रा बालकाय भोजनं दत्तम् |

२.  भावे प्रयोगे - शिशुना रुदितम् |

५.   क्त-प्रत्ययान्तरूपस्य प्रातिपदिकसंज्ञा स्यात् |

कृत्तद्धितसमासाश्च (१.२.४६) = कृदन्ताः, तद्धितान्ताः, समासाः च अपि प्रातिपदिकसंज्ञकाः | कृच्च, तद्धितश्च, समासश्च, कृत्तद्धितसमासाः इतरेतरद्वन्द्वः | कृत्तद्धितसमासाः प्रथमान्तं, च अव्ययपदं, द्विपदमिदं सूत्रम्‌ | अर्थवदधातुरप्रत्ययः प्रातिपदिकम्‌ (१.२.४५) इत्यस्मात्‌ अर्थवत्‌, प्रातिपदिकम्‌ इत्यनयोः अनुवृत्तिः | अनुवृत्ति-सहित-सूत्रम्‌— अर्थवन्तः कृत्तद्धितसमासाः च प्रातिपदिकानि |

आहत्य कृदन्त रूपाणि त्रिषु लिङे्गषु , त्रिषु वचनेषु , सप्तसु विभक्तिषु च भवन्ति |

यथा -  

लिङ्गम् / वचनम् एकवचनम् द्विवचनम् बहुवचनम्
पुंलिङ्गे पठितः पठितौ पठिताः
स्त्रीलिङ्गे पठिता पठिते पठिताः
नपुंसकलिङ्गे पठितम् पठिते पठितानि

पुंलिङ्गे

विभक्तिः / वचनम् एकवचनम् द्विवचनम् बहुवचनम्
प्रथमा पठितः पठितौ पठिताः
द्वतीया पठितम् पठितौ पठितान्
तृतीया पठितेन पठिताभ्याम् पठितैः
चतुर्थी पठिताय पठिताभ्याम् पठितेभ्यः
पञ्चमी पठितात् पठिताभ्याम् पठितेभ्यः
षष्ठी पठितस्य पठितयोः पठितानाम्
सप्तमी पठिते पठितयोः पठितेषु

६.अ.   आदिकर्मणि विहितः क्त-प्रत्ययः कर्तरि अपि स्यात् |

आदिकर्मणि क्तः कर्तरि च (३.४.७१) = आदिकर्मणि अर्थे विद्यमानः धातोः परः विहितः क्त-प्रत्ययः कर्मणि, भावे, कर्तरि च भवति | आदिभूतः क्रियाक्षणः आदिकर्म, तस्मिन् आदिकर्मणि | अर्थात् क्रिया आरब्धा परन्तु न समाप्ता, अधुना अपि प्रवर्तमाना, अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते | अतः क्रिया भूता न | आदि च अदः आदिकर्म, तस्मिन् आदिकर्मणि, कर्मधारयः | आदिकर्मणि सप्तम्यन्तं, क्तः प्रथमान्तं, कर्तरि सप्तम्यन्तं, च अव्ययम् | प्रत्ययः (३.१.१), धातोः (३.१.९१), परश्च (३.१.२) इत्येषाम्‌ अधिकारः | अस्मिन् सूत्रे इत्यनेन लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः (३.४.६९) इत्यस्मात् सूत्रात् कर्मणि, भावे इत्यनयोः ग्रहणम् | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्‌— धातोः परः क्त प्रत्ययः कर्तरि, कर्मणि, भावे च आदिकर्मणि |

यथा -

१. कर्तरि - रामः गृहाभ्यासं प्रकृतः |  इत्युक्ते रामः गृहाभ्यासकार्यम् आरब्धवान् | इदानिं प्रवर्तते | अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते |

२. कर्मणि - रामेण गृहाभ्यासः प्रकृतः |   इत्युक्ते रामेण गृहाभ्यासकार्यम् आरब्धम् | इदानिं प्रवर्तते | अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते |

३. भावे - रामेण प्रकृतम् | इत्युक्ते रामेण किञ्चन कार्यम् आरब्धम् | इदानिं प्रवर्तते | अग्रे अपि प्रवर्तिष्यते |

अन्यदुदाहरणम् - ज्वलिते अग्नौ जुहोति | - ज्वल् धातोः क्त-प्रत्ययान्तरूपम् - ज्वलित | पुंसि , सप्तम्येकवचने - ज्वलिते | अग्नेः ज्वलनम् आरब्धम् , इदानीमपि ज्वलति , अग्रे अपि ज्वलिष्यति | तस्मिन् अग्नौ एव केनापि यज्ञः क्रियते , न तु भस्मीभूते अग्नौ | अतः अस्मिन् वाक्ये क्तान्तरूपम् आदिकर्मणि न तु भूते |

६.आ.   केभ्यश्चन धातुभ्यः परः विहितः क्त-प्रत्ययः कर्तरि अपि स्यात् |

गत्यर्थ-अकर्मक-श्लिष-शीङ्-स्था-आस-वस-जन-रुह-जीर्यतिभ्यश्च (३.४.७२) = एभ्यः धातुभ्यः क्तः कर्तरि भावकर्मणोः च स्याद् | गतिरर्थः येषां ते गत्यर्थाः, बहुव्रीहिः | न विद्यते कर्म येषां ते अकर्मकाः, बहुव्रीहिः | गत्यर्थाश्च अकर्मकाश्च श्लिषश्च शीङ् च स्थाश्च आसश्च वसश्च जनश्च रुहश्च जीर्यतिश्च तेषाम् इतरेतरयोगद्वन्द्वः गत्यर्थाऽकर्मकश्लिषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतयः तेभ्यः इतरेतरयोगद्वन्द्वः गत्यर्थाऽकर्मकश्लीषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतिभ्यः पञ्चम्यन्तं, च अव्ययम् | प्रत्ययः (३.१.१), धातोः (३.१.९१), परश्च (३.१.२) इत्येषाम्‌ अधिकारः | आदिकर्मणि क्तः कर्तरि च (३.४.७१) इत्यस्मात् कर्तरि इत्यस्य अनुवृत्तिः | चकारात् लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः (३.४.६९) इत्यस्मात् कर्मणि, भावे इत्यनयोः ग्रहणम् | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्‌— गत्यर्थाऽकर्मकश्लिषशीङ्स्थाऽऽसवसजनरुहजीर्यतिभ्यः धातुभ्यः परः क्त प्रत्ययः कर्तरि, कर्मणि, भावे च | उपसर्गपूर्वकाः श्लिष-शीङ्-स्था-आस-वस-जन-रुह-जीर्यतयः सकर्मकाः अतः ते सूत्रे उक्ताः |

यथा

धातुः / प्रयोगः म्ऌँ (भ्वादिः, गतौ) हसेँ (भ्वादिः, हसने) शीङ् (अदादिः, स्वप्ने)* रुहँ (भ्वादिः, बीजजन्मनि प्रादुर्भावे च)
कर्तरि गोविन्दः नगरं गतः | बालः हसितः | हरिः शेषम् अधिशयितः | कृष्णः रथम् आरूढः |
कर्मणि गोविन्देन नगरं गतम् | हरिणा शेषः अधिशयितः | कृष्णेन रथम् आरूढ्म् |
भावे गोविन्देन गतम् | बालेन हसितम् | हरिणा अधिशयितम् | कृष्णेन आरूढ्म् |

* अधिशीङ्स्थाऽऽसां कर्म (१.४.४६) = अधिपूर्वाणाम् शीङ्-स्था-आस इत्येषां धातूनाम् आधारः कर्मसंज्ञकः स्यात् | शीङ् च स्थाश्च आस च तेषाम् इतरेतरयोगद्वन्द्वः शीङ्स्थाऽऽसः | अधेः शीङ्स्थाऽऽसः अधिशीङ्स्थाऽऽसः , इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भ-पञ्चमीतत्पुरुषः | तेषाम् अधिशीङ्स्थाऽऽसां षष्ठीबहुनचनान्तं, कर्म प्रथमान्तम् | कारके (१.४.२३) इत्यस्य अधिकारः |  आधारोऽधिकरणम् (१.४.४५) इत्यस्मात् आधारः इत्यस्य अनुवृत्तिः | अनुवृत्ति-सहितसूत्रम्‌— अधिशीङ्स्थाऽऽसां आधारे कारके कर्म |

यथा

धातुः / प्रयोगः शीङ् (अदादिः, स्वप्ने) ष्ठा (भ्वादिः, गतिनिवृत्तौ) आसँ (अदादिः, उपवेशने)
अधिकरणसंज्ञा हरिः वैकुण्ठे शेते | हरिः वैकुण्ठे तिष्ठति | हरिः वैकुण्ठे आस्ते |
कर्मसंज्ञा हरिः वैकुण्ठम् अधिशेते | हरिः वैकुण्ठम् अधितिष्ठति | हरिः वैकुण्ठम् अध्यास्ते |